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Chapter 4 मैथिलीशरण गुप्त ( मनुष्यता )

Class 10th हिन्दी स्पर्श भाग- 2


मैथिलीशरण गुप्त ( मनुष्यता ) (स्पर्श भाग- 2, कक्षा 10)


कक्षा 10 हिंदी स्पर्श भाग 2 - 'मनुष्यता' (लेखक: मैथिलीशरण गुप्त)

कक्षा 10 की हिंदी की पुस्तक "स्पर्श" भाग 2 में "मनुष्यता" अध्याय में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता "मनुष्यता" शामिल है। मैथिलीशरण गुप्त हिंदी खड़ी बोली के प्रमुख कवियों में से एक थे, और उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, सामाजिक चेतना, और मानवीय मूल्यों का अद्वितीय चित्रण मिलता है।

"मनुष्यता" कविता में गुप्त जी ने मनुष्यता के महत्व और उसकी व्यापकता का वर्णन किया है। उन्होंने इस कविता के माध्यम से यह संदेश दिया है कि मनुष्य को जाति, धर्म, रंग, और भेदभाव से ऊपर उठकर मनुष्यता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। यह कविता इस बात पर जोर देती है कि वास्तविक इंसान वह है, जो दूसरों के दुख को समझता है, उनकी मदद करता है और समानता और प्रेम के साथ समाज में जीवन यापन करता है।

इस अध्याय की महत्ता इस बात में है कि यह विद्यार्थियों को मनुष्यता के मूल्यों से जोड़ता है और उन्हें सिखाता है कि कैसे एक अच्छे इंसान का जीवन जीया जा सकता है। कविता के माध्यम से वे यह समझ सकते हैं कि समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए मनुष्यता का पालन करना आवश्यक है।

मैथिलीशरण गुप्त की "मनुष्यता" कविता न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह नैतिक और सामाजिक शिक्षा के दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह कविता विद्यार्थियों को जीवन के सही आदर्शों का पालन करने, दूसरों के प्रति दया और सहानुभूति रखने, और समाज में समरसता स्थापित करने की प्रेरणा देती है। "मनुष्यता" अध्याय के अध्ययन से वे जीवन में मानवीय मूल्यों की पहचान और महत्व को गहराई से समझ सकते हैं, जो आज के समाज में अत्यंत प्रासंगिक है।

मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय और प्रमुख कृतियाँ

जीवन परिचय: मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के चिरगाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम सेठ रामचरण कनकने और माता का नाम काशीबाई था। गुप्त जी का परिवार समृद्ध और साहित्यिक रुचियों वाला था। मैथिलीशरण गुप्त जी हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि थे, जिन्हें "राष्ट्रकवि" की उपाधि से नवाजा गया। उन्हें आधुनिक हिंदी काव्य के रचनाकारों में एक प्रमुख स्थान प्राप्त है। उनकी शिक्षा घर पर ही हुई और उन्होंने हिंदी, संस्कृत और बंगाली भाषाओं में गहन अध्ययन किया। गुप्त जी महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे, जिससे उनके काव्य में राष्ट्रीयता और सामाजिक सुधार की भावना स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

प्रमुख कृतियाँ: मैथिलीशरण गुप्त जी ने हिंदी साहित्य को कई अमूल्य रचनाएँ दीं, जिनमें से कुछ प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • साकेत - यह उनकी सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य रचना है, जिसमें उन्होंने रामायण की कथा को उर्मिला के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। इस महाकाव्य में भारतीय नारी की पवित्रता और त्याग का चित्रण है।
  • जयद्रथ वध - इस महाकाव्य में महाभारत के जयद्रथ वध प्रसंग का वर्णन है। गुप्त जी ने इस काव्य के माध्यम से युद्ध और शांति का संदेश दिया है।
  • यशोधरा - इस रचना में भगवान बुद्ध की पत्नी यशोधरा के त्याग और उनके संघर्ष को प्रस्तुत किया गया है। यह काव्य नारी के संघर्ष और बलिदान की गाथा है।
  • भारत भारती - यह काव्य संग्रह भारत की स्वतंत्रता संग्राम के समय लिखा गया था। इसमें देशभक्ति की भावना, राष्ट्रीयता, और समाज सुधार के संदेश प्रकट होते हैं।
  • पंचवटी - यह रचना रामायण के पंचवटी प्रसंग पर आधारित है। इसमें राम, सीता और लक्ष्मण के वनवास के जीवन का वर्णन किया गया है।

पुरस्कार और सम्मान: मैथिलीशरण गुप्त जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्हें हिंदी साहित्य में "राष्ट्रकवि" के रूप में सम्मानित किया गया। 1952 में भारत सरकार ने उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामित किया, जिससे उनकी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई। उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया। उनके काव्य ने भारतीय समाज में राष्ट्रीयता और सामाजिक जागरूकता की भावना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मैथिलीशरण गुप्त जी का साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य के लिए अमूल्य है, और उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती हैं। उनका निधन 12 दिसंबर 1964 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य में जीवित हैं।