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Chapter 4 अहि, ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा

Class 10th हिन्दी कृतिका भाग -2


अहि, ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! (कृतिका भाग 2, कक्षा 10)

"अहि, ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!" कृतिका भाग 2 का एक मार्मिक और संवेदनशील अध्याय है, जिसे फणीश्वरनाथ रेणु ने लिखा है। इस कहानी में ग्रामीण जीवन की सरलता और उसमें निहित गहन संवेदनाओं का चित्रण किया गया है। कहानी में लेखक ने ग्रामीण महिलाओं के जीवन की कठिनाइयों और उनके संघर्षों को बड़े ही सजीव और भावनात्मक तरीके से प्रस्तुत किया है। इस कहानी में एक विशेष लोकगीत के माध्यम से नारी जीवन की वेदनाओं और उसकी संघर्षशीलता को दिखाया गया है। "अहि, ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!" पाठकों को ग्रामीण संस्कृति और जीवन के प्रति एक नई दृष्टि प्रदान करता है, और सामाजिक संदर्भों में महिलाओं की स्थिति पर सोचने के लिए प्रेरित करता है।

फणीश्वरनाथ रेणु जी

जीवन परिचय: फणीश्वरनाथ रेणु जी का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया जिले के औराही हिंगना नामक गाँव में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के प्रमुख कथाकार और उपन्यासकार थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई, जिसके बाद उन्होंने नेपाल और पटना से उच्च शिक्षा प्राप्त की। रेणु जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे और उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। उनके साहित्य में ग्रामीण भारत की सजीव झलक देखने को मिलती है, जिसे उन्होंने अपने अनुभवों और संवेदनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया।
रेणु जी का लेखन सरल, संवेदनशील और यथार्थवादी है। वे प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले साहित्यकार माने जाते हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में क्षेत्रीयता और आंचलिकता का प्रभावशाली चित्रण किया। उनके साहित्य में बिहार के ग्रामीण जीवन, वहाँ के लोगों के संघर्ष, संस्कृति, और लोक जीवन का विस्तृत वर्णन मिलता है।
मुख्य कृतियाँ: फणीश्वरनाथ रेणु जी ने उपन्यास, कहानियाँ, और निबंध जैसी विधाओं में लेखन किया। उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:
  • उपन्यास:
    • मैला आँचल (1954): यह रेणु जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण उपन्यास है। इस उपन्यास में उन्होंने बिहार के पूर्णिया जिले के ग्रामीण जीवन और वहाँ के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश का सजीव चित्रण किया है। "मैला आँचल" को हिंदी साहित्य में आंचलिक उपन्यास की श्रेणी में रखा जाता है और इसे हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर माना जाता है।
    • परती परिकथा (1957): यह उपन्यास बिहार के गाँवों की कठिनाइयों, वहाँ के किसानों की समस्याओं और उनके संघर्षों का मार्मिक चित्रण करता है।
    • दीर्घतपा: यह उपन्यास भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं को उजागर करता है।
  • कहानी संग्रह:
    • ठुमरी: इस कहानी संग्रह में ग्रामीण जीवन की विविधता और उसमें छिपी मानवीय संवेदनाओं का सजीव चित्रण किया गया है।
    • पंचलाइट: यह कहानी बिहार के गाँवों की सामाजिक संरचना और वहाँ के लोगों के जीवन को प्रदर्शित करती है।
  • निबंध और रेखाचित्र:
    • ऋणजल-धनजल: इसमें रेणु जी के जीवन के अनुभवों और विचारों का संग्रह है, जो उनके गहन सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
पुरस्कार और सम्मान:फणीश्वरनाथ रेणु जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
  • पद्मश्री (1970): भारतीय साहित्य और समाज में उनके योगदान के लिए उन्हें इस उच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया।
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार: रेणु जी को उनके उपन्यासों और कहानियों के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया।
  • मैला आँचल: इस उपन्यास को न केवल साहित्यिक जगत में बल्कि आम पाठकों के बीच भी व्यापक सराहना मिली, और इसे हिंदी साहित्य का एक मील का पत्थर माना गया।
फणीश्वरनाथ रेणु जी का निधन 11 अप्रैल 1977 को हुआ, लेकिन उनके साहित्यिक योगदान ने उन्हें अमर कर दिया है। उनका लेखन आज भी हिंदी साहित्य के पाठकों के बीच उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है, जितना उनके जीवनकाल में था। उनकी रचनाएँ सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का दर्पण हैं, जो भारतीय ग्रामीण जीवन को गहराई से समझने में सहायता करती हैं।