अध्याय में लेखक लीलाधर मंडलोई की एक कथा शामिल है। लीलाधर मंडलोई हिंदी साहित्य के प्रमुख कथा लेखकों में से एक हैं, और उनकी रचनाएँ सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर आधारित होती हैं।
"तंतरा वामीरो कथा" एक लोककथा है, जिसमें ग्रामीण जीवन की सरलता, नैतिकता और समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है। इस कथा में एक ऐसा पात्र है जो तंतरा (कला) और वामीरो (आशावाद) के माध्यम से जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करता है। कथा के माध्यम से लेखक ने यह दर्शाया है कि जीवन की कठिनाइयों में भी कला और आशा का महत्व कितना बड़ा होता है और ये जीवन को सुंदर और संपूर्ण बनाने में कैसे सहायक होते हैं।
इस अध्याय की महत्ता इस बात में है कि यह विद्यार्थियों को भारतीय लोककथाओं और उनके नैतिक संदेशों से परिचित कराता है। "तंतरा वामीरो कथा" के माध्यम से वे यह समझ सकते हैं कि लोककथाएँ सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं होतीं, बल्कि वे जीवन के महत्वपूर्ण नैतिक और सांस्कृतिक संदेश भी देती हैं।
इस कथा का अध्ययन छात्रों को यह सिखाता है कि जीवन की समस्याओं का सामना करने के लिए कला और सकारात्मक सोच की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथा उन्हें लोककथाओं की विविधता और उनकी सांस्कृतिक महत्वता को समझने में भी मदद करती है। लीलाधर मंडलोई की "तंतरा वामीरो कथा" का साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्व है, जिससे यह अध्याय शैक्षिक और नैतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार लीलाधर मंडलोई का जन्म सन 1954 में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में गुढी नामक गांव में हुआ था। वहीं उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई थी। फिर वे प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए वर्ष 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन की ओर से आमंत्रित किए गए थे। बता दें कि उनके शुरूआती जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र: लीलाधर मंडलोई दूरदर्शन और आकाशवाणी के महानिदेशक रहे हैं। इसके अलावा वे प्रसार भारती बोर्ड के भी सदस्य भी रह चुके हैं। वहीं नौकरी के साथ ही उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं में अनुपम कृतियों का सृजन किया है। उनकी कई रचनाओं में छत्तीसगढ़ के जन जीवन का सजीव चित्रण देखने को मिलता है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह की जनजातियों की लोककथाओं पर लिखा गया उनका गद्य एक समाज शास्त्रीय अध्ययन का अत्यंत प्रामाणिक दस्तावेज है। वहीं अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में भी तमाम तरह के किस्से मशहूर हैं। जिनमें से कुछ को उन्होंने फिर से लिखा है। ऐसा ही एक कथा ‘तताँरा-वामीरो’ है, जिसे विद्यालयों में पढ़ाया जाता है।
लीलाधर मंडलोई (Leeladhar Mandloi Ka Jivan Parichay) को साहित्य, शिक्षा और संपादन के क्षेत्र में विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं: