अपठित बोध
अपठित बोध ‘अपठित’ शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘unseen’ का समानार्थी है। इस शब्द की रचना ‘पाठ’ मूल शब्द में ‘अ’ उपसर्ग और ‘इत’ प्रत्यय जोड़कर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है-‘बिना पढ़ा हुआ।’ अर्थात गद्य या काव्य का ऐसा अंश जिसे पहले न पढ़ा गया हो। परीक्षा में अपठित गद्यांश और काव्यांश पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। इस तरह के प्रश्नों को पूछने का उद्देश्य छात्रों की समझ अभिव्यक्ति कौशल और भाषिक योग्यता का परख करना होता है।
अपठित गद्यांश
अपठित गद्यांश अपठित गद्यांश प्रश्नपत्र का वह अंश होता है जो पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकों से नहीं पूछा जाता है। यह अंश साहित्यिक पुस्तकों पत्र-पत्रिकाओं या समाचार-पत्रों से लिया जाता है। ऐसा गद्यांश भले ही निर्धारित पुस्तकों से हटकर लिया जाता है परंतु, उसका स्तर, विषय वस्तु और भाषा-शैली पाठ्यपुस्तकों जैसी ही होती है।
प्रायः छात्रों को अपठित अंश कठिन लगता है और वे प्रश्नों का सही उत्तर नहीं दे पाते हैं। इसका कारण अभ्यास की कमी है। अपठित गद्यांश को बार-बार हल करने से –
अपठित गद्यांश के प्रश्नों को कैसे हल करें –
अपठित गद्यांश के प्रश्नों को कैसे हल करेंअपठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्नः 1.
आकाश गंगा को यह नाम क्यों मिला?
उत्तर:
आकाश में पृथ्वी से
देखने पर आकाशगंगा नदी की धारा की भाँति दिखाई देती है, इसलिए इसका नाम आकाशगंगा
पड़ा।
प्रश्नः 2.
पृथ्वी से कितनी आकाशगंगा दिखाई देती है ? उनके नाम क्या हैं
?
उत्तर:
पृथ्वी से केवल एक आकाशगंगा दिखाई देती है। इसका नाम ‘स्पाइरल
गैलेक्सी’ है।
प्रश्नः 3.
आकाशगंगा में कितने तारे हैं ? उनमें सूर्य की स्थिति क्या
है?
उत्तर:
आकाशगंगा में लगभग बीस अरब तारे हैं, जिनमें अनेक सूर्य से भी
बड़े हैं। सूर्य इसी आकाशगंगा का एक सदस्य है जो इसके केंद्र से दूर इसकी एक भुजा
पर स्थित है।
प्रश्नः 4.
आकाशगंगा में उभार और मछली की भाँति भुजाएँ निकलती क्यों दिखाई
पड़ती हैं ?
उत्तर:
आकाशगंगा के केंद्र में तारों का जमावड़ा है। यही जमावड़ा
उभार की तरह दिखाई देता है। आकाशमंडल में अन्य तारे धूल और गैस के बादलों में समाए
हुए हैं। इनकी स्थिति देखने में मछली की भुजाओं की भाँति निकलती-सी प्रतीत होती
हैं।
प्रश्नः 5.
प्रकाश वर्ष क्या है? गद्यांश में इसका उल्लेख क्यों किया गया
है?
उत्तर:
प्रकाशवर्ष लंबी दूरी मापने की इकाई है। एक प्रकाशवर्ष प्रकाश
द्वारा एक वर्ष में तय की गई दूरी होती है। गद्यांश में इसका उल्लेख आकाशगंगा की
विशालता बताने के लिए किया गया है, जिसकी लंबाई एक लाख प्रकाश वर्ष है।
उदाहरण (उत्तर सहित)
कुछ अपठित गद्यांशों के उदाहरण दिए जा रहे हैं। छात्र इनका अभ्यास करें।
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
1. भारत में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य देश को खाद्यान्न मामले में आत्मनिर्भर बनाना था, लेकिन इस बात की आशंका किसी को नहीं थी कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल न सिर्फ खेतों में, बल्कि खेतों से बाहर मंडियों तक में होने लगेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग खाद्यान्न की गुणवत्ता के लिए सही नहीं है, लेकिन जिस रफ़्तार से देश की आबादी बढ़ रही है, उसके मद्देनज़र फ़सलों की अधिक पैदावार ज़रूरी थी। समस्या सिर्फ रासायनिक खादों के प्रयोग की ही नहीं है। देश के ज़्यादातर किसान परंपरागत कृषि से दूर होते जा रहे हैं।
दो दशक पहले तक हर किसान के यहाँ गाय, बैल और भैंस खूटों से बँधे मिलते थे। अब इन मवेशियों की जगह ट्रैक्टर-ट्राली ने ले ली है। परिणामस्वरूप गोबर और घूरे की राख से बनी कंपोस्ट खाद खेतों में गिरनी बंद हो गई। पहले चैत-बैसाख में गेहूँ की फ़सल कटने के बाद किसान अपने खेतों में गोबर, राख और पत्तों से बनी जैविक खाद डालते थे। इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा-शक्ति बरकरार रहती थी, बल्कि इससे किसानों को आर्थिक लाभ के अलावा बेहतर गुणवत्ता वाली फसल मिलती थी।
प्रश्नः 1.
हमारे देश में हरित क्रांति का उद्देश्य क्या
था?
उत्तर:
हमारे देश में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य था – देश को
खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाना।
प्रश्नः 2.
खाद्यान्नों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किनका प्रयोग सही नहीं
था?
उत्तर:
खाद्यान्नों की गुणवत्ता बनाए रखने हेतु रासायनिक उर्वरक और
कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक नहीं था।
प्रश्नः 3.
विशेषज्ञ हरित क्रांति की सफलता के लिए क्या आवश्यक मानने लगे और
क्यों?
उत्तर:
विशेषज्ञ हरित क्रांति की सफलता हेतु रासायनिक उर्वरक और
कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक मानते थे क्योंकि देश की आबादी
बहुत तेजी से बढ़ रही
थी। इसका पेट भरने के लिए फ़सल के भरपूर उत्पादन की आवश्यकता थी।
प्रश्नः 4.
हरित क्रांति ने किसानों को परंपरागत कृषि से किस तरह दूर कर
दिया?
उत्तर:
हरित क्रांति के कारण किसान खेती के पुराने तरीके से दूर होते
गए। वे खेती में हल-बैलों की जगह ट्रैक्टर की मदद से कृषि कार्य करने लगे। इससे बैल
एवं अन्य जानवर अनुपयोगी होते गए।
प्रश्नः 5.
हरित क्रांति का मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर क्या असर हुआ? इसे
समाप्त करने के लिए क्या-क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तर:
हरित क्रांति की सफलता
के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से ज़मीन प्रदूषित होती गई, जिससे
वह अपनी उपजाऊ क्षमता खो बैठी। इसे समाप्त करने के लिए खेतों में घूरे की राख और
कंपोस्ट की खाद के अलावा जैविक खाद का प्रयोग भी करना चाहिए।
2. ताजमहल, महात्मा गांधी और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र-इन तीन बातों से दुनिया में हमारे देश की ऊँची पहचान है। ताजमहल भारत की अंतरात्मा की, उसकी बहुलता की एक धवल धरोहर है। यह सांकेतिक ताज आज खतरे में है। उसको बचाए रखना बहुत ज़रूरी है।
मजहबी दर्द को गांधी दूर करता गया। दुनिया जानती है, गांधीवादी नहीं जानते हैं। गांधीवादी उस गांधी को चाहते हैं जो कि सुविधाजनक है। राजनीतिज्ञ उस गांधी को चाहते हैं जो कि और भी अधिक सुविधाजनक है। आज इस असुविधाजनक गांधी का पुनः आविष्कार करना चाहिए, जो कि कड़वे सच बताए, खुद को भी औरों को भी।
अंत में तीसरी बात लोकतंत्र की। हमारी जो पीड़ा है, वह शोषण से पैदा हुई है, लेकिन आज विडंबना यह है कि उस शोषण से उत्पन्न पीड़ा का भी शोषण हो रहा है। यह है हमारा ज़माना, लेकिन अगर हम अपने पर विश्वास रखें और अपने पर स्वराज लाएँ तो हमारा ज़माना बदलेगा। खुद पर स्वराज तो हम अपने अनेक प्रयोगों से पा भी सकते हैं, लेकिन उसके लिए अपनी भूलें स्वीकार करना, खुद को सुधारना बहुत आवश्यक होगा
प्रश्नः 1.
संसार में भारत की प्रसिद्धि का कारण क्या है?
