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Chapter 1 माता का आँचल

Class 10th हिन्दी कृतिका भाग -2


माता का आँचल (कृतिका भाग 2, कक्षा 10)

"माता का आँचल" कहानी कृतिका भाग 2 में शामिल एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस कहानी को शिवपूजन सहाय जी ने लिखा है। कहानी में लेखक ने एक बच्चे के दृष्टिकोण से माँ के स्नेह और ममता का अद्वितीय चित्रण किया है। माँ का आँचल बच्चे के लिए सुरक्षा, प्रेम, और अपनत्व का प्रतीक है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने माँ के प्रति बच्चों की निर्भरता और उस भावनात्मक बंधन को उकेरा है, जो हर बच्चे और उसकी माँ के बीच होता है। यह अध्याय न केवल भावनात्मक रूप से संवेदनशील है, बल्कि पाठकों को जीवन के मूल्यों और माँ के महत्व का एहसास भी कराता है।

शिवपूजन सहाय जी

जीवन परिचय: शिवपूजन सहाय जी का जन्म 9 अगस्त 1893 को बिहार के शाहाबाद जिले के उनवलिया गांव (वर्तमान में भोजपुर जिला) में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक, संपादक, और साहित्यकार थे। उनका बचपन कठिनाइयों में बीता, लेकिन उन्होंने शिक्षा के प्रति अपने समर्पण के कारण संघर्षों का सामना करते हुए उच्च शिक्षा प्राप्त की। प्रारंभ में, उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया, लेकिन बाद में वे साहित्य सृजन और संपादन के क्षेत्र में सक्रिय हो गए।
शिवपूजन सहाय जी की लेखनी में हिंदी भाषा की सहजता, सरलता, और प्रभावशीलता देखने को मिलती है। वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे, और उनकी रचनाओं में समाज के प्रति जागरूकता और नैतिकता का संदेश मिलता है।
मुख्य कृतियाँ: शिवपूजन सहाय जी ने विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट साहित्यिक कृतियाँ लिखी हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:
  • देहाती दुनिया - यह उनका प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसमें ग्रामीण भारत के जीवन, समस्याओं और संघर्षों का सजीव चित्रण किया गया है।
  • माता का आँचल - यह कहानी उनकी प्रसिद्ध कहानियों में से एक है, जिसमें एक बच्चे की माँ के प्रति भावनाओं और उसके संघर्षों को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
  • विविध लेखन - शिवपूजन सहाय जी ने अनेक निबंध, संस्मरण, और लेख भी लिखे, जो हिंदी साहित्य के अमूल्य धरोहर हैं।
  • शिक्षा और साहित्य - उन्होंने हिंदी साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, और "माधुरी" पत्रिका के संपादक के रूप में भी कार्य किया।
पुरस्कार और सम्मान: शिवपूजन सहाय जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें साहित्य वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए साहित्यिक जगत में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त किया।
शिवपूजन सहाय जी का निधन 21 जनवरी 1963 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य प्रेमियों के बीच जीवित हैं और उन्हें प्रेरित करती हैं।