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Chapter 2 गुरदयाल सिंह - सपनो के से दिन

Class 10th हिन्दी संचयन भाग- 2


गुरदयाल सिंह - सपनो के से दिन (संचयन भाग- 2, कक्षा 10)


कक्षा 10 हिंदी संचयन भाग 2 - 'सपनों के-से दिन' (लेखक: गुरदयाल सिंह)

'सपनों के-से दिन' कहानी में गुरदयाल सिंह ने एक किशोर लड़के की जीवन यात्रा को बेहद संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया है। यह कहानी एक ग्रामीण पृष्ठभूमि में सेट की गई है, जहाँ एक बच्चा अपने सपनों, आकांक्षाओं, और संघर्षों से जूझता है। इस कहानी में किशोरावस्था की मासूमियत, नए अनुभवों का उत्साह, और जीवन के कठोर सत्य का सामना करने की प्रक्रिया को दर्शाया गया है। गुरदयाल सिंह ने बहुत ही सरल और सजीव भाषा में यह कहानी प्रस्तुत की है, जिससे पाठक उस बच्चे के भावनात्मक संघर्षों और आशाओं से गहरे तक जुड़ जाते हैं। यह कहानी मानवीय संवेदनाओं और समाज के यथार्थ का सजीव चित्रण करती है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है।

गुरदयाल सिंह जी का जीवन परिचय और प्रमुख कृतियाँ

जीवन परिचय:

गुरदयाल सिंह का जन्म 10 जनवरी 1933 को पंजाब के बठिंडा जिले के झनिवाल गाँव में हुआ था। वे एक प्रसिद्ध पंजाबी साहित्यकार थे, जिनका लेखन सामाजिक और ग्रामीण जीवन के यथार्थ को उजागर करने के लिए जाना जाता है। गुरदयाल सिंह की शिक्षा गाँव में ही शुरू हुई और बाद में उन्होंने अध्यापन का कार्य भी किया। उनका लेखन मुख्यतः समाज के निचले तबके, किसानों, मजदूरों और आम लोगों की समस्याओं और संघर्षों को केंद्र में रखता है। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज की असमानताओं, गरीबी, और शोषण को सामने लाने का कार्य किया।

प्रमुख कृतियाँ:

  • उपन्यास:
    • 'मरही दा दीवा' (जिसका हिंदी अनुवाद 'अँधेरे का दीप' के नाम से हुआ)
    • 'अद्दा चानणी रात'
    • 'अन्नदाता'
    • 'पारसा'
    • 'सग्गी फुल्ल'
  • कहानी संग्रह:
    • 'सपनों के-से दिन'
    • 'रस्ता समुंदर'
    • 'काहणी सड्डी'
  • अन्य:
    • 'शमशान'
    • 'अलग-अलग विभाजन'
    • 'मधु बट्टी'

पुरस्कार और सम्मान:

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975) - उनके उपन्यास 'मरही दा दीवा' के लिए
  • पद्म श्री (1998) - साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार (1999) - उनकी समग्र साहित्यिक उपलब्धियों के लिए
  • पंजाब रतन - पंजाब सरकार द्वारा दिया गया सम्मान

गुरदयाल सिंह का साहित्य आज भी समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने और बदलने के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका लेखन सरल, लेकिन बेहद प्रभावशाली है, जो पाठकों को गहराई से सोचने पर मजबूर करता है। 28 अगस्त 2016 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी और पंजाबी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।