उत्तर:
संसार
में भारत की प्रसिद्धि के तीन कारण हैं-ताजमहल, महात्मा गांधी और लोकतांत्रिक
प्रणाली।
प्रश्नः 2.
गांधीवादी आज किस तरह के गांधी को चाहते हैं ?
गांधीवादी आज उस
गांधी को चाहते हैं जो सुविधाजनक है।
प्रश्नः 3.
हमारे देश के लिए ताजमहल का क्या महत्त्व है? आज इसे किस स्थिति
से गुजरना पड़ रहा है?
उत्तर:
हमारे देश के लिए ताजमहल का विशेष महत्त्व है।
यह हमारे देश की अंतरात्मा की उसकी बहुलता की धरोहर है। आज
प्रदूषण के कारण यह
खतरे की स्थिति से गुजर रहा है। इसकी रक्षा करना आवश्यक हो गया है।
प्रश्नः 4.
राजनीतिज्ञ किस गांधी की आकांक्षा रखते हैं ? वास्तव में आज कैसे
गांधी की ज़रूरत है?
उत्तर:
राजनीतिज्ञ उस गांधी की आकांक्षा रखते हैं जो और
भी सुविधाजनक हो। वास्तव में आज ऐसे गांधी की आवश्यकता है जो खुद को भी कड़वा सच
बताए और दूसरों को भी बताए।
प्रश्नः 5.
ज़माना बदलने के लिए क्या आवश्यक है ? इसके लिए हमें क्या करना
चाहिए?
उत्तर:
ज़माना बदलने के लिए हमें स्वयं पर स्वराज लाना होगा। इसे पाने
के लिए हमें अपने पर अनेक प्रयोग करने होंगे, अपनी भूलें स्वीकारनी होंगी तथा खुद
को सुधारना होगा।
3. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययनों और संयुक्त राष्ट्र की मानव-विकास रिपोर्टों ने भारत के बच्चों में कुपोषण की व्यापकता के साथ-साथ बाल मृत्यु-दर और मातृ मृत्यु दर का ग्राफ़ काफ़ी ऊँचा रहने के तथ्य भी बार-बार जाहिर किए हैं। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट बताती है कि लड़कियों की दशा और भी खराब है।
पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के बाद, बालिग होने से पहले लड़कियों को ब्याह देने के मामले दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा भारत में होते हैं। मातृ-मृत्यु दर और शिशु मृत्यु-दर का एक प्रमुख कारण यह भी है। यह रिपोर्ट ऐसे समय जारी हुई है जब बच्चों के अधिकारों से संबंधित वैश्विक घोषणा-पत्र के पच्चीस साल पूरे हो रहे हैं। इस घोषणा-पत्र पर भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों ने भी हस्ताक्षर किए थे। इसका यह असर ज़रूर हुआ कि बच्चों की सेहत, शिक्षा, सुरक्षा से संबंधित नए कानून बने, मंत्रालय या विभाग गठित हुए, संस्थाएँ और आयोग बने।
घोषणा-पत्र से पहले की तुलना में कुछ सुधार भी दर्ज हआ है। पर इसके बावजूद बहुत सारी बातें विचलित करने वाली हैं। मसलन, देश में हर साल लाखों बच्चे गुम हो जाते हैं। लाखों बच्चे अब भी स्कूलों से बाहर हैं। श्रम-शोषण के लिए विवश बच्चों की तादाद इससे भी अधिक है वे स्कूल में पिटाई और घरेलू हिंसा के शिकार होते रहते हैं।
परिवार के स्तर पर देखें तो संतान का मोह काफ़ी प्रबल दिखाई देगा, मगर दूसरी ओर बच्चों के प्रति सामाजिक संवेदनशीलता बहुत क्षीण है। कमज़ोर तबकों के बच्चों के प्रति तो बाकी समाज का रवैया अमूमन असहिष्णुता का ही रहता है। क्या ये स्वस्थ समाज के लक्षण हैं? (All India 2015)
प्रश्नः 1.
यूनिसेफ की रिपोर्ट में किस बात पर चिंता व्यक्त की गई है
?
उत्तर:
यूनिसेफ की रिपोर्ट में नवजात बच्चों और माताओं की ऊँची मृत्युदर पर
चिंता व्यक्त की गई है।
प्रश्नः 2.
घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने का उद्देश्य क्या
था?
उत्तर:
घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने का उद्देश्य था बच्चों एवं माताओं
की मृत्युदर में कमी लाकर उनकी दशा सुधारने का प्रयास करना।
प्रश्नः 3.
भारत-पाकिस्तान किस समस्या से जूझ रहे हैं? इसका मुख्य कारण क्या
है?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान दोनों ही नवजात बच्चों एवं माताओं की ऊची
मृत्युदर की समस्या से जूझ रहे हैं। इसका मुख्य कारण वयस्क होने से पहले ही
लड़कियों का विवाह कर देना है। इस अवस्था में लड़कियाँ गर्भधारण के योग्य नहीं होती
हैं।
प्रश्नः 4.
बच्चों के अधिकारों से संबंधित घोषणापत्र जारी होने के बाद क्या
सुधार हुआ और ऐसी कौन-सी बातें हैं जो हमें दुखी करती हैं?
उत्तर:
बच्चों के
अधिकारों से संबंधित घोषणापत्र जारी होने के बाद बच्चों की सेहत, शिक्षा सुरक्षा
आदि से जुड़े कानून बने पर प्रतिवर्ष लाखों बच्चों का गुम होना, लाखों बच्चों का
स्कूल न जाना, बाल श्रमिक बनने को विवश होना तथा पिटाई एवं हिंसा का शिकार होना आदि
हमें दुखी करती है।
प्रश्नः 5.
क्या ये स्वस्थ समाज के लक्षण हैं ? ऐसा किस स्थिति को देखकर कहा
गया है और क्यों?
उत्तर:
गरीब वर्ग के बच्चों के प्रति समाज का रवैया अच्छा न
होना, उनके प्रति असहिष्णुता की भावना रखना आदि स्थिति को देखकर ऐसा कहा गया है
क्योंकि एक ओर परिवार में संतान के प्रति काफ़ी मोह दिखाई देता है तो सामाजिक स्तर
पर लोग संवेदनहीन
बन गए हैं।
4. चंपारण सत्याग्रह के बीच जो लोग गांधी जी के संपर्क में आए वे आगे चलकर देश के निर्माताओं में गिने गए। चंपारण में गांधी जी न सिर्फ सत्य और अहिंसा का सार्वजनिक हितों में प्रयोग कर रहे थे बल्कि हलुवा बनाने से लेकर सिल पर मसाला पीसने और चक्की चलाकर गेहूँ का आटा बनाने की कला भी उन बड़े वकीलों को सिखा रहे थे, जिन्हें गरीबों की अगुवाई की जिम्मेदारी सौंपी जानी थी। अपने इन आध्यात्मिक प्रयोगों के माध्यम से वे देश की गरीब जनता की सेवा करने और उनकी तकदीर बदलने के साथ देश को आजाद कराने के लिए समर्पित व्यक्तियों की एक ऐसी जमात तैयार करना चाह रहे थे जो सत्याग्रह की भट्ठी में उसी तरह तपकर निखरे, जिस तरह भट्ठी में सोना तपकर निखरता और कीमती बनता है।
गांधी जी की मान्यता थी कि एक प्रतिष्ठित वकील और हज़ामत बनाने वाले हज़्ज़ाम में पेशे के लिहाज़ से कोई फ़र्क नहीं, दोनों की हैसियत एक ही हैं। उन्होंने पसीने की कमाई को सबसे अच्छी कमाई माना और शारीरिक श्रम को अहमियत देते हुए उसे उचित प्रतिष्ठा व सम्मान दिया था। कोई काम बड़ा नहीं, कोई काम छोटा नहीं, इस मान्यता को उन्होंने प्राथमिकता दी ताकि साधन शुद्धता की बुनियाद पर एक ठीक समाज खड़ा हो सके। आज़ाद हिंदुस्तान आत्मनिर्भर, स्वावलंबी और आत्म-सम्मानित देश के रूप में विश्व-बिरादरी के बीच अपनी एक खास पहचान बनाए और फिर उसे बरकरार भी रखे।
प्रश्नः 1.
किसी काम या पेशे के बारे में गांधी जी की मान्यता क्या
थी?
उत्तर:
किसी काम या पेशे के बारे में गांधी जी की मान्यता यह थी कि एक
प्रसिद्ध वकील और हज्जाम के पेशे में कोई अंतर नहीं है।
प्रश्नः 2.
गांधी जी सबसे अच्छी कमाई किसे मानते थे?
