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Chapter 10 स्वयं प्रकाश (नेताजी का चश्मा)

Class 10th हिन्दी क्षितिज भाग -2


कक्षा 10 की एनसीईआरटी पुस्तक "क्षितिज भाग 2" स्वयं प्रकाश (नेताजी का चश्मा)

कक्षा 10 की एनसीईआरटी हिंदी पाठ्यपुस्तक "क्षितिज भाग 2" में शामिल "नेताजी का चश्मा" कहानी प्रसिद्ध लेखक स्वयं प्रकाश द्वारा लिखी गई है। स्वयं प्रकाश हिंदी साहित्य के प्रख्यात कथाकारों में से एक हैं, जिनकी रचनाओं में समाज, राजनीति, और मानवीय संबंधों की गहरी समझ झलकती है.

कहानी का सार:

"नेताजी का चश्मा" एक व्यंग्यात्मक कहानी है, जिसमें लेखक ने समाज और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार और नैतिकता के पतन पर तीखा कटाक्ष किया है। कहानी में एक पुराने स्वतंत्रता सेनानी नेताजी के चश्मे का ज़िक्र है, जो प्रतीक है उन उच्च आदर्शों और मूल्यों का, जिन्हें नेताजी ने अपने जीवन में अपनाया था.

कहानी का मुख्य पात्र एक सरकारी कर्मचारी है, जो नेताजी के चश्मे की देखभाल का ज़िम्मा उठाता है। चश्मा खो जाने पर वह उसे ढूंढने के लिए बहुत प्रयास करता है, लेकिन अंत में उसे एहसास होता है कि आज के समय में नेताजी के आदर्शों का कोई मूल्य नहीं रह गया है। यह कहानी उन मूल्यों के क्षरण को उजागर करती है, जो कभी समाज के लिए आदर्श हुआ करते थे, लेकिन अब केवल औपचारिकता बनकर रह गए हैं.

भावार्थ:

"नेताजी का चश्मा" कहानी के माध्यम से लेखक ने आधुनिक समाज में नैतिकता और आदर्शों के पतन को दर्शाया है। चश्मा यहाँ प्रतीक है उन मूल्यों का, जो अब केवल स्मृति के रूप में बचे हैं। लेखक ने बड़े ही प्रभावशाली ढंग से यह दिखाया है कि कैसे वर्तमान समाज में आदर्शों की बात तो होती है, लेकिन उन्हें जीने और अपनाने का प्रयास नहीं किया जाता.

महत्त्व:

"नेताजी का चश्मा" कहानी का महत्त्व इस बात में है कि यह हमें अपने समाज की सच्चाई से परिचित कराती है। यह कहानी छात्रों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में उन आदर्शों और मूल्यों को अपनाते हैं जिनकी हम बात करते हैं। स्वयं प्रकाश की यह रचना छात्रों को नैतिकता, ईमानदारी, और आदर्शों के महत्त्व को समझने के लिए प्रेरित करती है, और यह भी बताती है कि कैसे समाज को बेहतर बनाने के लिए इन मूल्यों का पालन करना आवश्यक है.