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Chapter 3 बिहारी ( दोहे )

Class 10th हिन्दी स्पर्श भाग- 2


बिहारी ( दोहे ) (स्पर्श भाग- 2, कक्षा 10)


कक्षा 10 हिंदी स्पर्श भाग 2 - 'दोहे' (लेखक: बिहारी)

कक्षा 10 की हिंदी की पुस्तक "स्पर्श" भाग 2 में "बिहारी दोहे" अध्याय बिहारीलाल के दोहों का संग्रह है। बिहारीलाल हिंदी साहित्य के प्रमुख रीतिकालीन कवि थे, जिनकी रचनाओं में श्रृंगार रस और नीतिपरक भावों का उत्कृष्ट मिश्रण देखने को मिलता है। उनके दोहे संक्षिप्त और सरल होते हुए भी गहरे अर्थ और भावनाओं से परिपूर्ण होते हैं।

इस अध्याय में बिहारीलाल के कुछ चुनिंदा दोहे शामिल हैं, जिनमें जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे प्रेम, समाज, नीति, और व्यवहारिकता का चित्रण किया गया है। बिहारी के दोहों की विशेषता यह है कि वे दो पंक्तियों में ही गंभीर और व्यापक संदेश देने में सक्षम होते हैं। उनके दोहों में न केवल सौंदर्य और श्रृंगार की अभिव्यक्ति है, बल्कि समाज और जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर भी विचार किया गया है।

"बिहारी दोहे" अध्याय की महत्ता इस बात में है कि यह विद्यार्थियों को हिंदी साहित्य के रीतिकालीन काव्य से परिचित कराता है। इन दोहों के माध्यम से वे न केवल साहित्यिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं, बल्कि जीवन के व्यवहारिक और नैतिक दृष्टिकोण को भी समझ सकते हैं। बिहारी के दोहे संक्षेप में बड़ी बातें कहने की कला सिखाते हैं और उन्हें जीवन में सादगी, संतुलन, और विवेक के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

इस अध्याय का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह छात्रों को भाषा के सौंदर्य, काव्य शिल्प, और उसमें निहित गहरे अर्थों को समझने का अवसर प्रदान करता है। बिहारीलाल के दोहे आज भी प्रासंगिक हैं और वे जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन करने वाली एक अनमोल धरोहर हैं।

बिहारी जी का जीवन परिचय और प्रमुख कृतियाँ

जीवन परिचय: बिहारी जी का पूरा नाम बिहारी लाल था। उनका जन्म 1595 ईस्वी के आसपास उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से थे और उनका विवाह राजस्थान के अम्बेर के निकट हुआ। बिहारी जी का अधिकांश जीवन जयपुर के दरबार में बीता, जहाँ वे राजा जयसिंह के दरबार के कवि थे। वे रीतिकाल के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं और अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रेम, भक्ति और नीतिपरक विषयों पर गहन और प्रभावशाली काव्य रचने के लिए प्रसिद्ध हैं। बिहारी जी की भाषा और शैली अत्यंत सरल, किन्तु भावों की गहराई और सूक्ष्मता के लिए प्रसिद्ध है।

प्रमुख कृतियाँ:

  • सतसई (सप्तशती) - यह बिहारी जी की सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसमें 700 दोहों का संग्रह है। इसमें प्रेम, भक्ति, नीति और शृंगार रस का सुंदर मिश्रण है।
  • शृंगार रस - इस काव्य में नायक-नायिका की प्रेम लीलाओं का मनोहारी वर्णन किया गया है।
  • नीति और भक्ति - सतसई में नीति और भक्ति के विषयों पर दोहे भी शामिल हैं, जिनमें जीवन के आदर्श और नैतिकता पर जोर दिया गया है।

पुरस्कार और सम्मान: बिहारी जी ने अपने जीवनकाल में कोई औपचारिक पुरस्कार या सम्मान प्राप्त नहीं किया, लेकिन उनकी काव्य रचनाओं ने उन्हें अमर बना दिया है। उनके दोहे आज भी हिंदी साहित्य में पढ़ाए जाते हैं और उनकी काव्य कला को साहित्य प्रेमियों और विद्वानों द्वारा अत्यधिक सराहा जाता है। राजा जयसिंह ने बिहारी जी की काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें अपने दरबार में प्रमुख स्थान दिया था। बिहारी जी का साहित्यिक योगदान इतना महत्वपूर्ण है कि उन्हें हिंदी के श्रेष्ठ रीतिकालीन कवियों में गिना जाता है।