उत्तर:
गांधी जी
पसीने की कमाई को सबसे अच्छी कमाई मानते थे।
प्रश्नः 3.
चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी आध्यात्मिक प्रयोग क्यों कर
रहे थे?
उत्तर:
चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी आध्यात्मिक प्रयोग इसलिए
कर रहे थे ताकि देश की गरीब जनता की सेवा करने तथा देश को आजाद कराने के लिए ऐसे
लोगों की फ़ौज तैयार की जा सके जो उद्देश्य के प्रति समर्पित रहें।
प्रश्नः 4.
गांधी जी लोगों को शारीरिक श्रम का महत्त्व किस तरह समझा रहे
थे?
उत्तर:
गांधी जी लोगों को शारीरिक श्रम समझाने के लिए उच्चशिक्षित लोगों
को हलुवा बनाने और सिल पर मसाला पीसने जैसे काम सिखा रहे थे ताकि लोग शारीरिक श्रम
में रुचि लें।
प्रश्नः 5.
शारीरिक श्रम को महत्त्व देने और हर काम को समान समझने के पीछे
गांधी जी की दूरदर्शिता क्या थी?
उत्तर:
शारीरिक श्रम को महत्त्व देने और हर
काम को समान समझने के पीछे गांधी जी की दूरदर्शिता यह थी कि इससे एक स्वस्थ समाज का
निर्माण हो सके जिससे देश हमारा आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनकर दुनिया में एक अलग
पहचान बनाए। ।
5. आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आज़ादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है? क्या एक आज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है उसमें?
बेशक समाज बदल रहा है मगर यथार्थ की परतें कितनी बहुआयामी और जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी। (Foreign 2015)
प्रश्नः 1.
नारी की वास्तविक आज़ादी कब होगी?
उत्तर:
नारी की वास्तविक
आज़ादी तब होगी जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह मन से आज़ादी महसूस कर सकेगी।
प्रश्नः 2.
कामयाबी, नैतिकता शब्दों से प्रत्यय अलग करके मूलशब्द भी
लिखिए।
उत्तर:
प्रश्नः 3.
कैसे कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं बल्कि पूरी दुनिया
महिलाओं की है?
उत्तर:
वर्तमान समय में नारी प्रौदयोगिकी, सेना, वायुसेना,
विज्ञान आदि क्षेत्र में तरह-तरह के रूपों में सफलता के झंडे गाड़ रही है। उसने हर
क्षेत्र में अपनी पहचान छोड़ी है। इस तरह कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं, बल्कि
पूरी दुनिया महिलाओं की हैं।
प्रश्नः 4.
दूरदराज़ के क्षेत्रों में लेखक को महिलाओं की आज़ादी पर संदेह
क्यों लगता है ?
उत्तर:
दूरदराज के क्षेत्रों एवं ग्रामीण अंचलों में महिलाओं
की आज़ादी के बारे में लेखक को इसलिए संदेह लगता है क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में
महिलाएँ स्वतंत्र मनुष्य की भाँति अपना फैसला स्वयं लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने का
साहस नहीं कर पा रही हैं।
प्रश्नः 5.
नारी जब परिवार में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वह कमज़ोर क्यों
पड़ जाती है?
उत्तर:
नारी जब परिवार में लोकतंत्र लाना चाहती है तो इसलिए
कमज़ोर पड़ जाती है क्योंकि तब इसकी राह में धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण,
सहनशीलता, नैतिकता की बात सामने आ जाती है और परिवार की स्थिरता के लिए उसे समर्पण
भाव अपनाना पड़ता हैं।
6. अकाल के बीच भी अच्छे काम और अच्छे विचार का एक सुंदर छोटा सा उदाहरण राजस्थान के अलवर क्षेत्र का है जहाँ तरुण भारत संघ पिछले बीस बरस से काम कर रहा है। वहाँ पहले अच्छा विचार आया तालाबों का, हर नदी, नाले को छोटे-छोटे बाँधों से बाँधने का। इस तरह वहाँ आसपास के कुछ और जिलों के कोई 600 गाँवों ने बरसों तक वर्षा की एकएक बूंद को सहेज लेने का काम चुपचाप किया। इन तालाबों, बाँधों ने वहाँ सूखी पड़ी पाँच नदियों को ‘सदानीरा’ का नाम वापस दिलाया।
अच्छे विचारों से अच्छा काम हुआ और फिर आई चुनौती भरे अकाल की पहली सूचना। नदियों में, तालाबों में, कुओं में वहाँ तब भी पानी लबालब भरा था। फिर भी इस क्षेत्र के लोगों ने, किसानों ने आज से सात-आठ माह पहले यह निर्णय किया कि पानी कम गिरा है इसलिए ऐसी फ़सलें नहीं बोनी चाहिए जिनकी प्यास ज़्यादा होती है। तो कम पानी लेने वाली फ़सलें लगाई गईं। इसमें उन्हें कुछ आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा पर आज यह क्षेत्र अकाल के बीच में एक बड़े हरे द्वीप की तरह खड़ा है। यहाँ सरकार को न तो टैंकरों से पानी ढोना पड़ रहा है न अकाल राहत का पैसा बाँटना पड़ा है। गाँव के लोग, किसी के आगे हाथ नहीं पसार रहे हैं।
उनका माथा ऊँचा है। पानी के उम्दा काम ने उनके स्वाभिमान की भी रक्षा की है। अलवर में नदियाँ एक दूसरे से जोड़ी नहीं गई हैं। यहाँ के लोग अपनी नदियों से, अपने तालाबों से जुड़े हैं। यहाँ पैसा नहीं बहाया गया है, पसीना बहाया है, लोगों ने और उनके अच्छे काम और अच्छे विचारों ने अकाल को एक दर्शक की तरह पाल के किनारे खड़ा कर दिया है। (Foreign 2015)
प्रश्नः 1.
तरुण भारत संघ कहाँ काम कर रहा है?
उत्तर:
तरुण भारत संघ
राजस्थान के अलवर क्षेत्र में काम कर रहा है।
प्रश्नः 2.
लोगों के परिश्रम के कारण अकाल की स्थिति कैसी हो गई
है?
उत्तर:
लोगों के परिश्रम के कारण अकाल की स्थिति एक दर्शक की भाँति हो
गई।
प्रश्नः 3.
‘सदानीरा’ किन्हें कहा जाता है ? राजस्थान की पाँच नदियों को यह
नाम कैसे वापस मिला?
उत्तर:
‘सदानीरा’ उन नदियों को कहा जाता है जिसमें
बारहों महीने जल भरा रहता है। राजस्थान के अलवर क्षेत्र में तालाबों, नदी, नालों को
छोटे-छोटे बाँधों से बाँधने के कारण वर्षा की एक-एक बूंद बचाने का काम किया गया
जिससे नदियाँ सदानीरा हो उठी।
प्रश्नः 4.
राजस्थान के किसानों ने अकाल का किस तरह मुकाबला
किया?
उत्तर:
राजस्थान के किसानों को पता लगा कि वर्षा कम हुई है, उन्होंने
ऐसी फ़सलें बोने का निर्णय लिया जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है। इस तरह अकाल
के बीच भी यह क्षेत्र हरा-भरा बना रहा और अकाल का प्रभाव कम हो गया।
प्रश्नः 5.
अच्छे विचार लोगों का स्वाभिमान बनाए रखने में सहायक होते हैं,
कैसे?
उत्तर:
अच्छे विचारों से ही अच्छा काम होता है। लोगों ने यह अच्छा काम
नदियों से अपने तालाबों को जोड़कर किया। इस कारण उन्हें सरकारी मदद और अकाल राहत के
पैसे का इंतज़ार नहीं करना पड़ा और न हाथ फैलाना पड़ा। इससे उनका स्वाभिमान ज्यों
का त्यों बना रहा।
7. गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को मानव-मात्र की समानता और
स्वतंत्रता के प्रति जागरूक बनाने का प्रयत्न
किया। इसी के साथ उन्होंने
भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न भी किए। गांधी जी
ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का भेद ही
मिटाना पर्याप्त नहीं समझते थे, वरन् उनके बीच एक मानवीय स्वाभाविक स्नेह और
हार्दिक सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे। इसके बाद जब वे भारत आए, तब
उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रूप दिया।
विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध संगठित किया, उसकी मिसाल संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो जिसके लिए विश्व मंच पर भारत का माथा नीचा हो ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सद्भावना, स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता-रूपी टहनी के ऐसे पुष्प हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं। (All India 2014)
प्रश्नः 1.
अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के पीड़ित होने का क्या कारण
था?
