'सपनों के-से दिन' कहानी में गुरदयाल सिंह ने एक किशोर लड़के की जीवन यात्रा को बेहद संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया है। यह कहानी एक ग्रामीण पृष्ठभूमि में सेट की गई है, जहाँ एक बच्चा अपने सपनों, आकांक्षाओं, और संघर्षों से जूझता है। इस कहानी में किशोरावस्था की मासूमियत, नए अनुभवों का उत्साह, और जीवन के कठोर सत्य का सामना करने की प्रक्रिया को दर्शाया गया है। गुरदयाल सिंह ने बहुत ही सरल और सजीव भाषा में यह कहानी प्रस्तुत की है, जिससे पाठक उस बच्चे के भावनात्मक संघर्षों और आशाओं से गहरे तक जुड़ जाते हैं। यह कहानी मानवीय संवेदनाओं और समाज के यथार्थ का सजीव चित्रण करती है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है।
गुरदयाल सिंह का जन्म 10 जनवरी 1933 को पंजाब के बठिंडा जिले के झनिवाल गाँव में हुआ था। वे एक प्रसिद्ध पंजाबी साहित्यकार थे, जिनका लेखन सामाजिक और ग्रामीण जीवन के यथार्थ को उजागर करने के लिए जाना जाता है। गुरदयाल सिंह की शिक्षा गाँव में ही शुरू हुई और बाद में उन्होंने अध्यापन का कार्य भी किया। उनका लेखन मुख्यतः समाज के निचले तबके, किसानों, मजदूरों और आम लोगों की समस्याओं और संघर्षों को केंद्र में रखता है। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज की असमानताओं, गरीबी, और शोषण को सामने लाने का कार्य किया।
गुरदयाल सिंह का साहित्य आज भी समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने और बदलने के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका लेखन सरल, लेकिन बेहद प्रभावशाली है, जो पाठकों को गहराई से सोचने पर मजबूर करता है। 28 अगस्त 2016 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी और पंजाबी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।