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Chapter 5 सुमित्रानंदन पंत ( पर्वत प्रदेश में पावस )

Class 10th हिन्दी स्पर्श भाग- 2


सुमित्रानंदन पंत ( पर्वत प्रदेश में पावस ) (स्पर्श भाग- 2, कक्षा 10)


कक्षा 10 हिंदी स्पर्श भाग 2 - 'पर्वत प्रदेश में पावस' (लेखक: सुमित्रानंदन पंत)

परवत प्रदेश में पावस

कक्षा 10 की हिंदी की पुस्तक "स्पर्श" भाग 2 में "परवत प्रदेश में पावस" अध्याय में सुमित्रानंदन पंत की एक प्रसिद्ध कविता शामिल है। सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से एक थे, जिनकी कविताएँ प्रकृति प्रेम और सौंदर्य की अद्वितीय अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती हैं।

"परवत प्रदेश में पावस" कविता में पंत जी ने पहाड़ी क्षेत्रों में मानसून के आगमन का सुंदर और जीवंत वर्णन किया है। इस कविता में उन्होंने वर्षा ऋतु के दौरान पर्वतीय प्रदेशों की प्राकृतिक सुंदरता, हरियाली, बादलों की गर्जना, और नदी-नालों के प्रवाह का चित्रण किया है। पंत जी की कविता में प्रकृति का मानवीकरण देखने को मिलता है, जहाँ उन्होंने प्रकृति के विभिन्न तत्वों को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है।

इस अध्याय की महत्ता इस बात में है कि यह विद्यार्थियों को प्रकृति की सुंदरता और उसके विभिन्न रूपों से परिचित कराता है। पंत जी की यह कविता उन्हें प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता और प्रेम का भाव सिखाती है। इसके अलावा, कविता में इस्तेमाल की गई भाषा और छायावादी शैली छात्रों को हिंदी काव्य की एक विशिष्ट धारा को समझने का अवसर प्रदान करती है।

"परवत प्रदेश में पावस" कविता विद्यार्थियों को न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध करती है, बल्कि उन्हें प्रकृति की महत्ता और उसकी सुरक्षा के प्रति जागरूक भी करती है। इस कविता के माध्यम से वे समझ सकते हैं कि प्रकृति और मनुष्य के बीच का संबंध कितना गहरा और महत्वपूर्ण है।

सुमित्रानंदन पंत की इस कविता का अध्ययन विद्यार्थियों को हिंदी साहित्य की छायावादी शैली से परिचित कराता है और उन्हें प्रकृति की सराहना करने की दृष्टि प्रदान करता है। यह अध्याय साहित्यिक सौंदर्य और प्राकृतिक प्रेम की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

सुमित्रानंदन पंत जी का जीवन परिचय और प्रमुख कृतियाँ

जीवन परिचय

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के कौसानी नामक गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम गुसाई दत्त था। पंत जी की मां का निधन उनके जन्म के कुछ ही समय बाद हो गया, और उनका पालन-पोषण उनकी दादी ने किया। पहाड़ों की प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित होकर, पंत जी ने बाल्यावस्था से ही कविता लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक के रूप में अपना स्थान स्थापित किया।

पंत जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में ही हुई, और बाद में वे काशी और इलाहाबाद में पढ़ाई के लिए गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया और हिंदी साहित्य की सेवा में संलग्न हो गए। उनकी रचनाओं में प्रकृति, मानवता, और प्रेम का अद्वितीय चित्रण देखने को मिलता है।

प्रमुख कृतियाँ

सुमित्रानंदन पंत जी ने कई महत्वपूर्ण काव्य संग्रह और रचनाएँ लिखीं, जो हिंदी साहित्य में अमूल्य योगदान के रूप में मानी जाती हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • पल्लव: यह पंत जी का पहला प्रमुख काव्य संग्रह है, जिसमें छायावादी युग की स्पष्ट झलक मिलती है। इसमें प्रकृति और प्रेम का सुंदर वर्णन किया गया है।
  • ग्राम्या: इस काव्य संग्रह में ग्रामीण जीवन और उसकी समस्याओं का चित्रण किया गया है। पंत जी ने इसमें गांवों की सादगी और सौंदर्य का बखूबी वर्णन किया है।
  • गुंजन: इस संग्रह में पंत जी की प्रारंभिक कविताएँ संकलित हैं, जो प्रकृति और जीवन की कोमल भावनाओं को व्यक्त करती हैं।
  • युगांत: इस काव्य संग्रह में आधुनिक युग की समस्याओं और उनके समाधान की तलाश का चित्रण किया गया है। यह संग्रह उनकी विचारधारा में बदलाव और प्रगतिवादी दृष्टिकोण का प्रतीक है।
  • स्वर्णकिरण: इस काव्य संग्रह में पंत जी ने मानवता और प्रेम के आदर्शों को प्रस्तुत किया है। इसमें जीवन के प्रति उनकी सकारात्मक दृष्टि को देखा जा सकता है।

पुरस्कार और सम्मान

सुमित्रानंदन पंत जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं:

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार: पंत जी को उनकी काव्य कृति "कला और बूढ़ा चांद" के लिए 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार: 1968 में उन्हें हिंदी साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें "चिदंबरा" नामक काव्य संग्रह के लिए मिला।
  • पद्मभूषण: 1961 में भारत सरकार ने उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया।
  • सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार: उन्हें सोवियत संघ द्वारा भारतीय और सोवियत जनता के बीच सांस्कृतिक संबंधों को प्रोत्साहित करने के लिए सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

सुमित्रानंदन पंत जी का साहित्यिक जीवन एक प्रेरणा स्रोत है, और उनकी कविताएँ आज भी पाठकों को मानवता, प्रेम, और प्रकृति की ओर आकर्षित करती हैं। उनका निधन 28 दिसंबर 1977 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में अमर हैं।