उत्तर:
अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के पीड़ित होने का कारण रंग-भेद और
सामाजिक स्तर से संबंधित भेदभाव था।
प्रश्नः 2.
मिसाल, प्रतिशोध शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
मिसाल –
उदाहरण
प्रश्नः 3.
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के बीच
क्या-क्या कार्य किए और क्यों?
उत्तर:
प्रतिशोध – बदला लेना
प्रश्नः 4.
भारत आने पर गांधी जी ने अपने प्रयोग को किस तरह व्यापक रूप
दिया?
उत्तर:
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के बीच समानता
और जागरूकता बनाए रखने का कार्य किया। इसका कारण यह था कि वे काले-गोले या ऊँच-नीच
का भेद-भाव मिटाकर लोगों में स्नेह और हार्दिक सहयोग स्थापित करना चाहते थे।
प्रश्नः 5.
गांधी जी प्रतिरोध में कटुता की भावना क्यों नहीं लाने देना चाहते
थे? इसके लिए उन्होंने क्या किया?
उत्तर:
गांधी जी अंग्रेजों के विरुद्ध
प्रतिरोध में कटुता की भावना इसलिए नहीं लाने देना चाहते थे ताकि विश्व स्तर पर
भारत का माथा नीचा न होने पाए। इसके लिए उन्होंने प्रेम, मैत्री, बंधुत्व,
सद्भावना, स्नेह आदि गुणों को अपनाए रखा।
8. तिलक ने हमें स्वराज का सपना दिया और गांधी ने उस सपने को दलितों और स्त्रियों से जोड़कर एक ठोस सामाजिक अवधारणा के रूप में देश के सामने ला रखा। स्वतंत्रता के उपरांत बड़े-बड़े कारखाने खोले गए, वैज्ञानिक विकास भी हुआ, बड़ी-बड़ी योजनाएँ भी बनीं, किंतु गांधीवादी मूल्यों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता सीमित होती चली गई। दुर्भाग्य से गांधी के बाद गांधीवाद को कोई ऐसा व्याख्याकार न मिला जो राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संदर्भो में गांधी के सोच की समसामयिक व्याख्या करता। सो यह विचार लोगों में घर करता चला गया कि गांधीवादी विकास का मॉडल धीमे चलने वाला और तकनीकी प्रगति से विमुख है। उस पर ध्यान देने से हम आधुनिक वैज्ञानिक युग की दौड़ में पिछड़ जाएँगे। कहना न होगा कि कुछ लोगों की पाखंडी जीवन शैली ने भी इस धारणा को और पुष्ट किया।
इसका परिणाम यह हुआ कि देश में बुनियादी तकनीकी और औद्योगिक प्रगति तो आई पर देश के सामाजिक और वैचारिकढाँचे में ज़रूरी बदलाव नहीं लाए गए। सो तकनीकी विकास ने समाज में व्याप्त व्यापक फटेहाली, धार्मिक कूपमंडूकता और जातिवाद को नहीं मिटाया। (Delhi 2014)
प्रश्नः 1.
गांधी जी ने स्वराज के सपने को सामाजिक अवधारणा का रूप कैसे
दिया?
उत्तर:
गांधी जी ने स्वराज के सपने को सामाजिक अवधारणा का रूप देने के
लिए देश की महिलाओं और दलितों को जोड़ा।
प्रश्नः 2.
स्वतंत्रता, प्रतिबद्धता शब्दों में प्रयुक्त उपसर्ग, मूलशब्द और
प्रत्यय अलग कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नः 3.
स्वतंत्रता के बाद गांधीवादी मूल्यों की क्या दशा हुई और
क्यों?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद लोगों द्वारा गांधीवादी मूल्यों की उपेक्षा
शुरू कर दी गई क्योंकि गांधी जी की मृत्यु के बाद गांधीवाद का कोई ऐसा व्याख्या
करने वाला न मिला जो राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक संदर्भो में गांधी जी के विचारों
की समसामयिक व्याख्या करता।
प्रश्नः 4.
गांधीवादी मूल्य आजादी के बाद लोगों के आकर्षण का केंद्र-बिंदु
क्यों नहीं बन सके?
उत्तर:
आज़ादी के बाद गांधीवादी मूल्य लोगों के आकर्षण का
केंद्र-बिंदु इसलिए नहीं बन सके क्योंकि लोग यह मानने लगे कि गांधीवादी विकास का
मॉडल धीरे चलने वाला है। इससे हम वैज्ञानिक युग की दौड़ में पीछे रह जाएँगे।।
प्रश्नः 5.
गांधीवादी मूल्यों की उपेक्षा का परिणाम क्या
हुआ?
उत्तर:
गांधीवादी मूल्यों की उपेक्षा का यह परिणाम हआ कि देश ने
बुनियादी, तकनीकी और औद्योगिक प्रगति तो की पर देश के सामाजिक-वैचारिक ढाँचे में
बदलाव न लाने के कारण गरीबी, धर्मांधता और जातिवाद के ज़हर को कम नहीं किया जा
सका।
9. कहा जाता है कि हमारा लोकतंत्र यदि कहीं कमज़ोर है तो उसकी एक बड़ी वजह हमारे राजनीतिक दल हैं। वे प्रायः अव्यवस्थित हैं, अमर्यादित हैं और अधिकांशतः निष्ठा और कर्मठता से संपन्न नहीं हैं। हमारी राजनीति का स्तर प्रत्येक दृष्टि से गिरता जा रहा है। लगता है उसमें सुयोग्य और सच्चरित्र लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। लोकतंत्र के मूल में लोकनिष्ठा होनी चाहिए, लोकमंगल की भावना और लोकानुभूति होनी चाहिए और लोकसंपर्क होना चाहिए। हमारे लोकतंत्र में इन आधारभूत तत्वों की कमी होने लगी है, इसलिए लोकतंत्र कमज़ोर दिखाई पड़ता है।
हम प्रायः सोचते हैं कि हमारा देश-प्रेम कहाँ चला गया, देश के लिए कुछ करने, मर-मिटने की भावना कहाँ चली गई ? त्याग और बलिदान के आदर्श कैसे, कहाँ लुप्त हो गए? आज हमारे लोकतंत्र को स्वार्थांधता का घुन लग गया है। क्या राजनीतिज्ञ, क्या अफसर, अधिकांश यही सोचते हैं कि वे किस तरह से स्थिति का लाभ उठाएँ, किस तरह एक-दूसरे का इस्तेमाल करें। आम आदमी अपने आपको लाचार पाता है और ऐसी स्थिति में उसकी लोकतांत्रिक आस्थाएँ डगमगाने लगती हैं।
लोकतंत्र की सफलता के लिए हमें समर्थ और सक्षम नेतृत्व चाहिए, एक नई दृष्टि, एक नई प्रेरणा, एक नई संवेदना, एक नया आत्मविश्वास, एक नया संकल्प और समर्पण आवश्यक है। लोकतंत्र की सफलता के लिए हम सब अपने आप से पूछे कि हम देश के लिए, लोकतंत्र के लिए क्या कर सकते हैं? और हम सिर्फ पूछकर ही न रह जाएँ, बल्कि संगठित होकर समझदारी, विवेक और संतुलन से लोकतंत्र को सफल और सार्थक बनाने में लग जाएँ। (Delhi 2014)
प्रश्नः 1.
हमारे लोकतंत्र की कमज़ोरी का कारण क्या है?
उत्तर:
हमारे
लोकतंत्र की कमजोरी का कारण अव्यवस्थित और अमर्यादित वे राजनीतिक दल हैं जिनमें
निष्ठा और कर्मठता की कमी
प्रश्नः 2.
आज राजनीति का स्तर क्यों गिरता जा रहा है?
उत्तर:
आज
राजनीति का स्तर इसलिए गिरता जा रहा है क्योंकि राजनीति में सुयोग्य और सच्चरित्र
लोगों की कमी होती जा रही है।
प्रश्नः 3.
लोकतंत्र के आधारभूत तत्व कौन-से हैं ? इनकी कमी का लोकतंत्र पर
क्या असर पड़ा है ?
उत्तर:
लोकतंत्र के मूल में लोकनिष्ठा, लोकमंगल की भावना
लोकानुभूति, लोकसंपर्क आदि लोकतंत्र के आधारभूत तत्व हैं। इनकी कमी के कारण
लोकतंत्र से लोगों की आस्था कमज़ोर होती जाती है और लोकतंत्र कमज़ोर पड़ जाता
है।
प्रश्नः 4.
आम आदमी की लोकतांत्रिक आस्थाएँ क्यों डगमगाने लगती हैं
?
