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Chapter 2 मीरा ( पद )

Class 10th हिन्दी स्पर्श भाग- 2


मीरा ( पद ) (स्पर्श भाग- 2, कक्षा 10)


कक्षा 10 हिंदी स्पर्श भाग 2 - 'पद' (लेखक: मीरा )

अध्याय: मीरा पद

कक्षा 10 की हिंदी की पुस्तक "स्पर्श" भाग 2 में "मीरा पद" अध्याय में संत मीरा बाई के पदों का संग्रह किया गया है। मीरा बाई भक्ति आंदोलन की प्रमुख कवयित्री थीं, जिन्होंने अपने जीवन को भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया था। उनके पदों में उनकी असीम भक्ति, प्रेम और समर्पण की भावना प्रकट होती है।

"मीरा पद" अध्याय में, मीरा बाई की भक्ति का वह अनूठा स्वरूप देखने को मिलता है, जिसमें वे कृष्ण के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करती हैं। उनके पदों में भक्ति का सजीव चित्रण है, जो पाठकों को भक्ति मार्ग की ओर प्रेरित करता है। मीरा बाई ने सामाजिक बंधनों और कुरीतियों की परवाह किए बिना, अपने आराध्य के प्रति निष्ठा और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।

इस अध्याय की महत्ता इस बात में है कि यह विद्यार्थियों को भक्ति साहित्य की समृद्ध परंपरा से परिचित कराता है। मीरा बाई के पदों के माध्यम से, वे प्रेम, समर्पण, और आत्मिक शांति के महत्व को समझ सकते हैं। यह अध्याय उन्हें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और ईमानदारी से व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में अपने आदर्शों और लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

मीरा बाई के पदों के अध्ययन से विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति, साहित्य और आध्यात्मिक धरोहर की गहराई का अनुभव होता है। उनके पद आज भी भक्ति और प्रेम का मार्गदर्शन करने वाली अमूल्य निधि हैं, जिससे इस अध्याय का साहित्यिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

मीरा बाई का जीवन परिचय और प्रमुख कृतियाँ

जीवन परिचय:

मीरा बाई का जन्म 1503 ईस्वी में राजस्थान के कुड़की गांव (जोधपुर के पास) में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह राठौड़ मेड़ता के राजपूत राजवंश के राजा थे। मीरा बचपन से ही भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। ऐसा कहा जाता है कि बहुत छोटी उम्र में उन्होंने एक साधु से कृष्ण की मूर्ति प्राप्त की और उसी समय से कृष्ण को अपने पति के रूप में मान लिया।

मीरा का विवाह चित्तौड़ के राजा भोजराज से हुआ था, लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही राजा भोजराज की मृत्यु हो गई। इसके बाद, मीरा बाई ने अपना जीवन कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया और राजमहल की सीमाओं को छोड़कर भक्ति के मार्ग पर निकल पड़ीं। उनके भक्ति मार्ग ने उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करने के लिए मजबूर किया, परंतु वे अपने विश्वास से कभी डगमगाईं नहीं। मीरा का जीवन पूरी तरह से कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

प्रमुख कृतियाँ:

  • मीरा के पद - यह उनकी भक्ति का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध संग्रह है, जिसमें उन्होंने भगवान कृष्ण के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को विभिन्न पदों के माध्यम से व्यक्त किया है। ये पद सरल भाषा में गहरे भावों को प्रकट करते हैं।
  • नरसी का मायरा - इस काव्य में मीरा बाई ने कृष्ण के प्रति अपने अनुराग और विरह की भावना को मार्मिक रूप से व्यक्त किया है।
  • राग गोविंद - इस काव्य संग्रह में मीरा ने राग के माध्यम से अपनी भावनाओं को प्रस्तुत किया है, जो भारतीय संगीत और भक्ति साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

पुरस्कार और सम्मान:

मीरा बाई ने अपने जीवनकाल में किसी प्रकार का औपचारिक पुरस्कार या सम्मान प्राप्त नहीं किया, क्योंकि उनका जीवन राजसी ठाट-बाट से दूर था और उन्होंने समाज के भौतिक पहलुओं की अपेक्षा आध्यात्मिकता और भक्ति को महत्व दिया। लेकिन उनकी भक्ति, उनके काव्य, और उनके जीवन की कहानी ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया है। उनकी रचनाएँ आज भी लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, और उन्हें भारत की महानतम संत कवयित्रियों में से एक माना जाता है। भारतीय साहित्य और संस्कृति में मीरा बाई का स्थान अद्वितीय और अडिग है।