उत्तर:
आज लोकतंत्र में देश-प्रेम, देश के लिए कुछ करने की भावना,
त्याग-बलिदान आदि गायब हो चुकी है। लोगों में स्वार्थांधता भरती जा रही हैं।
राजनीतिज्ञ अफसर अपनी स्थिति का फायदा उठाने को आतुर हैं। ऐसे में लाचार आम आदमी की
लोकतांत्रिक आस्थाएँ उगमगाने लगती हैं।
प्रश्नः 5.
लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए क्या करना
चाहिए?
उत्तर:
लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए नई दृष्टि, नई प्रेरणा, नई
संवेदना, नया आत्मविश्वास, संकल्प और समर्पण रखते हुए लोकतंत्र के प्रति अपने
दायित्वों को समझने का प्रयास करें। फिर हमें संगठित होकर समझदारी विवेक और संतुलन
से लोकतंत्र को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
10. एक ज़माना था जब मुहल्लेदारी पारिवारिक आत्मीयता से भरी होती थी। सब मिल-जुलकर रहते थे। हारी-बीमारी, खुशी-गम सब में लोग एक दूसरे के साथ थे। किसी का किसी से कुछ छिपा नहीं था। आज के लोगों को शायद लगे कि लोगों की अपनी ‘प्राइवेसी’ क्या रही होगी, लेकिन इस ‘प्राइवेसी’ के नाम पर ही तो हम एक-दूसरे से कटते रहे और कटते-कटते ऐसे अलग हुए कि अकेले पड़ गए। पहले अलग चूल्हे-चौके हुए, फिर अलग मकान लेकर लोग रहने लगे, निजी स्वतंत्रता को अपनी नई परिभाषा देकर यह एकाकीपन हमने स्वयं अपनाया है। मुहल्ले में आपस में चाहे जितनी चखचख हो, यह थोड़े ही संभव था कि बाहर का कोई आकर किसी को कड़वी बात कह जाए। पूरा मोहल्ला टिड्डी-दल की तरह उमड़ पड़ता था।
देखते-देखते ज़माना हवा हो गया। मुहल्लेदारी टूटने लगी, आबादी बढ़ी, महँगाई बढ़ी, पर सबसे ज़्यादा जो चीज़ दुर्लभ हो गई वह थी आपसी लगाव, अपनापन। लोगों की आँखों का शील मर गया।
देखते-देखते कैसा रंग बदला है। लोग अपने-आप में सिमटकर पैसे के पीछे भागे जा रहे हैं। सारे नाते-रिश्तों को उन्होंने ताक पर रख दिया है, तब फिर पड़ोसी से उन्हें क्या लेना-देना है। यह नीरस महानगरीय सभ्यता महानगरों से चलकर कस्बों और देहातों तक को अपनी चपेट में ले चुकी है। मकानों में रहने वाले एक-दूसरे को नहीं जानते। इन जगहों में आदमी का अस्तित्व समाप्त हो गया है। यदि आपको फ़्लैट नंबर मालूम नहीं है तो उसी बिल्डिंग में जाकर भी वांछित व्यक्ति को नहीं ढूँढ़ पाएँगे। ऐसी जगहों में किसी प्रकार के संबंधों की अपेक्षा ही कहाँ की जा सकती है? (All India 2014)
प्रश्नः 1.
आज एक-दूसरे से कटते जाने का कारण क्या है?
उत्तर:
आज
एक-दूसरे से कटते जाने का कारण ‘प्राइवेसी’ बनाए रखने का प्रयास है।
प्रश्नः 2.
आज के व्यक्ति को प्राइवेसी के नाम पर क्या प्राप्त हुआ
है?
उत्तर:
आज के व्यक्ति को प्राइवेसी के नाम पर अलगाव और अकेलापन प्राप्त
हुआ है।
प्रश्नः 3.
मुहल्लेदारी में पारिवारिक आत्मीयता से लाभ क्या-क्या होता
था?
उत्तर:
मुहल्लेदारी में पारिवारिक आत्मीयता बनी रहने से सब मिल-जुलकर
रहते थे, एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते थे। वे आपस में भले झगड़ लें, पर बाहरी
व्यक्ति का मुकाबला करने के लिए एकजुट हो जाते थे।
प्रश्नः 4.
वह ज़माना हवा होते ही आया बदलाव समाज के लिए उपयुक्त था या
अनुपयुक्त, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वह ज़माना हवा होते ही मुहल्लेदारी टूटने
लगी, आबादी और महँगाई तो बढ़ी पर आपसी लगाव, अपनापन गायब हो गया। … लोगों की आँखों
से शील मर गई। ये बदलाव समाज के लिए पूर्णतया अनुचित और अनुपयुक्त था।
प्रश्नः 5.
प्राइवेसी ने महानगरीय सभ्यता से संबंधों को लगभग समाप्त कर दिया
है। ऐसा कहना कितना उचित है?
उत्तर:
‘प्राइवेसी’ ने महानगरीय सभ्यता की छाँव
में पलने वाले संबंधों को छिन्न-भिन्न कर दिया है। यहाँ एक ही मकान में रहने वाले
लोग एक-दूसरे को जानते नहीं हैं। फ़्लैट नंबर मालूम न होने पर बिल्डिंग में वांछित
व्यक्ति से नहीं मिला जा सकता है। अतः यहाँ संबंध पूर्णतया समाप्त हो गए हैं।
11. गरीबी, जाति और धर्म की सीमाओं को भेद जाती है। भारत की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब है या गरीबी के आसपास है। इसलिए देश के प्रशासकों ने इस समस्या के समाधान के लिए आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय को राष्ट्रीय लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया है इससे समाज में आर्थिक विषमता घटेगी। हमारे संविधान की प्रस्तावना में भी गणतंत्र के विशेषणों में ‘समाजवादी’ शब्द सम्मिलित है। इसके फलस्वरूप भारतीय समाज के कमजोर वर्गों को आर्थिक आधार पर विशेष सलक पाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। कृषि-मज़दूरों, छोटे किसानों, देहाती-शहरी गरीबों के लिए योजनाबद्ध विकास के कार्यक्रम तैयार किए गए हैं। ये कार्यक्रम जाति के आधार पर नहीं, समानता-असमानता के आधार पर हैं।
सभी प्रकार के पिछड़ेपन को, भले ही वह आर्थिक हो या सामाजिक या सांस्कृतिक, दूर करना निश्चित रूप से न्यायपूर्ण एवं स्वीकार करने योग्य लक्ष्य है। आर्थिक पिछड़ेपन ने सामाजिक असमानता के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इस समस्या का उपचार करने के लिए सरकार ने एक रणनीति अपनाई-कानून बनाने के रूप में। जिसका उल्लंघन करने वालों को सजा का प्रावधान है।
एक उदाहरण लें-‘अस्पृश्यता अपराध कानून’ के अंतर्गत अस्पृश्यता को दंडनीय अपराध माना गया और इसके परिणामस्वरूप देश से अस्पृश्यता प्रायः समाप्त हो गई है। इतना अवश्य है कि इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना है।
प्रश्नः 1.
‘गरीबी, जाति और धर्म की सीमाओं को भेद जाती है।’-का आशय क्या
है?
उत्तर:
‘गरीबी जाति और धर्म की सीमाओं को भेद जाती है’ का आशय है-यह सभी
जातियों और धर्मावलंबियों को समान रूप से
प्रभावित करती है।
प्रश्नः 2.
अस्पृश्यता समाप्त होने का कारण क्या है?
उत्तर:
अस्पृश्यता
समाप्त होने का कारण अस्पृश्यता अपराध कानून बनाकर इसे दंडनीय घोषित करना है।
प्रश्नः 3.
गरीबी की समस्या के समाधान के लिए प्रशासकों ने क्या किया? उनके
प्रयास का फल क्या होगा?
उत्तर:
गरीबी की समस्या दूर करने के लिए प्रशासकों
ने आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय को राष्ट्रीय लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया।
उनके इस प्रयास से आर्थिक विषमता घटने की संभावना है।
प्रश्नः 4.
संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ विशेषण सम्मिलित करना इस
समस्या के समाधान के लिए कितना कारगर सिद्ध होगा?
उत्तर:
संविधान की
प्रस्तावना में समाजवादी विशेषण शामिल करने से समाज के कमजोर वर्गों कृषि-मज़दूरों,
छोटे किसानों, देहाती शहरी गरीबों के विकास के लिए कार्यक्रम बनाए जाते हैं, जो
समानता-असमानता पर आधारित होते हैं। यह प्रयास कारगर सिद्ध होगा।
प्रश्नः 5.
पिछड़ापन दूर करने की मुहिम को कानून से जोड़ना क्या कारगर सिद्ध
होगा? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पिछड़ापन दूर करने की मुहिम को
कानून से जोड़ने पर इसके उल्लंघन करने वालों के लिए सज़ा का प्रावधान हो जाता है।
इसका उदाहरण अस्पृश्यता अपराध कानून है जिससे अस्पृश्यता समाप्त हो गई।
12. हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था में न कोई छोटा होता है न बड़ा, न कोई अमीर न कोई गरीब। देश का संविधान सबके लिए समान है। नागरिक अधिकारों पर सबका समान हक है। लोकतंत्र पारिवारिक-सामाजिक सभी स्तरों पर स्त्री-पुरुष को एक नज़र से देखता है। अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने, अपनी बात बेझिझक कहने का सबको समान अधिकार है।
आज़ादी मिलने के बाद इस लोकतंत्रात्मक पद्धति के आधार पर हम सभी क्षेत्रों में आगे बढ़े हैं। नारी जागृति आई है, शिक्षा, स्वास्थ्य. राजनीति-सभी क्षेत्रों में विकास हुआ है। ऐसी स्थिति में भी जब हम निराशाजनक बातें करते हैं कि तंत्र ठप्प हो गया है, यह पद्धति असफल हो गई है-यह ठीक नहीं। वास्तव में दोष तंत्र का नहीं-दोष हमारे नज़रिये का है। हमारी अपेक्षाएँ इतनी बढ़ गई हैं जिन्हें संतुष्ट करने के लिए एक क्या अनेक तंत्र असफल हो जाएँगे। हमारा देश विशाल आबादी वाला एक विशाल देश है।
इसे चलाने वाला तंत्र भी उतना ही विशाल और समर्थ चाहिए और जैसा कि नाम से स्पष्ट है लोकतंत्र में हम ही तंत्र हैं। जब हर नागरिक इतना शिक्षित हो जाए कि अपने देश, समाज, परिवार, हर व्यक्ति सबके प्रति निष्ठा से अपना दायित्व निभाता रहे तब लोकतंत्र की सफलता सामने आएगी। ज़रूरी है कि हमारी सोच सकारात्मक हो। हम सोचें कि इतनी उदारता, इतनी ग्रहणशीलता और किसी तंत्र में नहीं है जितनी लोकतंत्र में है, मानवता का इतना संतुलित सर्वांगीण विकास किसी और तंत्र में हो भी नहीं सकता। (Foreign 2014)
प्रश्नः 1.
‘तंत्र ठप हो गया है’-ऐसा कहना किसका दोष प्रकट करता
है?
उत्तर:
‘लोकतंत्र ठप हो गया है’-ऐसा कहना हमारे नज़रिये का दोष प्रकट
करता है।
प्रश्नः 2.
मानवता का सबसे संतुलित विकास किस तंत्र में हो सकता
है?
उत्तर:
मानवता का सबसे संतुलित विकास लोकतंत्र में ही हो सकता है।
प्रश्नः 3.
गद्यांश के आधार पर लोकतंत्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लोकतंत्र में सभी समान होते हैं। नागरिक अधिकारों पर सबका समान हक होता
है। इस तंत्र में पारिवारिक-सामाजिक सभी स्तरों पर स्त्री-पुरुष बराबर होते हैं।
सभी को अपनी बातें कहने तथा अधिकारों के इस्तेमाल का अधिकार होता है।
प्रश्नः 4.
लोकतंत्र के संबंध में निराशाजनक बातें क्यों नहीं करनी
चाहिए?
उत्तर:
लोकतंत्र के बारे में निराशाजनक बातें इसलिए नहीं करनी चाहिए
क्योंकि हमारी अपेक्षाएँ इतनी बढ़ गई हैं कि उसे पूरा करने के लिए कई तंत्र असफल हो
जाएँगे। भारत जैसे विशाल देश में इसे चलाने वाला तंत्र भी विशाल और समर्थ होना
ज़रूरी है।
प्रश्नः 5.
लोकतंत्र की सफलता किन तत्वों पर निर्भर करती
है?
उत्तर:
लोकतंत्र लोगों का तंत्र है। इसकी सफलता के लिए हर नागरिक का
शिक्षित होना, अपने देश, परिवार, समाज के प्रति दायित्वों का निर्वाह करना तथा
सकारात्मक सोच रखना अति आवश्यक है।
13. मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। ऐसा लगता है देश में कोई ईमानदार आदमी रह ही नहीं गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। इस समय सुखी वही है, जो कुछ है। जो कुछ नहीं करता, जो भी कुछ करेगा, उसमें लोग दोष खोजने लगेंगे। उसके सारे गुण भुला दिये जायेंगे और दोषों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाने लगेगा। दोष किसमें नहीं होते? यही कारण है कि हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम या बिलकुल ही नहीं। यह चिंता का विषय है।
तिलक और गांधी के सपनों का भारतवर्ष क्या यही है ? विवेकानंद और रामतीर्थ का आध्यात्मिक ऊँचाई वाला भारतवर्ष कहाँ है ? रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का महान, सुसंस्कृत और सभ्य भारतवर्ष पतन के किस गहन गर्त में जा गिरा है? आर्य और द्रविड़, हिंदू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय आदर्शों की मिलनभूमि ‘महामानव समुद्र’ क्या सूख ही गया है?
यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ और फरेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सचाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है, किंतु ऐसी दशा से हमारा उद्धार जीवन-मूल्यों में आस्था रखने से ही होगा। ऐसी स्थिति में हताश हो जाना ठीक नहीं है।
प्रश्नः 1.
‘मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है’ का आशय क्या है?
उत्तर:
मेरा
मन कभी-कभी बैठ जाता है-लेखक का हृदय देश की दुर्दशा देखकर चिंतित हो जाता है।
प्रश्नः 2.
लेखक ने चिंता का विषय किसे कहा है ?
उत्तर:
लेखक ने लोगों
की उस प्रवृत्ति को चिंता का विषय कहा है जिसके कारण लोग हर आदमी को दोषी समझने लगे
हैं।
प्रश्नः 3.
समाज की किन घटनाओं को देखकर निराशाजनक वातावरण होने का पता चल
रहा है?
उत्तर:
समाचार पत्रों का चोरी, डकैती, भ्रष्टाचार की खबरों से भरा
होना, हर व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखा जाना, दूसरों में दोष ढूंढ़ने की
बढ़ती प्रवृत्ति, गुणों को भुला दिया जाना और अवगुणों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना आदि से
निराशाजनक वातावरण का पता चल रहा है।
प्रश्नः 4.
तिलक और गांधी ने किस तरह के भारत का स्वप्न देखा था? वह भारत इस
भारत से किस तरह भिन्न होगा?
उत्तर:
तिलक और गांधी ने उस भारत की कल्पना की
थी जिसमें उच्च जीवन मूल्यों का बोलबाला हो। समाज अन्याय, भ्रष्टाचार, चोरी डकैती
आदि से मुक्त हो तथा हर कोई सुसंस्कृत और सभ्य हो। ऐसा भारत इस भारत से पूर्णतया
अलग होगा।
प्रश्नः 5.
आज समाज में जीवन-मूल्यों की स्थिति क्या है? ऐसे में हमारा भला
कैसे हो सकता है?
उत्तर:
आज समाज में जीवन मूल्य कमज़ोर पड़ गए हैं। सत्य,
त्याग, परोपकार, श्रम से रोटी कमाना आदि कहीं खो गए हैं। ईमानदारी दूसरे लोक की
वस्तु बन गई है। ऐसे में जीवन मूल्यों को बनाए रखने से ही हमारा भला हो सकता
है।
14. भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया। उसकी दृष्टि में मनुष्य के भीतर जो आंतरिक तत्व स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन और बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना, बहुत निकृष्ट आचरण है। भारतवर्ष ने उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है।
इस देश के कोटि-कोटि दरिद्र जनों की हीन अवस्था को सुधारने के लिए अनेक कायदे-कानून बनाए गए। जिन लोगों को इन्हें कार्यांवित करने का काम सौंपा गया वे अपने कर्तव्यों को भूलकर अपनी सुख-सुविधा की ओर ज़्यादा ध्यान देने लगे। वे लक्ष्य की बात भूल गए और लोभ, मोह जैसे विकारों में फँसकर रह गए। आदर्श उनके लिए मज़ाक का विषय बन गया और संयम को दकियानूसी मान लिया गया। परिणाम जो होना था, वह हो रहा है-लोग लोभ और मोह में पड़कर अनर्थ कर रहे हैं, इससे भारतवर्ष के पुराने आदर्श और भी अधिक स्पष्ट रूप से महान और उपयोगी दिखाई देने लगे हैं। अब भी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी। (All India 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
मन में समाए विकारों को किसके सहारे वश में किया जाता
है?
उत्तर:
मन में समाए विकारों को संयम के बंधन के सहारे वश में किया जाता
है।
प्रश्नः 2.
विलोम लिखिए – निकृष्ट, आंतरिक।
उत्तर:
निकृष्ट x
उत्कृष्ट
आंतरिक x वाय।
प्रश्नः 3.
हमारे देश में चरम और परम किसे माना जाता है ? यह मान्यता
पाश्चात्य देशों से किस तरह अलग है?
उत्तर:
हमारे देश में जीवन मूल्यों और
आदर्शों को चरम और परम माना जाता है। पश्चिमी देशों में शारीरिक सुख और भौतिक
वस्तुओं के संग्रह को जीवन लक्ष्य माना जाता है, पर हमारे देश में मानसिक सुख एवं
मूल्यों को।
प्रश्नः 4.
देश में करोड़ों लोग गरीबी में क्यों जी रहे
हैं?
उत्तर:
देश में करोड़ों लोग गरीबी में इसलिए जी रहे हैं क्योंकि गरीबी
को दूर करने के लिए जो कानून बने और उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी जिन पर सौंपी
गई, वे अपना कर्तव्य और लक्ष्य भूलकर अपनी सुख-सुविधा में लग गए।
प्रश्नः 5.
आदर्श एवं संयम को दकियानूसी कौन मान बैठे? इसका क्या परिणाम
हुआ?
उत्तर:
आदर्श एवं संयम को दकियानूसी वे लोग मानने लगे जो सुख-सुविधा की
ओर ज़्यादा ध्यान दे रहे थे। इससे लोग लोभ और मोह में पड़कर अनर्थ कर रहे हैं;
भ्रष्ट साधनों से धन अर्जित कर रहे हैं और देश में अराजकता फैल रही है।
15. धन का व्यय विलास में करने से केवल क्षणिक आनंद की प्राप्ति होती है, जबकि यह धन का दुरुपयोग है, किंतु धन का सदुपयोग सुख और शांति देता है। धन के द्वारा जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य हो सकता है वह है परोपकार। भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र, रोगियों को दवा, अनाथों को घर-द्वार, लूले-लँगड़ों और अपाहिज़ों के लिए आराम के साधन, विद्यार्थियों के लिए पाठशालाएँ इत्यादि वस्तुएँ धन के द्वारा जुटाई जा सकती हैं।
धन होने के कारण एक अमीर आदमी को लोगों की भलाई करने के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं, जो कि एक गरीब आदमी को उपलब्ध नहीं हैं, चाहे वह इसके लिए कितना ही इच्छुक क्यों न हो। पर संसार में ऐसे आदमी बहुत कम हैं जो अपना भोग-विलास त्यागकर अपने को परोपकार में लगाते हैं। (Delhi 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
दूसरों की भलाई करने के लिए सबसे आवश्यक क्या
है?
उत्तर:
दूसरों की भलाई करने के लिए धन होना सबसे आवश्यक है।
प्रश्नः 2.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त
गद्यांश का शीर्षक है-धन का सच्चा उपयोग।
प्रश्नः 3.
गद्यांश के अनुसार धन का सदुपयोग क्या है ? लेखक धन का दुरुपयोग
किसे मानता है?
उत्तर:
गद्यांश के अनुसार धन का सदुपयोग है-परोपकार करना
जिससे दूसरों को सुख-शांति मिल सके। लेखक ने धन का व्यय भोगविलास और ऐशो-आराम के
लिए करते हुए आनंदित होने को धन का दुरुपयोग माना है।
प्रश्नः 4.
परोपकार और धन का क्या संबंध है ? गद्यांश के आधार पर स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
परोपकार और धन का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। परोपकार करने के लिए
धन होना अत्यावश्यक है। भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र, रोगियों को दवा, अनाथों को
घर-द्वार देने आदि का कार्य धन के बिना नहीं किए जा सकते हैं।
प्रश्नः 5.
एक निर्धन परोपकारी क्यों नहीं बन सकता है? आज देश में किस तरह के
लोगों की कमी है ?
उत्तर:
एक निर्धन व्यक्ति परोपकारी इसलिए नहीं बन सकता
क्योंकि वह धनहीन होता है। धन के अभाव में निर्धन परोपकार नहीं कर सकता है। आज देश
में उन लोगों की कमी हो रही है जो दूसरों की भलाई के लिए अपना भोग-विलास त्याग
सकें।
16. यदयपि तुलसी ने अनेक ग्रंथों की रचना करके अपनी काव्य-प्रतिभा का परिचय दिया तथापि रामचरितमानस उनकी सर्वोपरि रचना है। इस अनुपम ग्रंथ की गणना विश्व साहित्य के सर्वश्रेष्ठ रत्नों में की जाती है। इसका रूपांतर विश्व की प्रायः सभी भाषाओं में हो चुका है। रामचरितमानस महाकाव्य है। इस ग्रंथ में राम की कथा सात खंडों में विभक्त है।
मानस की कथा का मूलाधार वाल्मीकि रामायण, वेद-पुराण आदि ग्रंथ हैं। इन धार्मिक ग्रंथों से नीति, शिक्षा और उपदेश की सामग्री लेकर तुलसी ने मानस की रचना की है। यही कारण है कि मानस पाठकों के जीवन के लिए आदर्श है। यह महाकाव्य लोकहित की भावना से ओत-प्रोत है। मानस, मानव-मन का दर्पण है। इसमें मानव-स्वभाव का स्वाभाविक चित्रण है। (Delhi 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
रामचरित मानस के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर:
रामचरितमानस के
रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास हैं।
प्रश्नः 2.
संधि-विच्छेद कीजिए-यद्यपि, मूलाधार
उत्तर:
यद्यपि = यदि +
अपि
मूलाधार = मूल + आधार
प्रश्नः 3.
रामचरितमानस की गणना सर्वोत्कृष्ट रचनाओं में क्यों की जाती
है?
उत्तर:
रामचरित मानस की गणना सर्वोत्कृष्ट रचनाओं में इसलिए की जाती है
क्योंकि यह महाकाव्य लोकहित की भावना से ओत-प्रोत है। इसमें हर आयु वर्ग के लिए
कर्तव्यों का आदर्श रूप, संबंधों को बनाए रखने की कला तथा मानव स्वभाव का स्वाभाविक
चित्रण है।
प्रश्नः 4.
मानस की कथा का मूलाधार क्या है, जो इसे अन्य महाकाव्यों से अलग
करते हैं ?
उत्तर:
मानस की कथा का मूलाधार वाल्मीकि रामायण, वेद-पुराण आदि
ग्रंथ हैं। इसमें राम के उदात्त एवं अनुकरणीय जीवन की कथा को सात वर्गों में बाँट
कर प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रंथ में नीति, शिक्षा और उपदेश की सामग्री भरपूर है।
”
प्रश्नः 5.
रामचरितमानस की लोकप्रियता का प्रमाण क्या है ? गद्यांश के आधार
पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रामचरितमानस की लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि इस
महाकाव्य की लोकप्रियता भारत के ही घर-घर में नहीं, बल्कि विश्व भर में है। तभी तो
विश्व की प्रायः सभी भाषाओं में इसका रूपांतरण किया जा चुका है।
17. जहाँ भी दो नदियाँ मिल जाती हैं, उस स्थान को अपने देश में तीर्थ कहने का रिवाज़ है। कई पहाड़ों, जंगलों और खेतों पर गिरी बारिश के पानी के संगम से नदियाँ बनती हैं। एक दूसरे से मिलकर ये नदियाँ बड़ी हो जाती हैं। सबसे बड़ी नदी वह होती है जिसका दूसरी नदियों से सबसे ज़्यादा संयोग होता है। अगर सागर से उलटी गंगा बहाएँ तो गंगा का स्रोत गंगोत्री या उद्गम गोमुख भर नहीं होगा। यमुनोत्री और तिब्बत में ब्रह्मपुत्र का स्रोत भी होगा, दिल्ली, बनारस और पटना जैसे शहरों के सीवर से निकलने वाला पानी भी होगा। बनारस या पटना में गंगा विशाल नदी है, लेकिन वहाँ उसका पानी मात्र शिव जी की जटा से निकलकर नहीं आता।
भारतीय परिवेश में असली संगम वे स्थान हैं, वे सभाएँ तथा वे मंच हैं, जिन पर एक से अधिक भाषाएँ एकत्र होती हैं। नदियाँ अपनी धाराओं में अनेक जनपदों का सौरभ, आँसू और उल्लास लिए चलती हैं और उनका पारस्परिक मिलन वास्तव में नाना जनपदों के मिलन का प्रतीक है। यही हाल भाषाओं का भी है। अगर हिंदी और उर्दू, संस्कृत और फारसी को बड़ी भाषाएँ माना जाए, तो यह तय है कि इनका संगम कई दूसरी भाषाओं से हुआ होगा। अगर किसी भाषा का दूसरी भाषाओं से मेल-मिलाप बंद हो जाता है तो उसका बहना रुक जाता है, ठीक उस नदी के जैसे, जिसमें दूसरी नदियों का पानी मिलना बंद हो जाता है। (CBSE Sample paper 2015)
प्रश्नः 1.
हमारे देश में किसे तीर्थ कहने की परंपरा है?
उत्तर:
हमारे
देश में उस स्थान को तीर्थ कहने की परंपरा है जहाँ दो नदियाँ मिलती हैं।
प्रश्नः 2.
सबसे बड़ी नदी किसे माना जाता है?
उत्तर:
सबसे बड़ी नदी उसे
माना जाता है जिसका दूसरी नदियों से सबसे ज़्यादा मेल-मिलाप होता है।
प्रश्नः 3.
‘बनारस या पटना में गंगा विशाल नदी है लेकिन उसका पानी मात्र शिव
की जटा से नहीं आता।’-के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘बनारस या पटना … नहीं आता’ के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि इन
स्थानों पर विशाल गंगा केवल गंगा नहीं बल्कि अनेक नदियों और अन्य जलस्रोतों के जल
का मिला-जुला रूप है जो अपने भीतर बहुत कुछ समेटे हुए है।
प्रश्नः 4.
गद्यांश में असली संगम किसे माना गया है और
क्यों?
उत्तर:
गद्यांश में असली संगम उन स्थानों, सभाओं एवं मंचों को कहा गया
है जहाँ अनेक भाषाएँ एकत्र होती हैं और चर्चा का विषय बनती हैं। इसका कारण यह है कि
इन संगमों पर भाषाएँ एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं और अपनी-अपनी परिधि में
विस्तार करती हैं।
प्रश्नः 5.
नदियों एवं भाषाओं में क्या समानता है? गद्यांश के आधार पर
लिखिए।
उत्तर:
नदियों और भाषाओं में समानता यह है कि जिस तरह बड़ी नदी अनेक
नदियों के मेल का परिणाम होती हैं और अन्य नदियों का पानी न मिलने से उसका बहाव बंद
हो जाता है उसी प्रकार हिंदी, उर्दू, संस्कृत जैसी भाषाएँ कई भाषाओं के मेल से बनी
हैं। यदि अन्य भाषाओं से इनका मेल बंद हो जाए तो इनका विकास अवरुद्ध हो जाता
है।
18. आवश्यकता के अनुरूप प्रत्येक जीव को कार्य करना पड़ता है। कर्म से कोई मुक्त नहीं है। अत्यंत उच्चस्तरीय आध्यात्मिक जीव जो साधना में लीन है अथवा उसके विपरीत वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति ही कर्महीन रह सकता है। शरीर ऊर्जा का केंद्र है। प्रकृति से ऊर्जा प्राप्त करने की इच्छा और अपनी ऊर्जा से परिवेश को समृद्ध करने का भाव मानव के सभी कार्यव्यवहारों को नियंत्रित करता है। अतः आध्यात्मिक साधना में लीन और वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति भी किसी न किसी स्तर पर कर्मलीन रहते ही हैं।
गीता में कृष्ण कहते हैं, ‘यदि तुम स्वेच्छा से कर्म नहीं करोगे तो प्रकृति तुमसे बलात् कर्म कराएगी।’ जीव मात्र के कल्याण की भावना से पोषित कर्म पूज्य हो जाता है। इस दृष्टि से जो राजनीति के माध्यम से मानवता की सेवा करना चाहते हैं उन्हें उपेक्षित नहीं किया जा सकता। यदि वे उचित भावना से कार्य करें तो वे अपने कार्यों को आध्यात्मिक स्तर तक उठा सकते हैं।
यह समय की पुकार है। जो राजनीति में प्रवेश पाना चाहते हैं, वे यह कार्य आध्यात्मिक दृष्टिकोण लेकर करें और दिनप्रतिदिन आत्मविश्लेषण, अंतर्दृष्टि, सतर्कता और सावधानी के साथ अपने आप का परीक्षण करें, जिसमें वे सन्मार्ग से भटक न ‘जाएँ। राजेंद्र प्रसाद के अनुसार “सेवक के लिए हमेशा जगह खाली पड़ी रहती है। उम्मीदवारों की भीड़ सेवा के लिए नहीं हआ करती। भीड तो सेवा के फल के बँटवारे के लिए लगा करती है जिसका ध्येय केवल सेवा है, सेवा का फल नहीं, उसको इस धक्का-मुक्की में जाने की और इस होड़ में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है।
प्रश्नः 1.
कर्म से मुक्ति संभव क्यों नहीं है?
उत्तर:
कर्म से मुक्ति
इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि कर्म ही ऊर्जा का साधन है और प्रकृति के लिए ऊर्जा
आवश्यक है।
प्रश्नः 2.
सच्चे सेवक की पहचान क्या है ?
उत्तर:
सच्चे सेवक की पहचान
यह है कि वह हमेशा खाली पड़ी जगह को भर देता है।
प्रश्नः 3.
साधना में लीन एवं वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति को कर्मरत क्यों
बताया गया है?
उत्तर:
मानव शरीर ऊर्जा का केंद्र है, प्रकृति से ऊर्जा पाने
की इच्छा अपनी ऊर्जा से परिवेश को समृद्ध करने का भाव मनुष्य के कार्य व्यवहारों को
नियंत्रित करता है तथा कर्म के लिए प्रेरित करता रहता है। अतः ऐसे व्यक्ति भी किसी
न किसी रूप में कर्मरत रहते हैं।
प्रश्नः 4.
कर्म करते हुए व्यक्ति खुद को आध्यात्मिक स्तर तक कैसे उठा सकता
है?
उत्तर:
कल्याण की भावना से किया गया कर्म पूज्य हो जाता है। कल्याण की
भावना से मानवता की सेवा यदि व्यक्ति करता है तो वह खुद को आध्यात्मिक स्तर तक उठा
सकता है।
प्रश्नः 5.
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सेवक और उम्मीदवार के कर्म को किस तरह
अलग-अलग रूपों में देखते हैं ?
उत्तर:
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के अनुसार सेवक
के मन में सेवा भावना प्रबल होती है। वह निस्स्वार्थ भाव से सेवा के लिए तैयार रहता
है, इसके विपरीत उम्मीदवार सेवा के लिए न होकर सेवा के फल के बँटवारे के लिए होते
हैं। इस तरह वे सेवक और उम्मीदवार के कर्म में अंतर देखते हैं।
19. भाग्यवादी लोग प्रायः कहा करते हैं कि जब भाग्य में नहीं तो सभी परिश्रम व्यर्थ हो जाते हैं। थोड़ी देर के लिए यदि उनकी विचारधारा को ही मान लिया जाए तो भी भाग्य के भरोसे बैठने वाले व्यक्ति की अपेक्षा कर्मशील व्यक्ति ही कहीं अधिक श्रेष्ठ है। कर्म करने के उपरांत यदि असफलता भी मिलती है तो भी व्यक्ति को यह सोचकर विशेष पछतावा नहीं होगा कि उसने प्रयत्न और चेष्टा तो की सफलता का निर्णय परमात्मा के अधीन है।
दूसरी ओर ऐसे लोग जो भाग्य के सहारे बैठे रहते हैं और प्रतीक्षा करते रहते हैं कि अली बाबा की सिम-सिम वाली गुफा का द्वार कब खुलता है, उन्हें जब असफलता का अँधेरा अपने चारों ओर घिरता दिखाई देता है, तब वे प्रायः पछताया करते हैं कि उन्होंने व्यर्थ ही समय क्यों गँवाया। हो सकता था कि उनका परिश्रम और यत्न सफल रहता, किंतु अब बीते समय को लौटाया नहीं जा सकता। इस रत्नगर्भा धरती में हीरे-मणि-माणिक्य का अभाव नहीं है। धरती का विस्तीर्ण अतल गर्भ अनंत धनराशि से भरा पड़ा है। आवश्यकता है, इसके वक्ष को चीरकर उन्हें उगलवा लेने वाले दृढ़ संकल्प और साहस की। धरती की कामधेनु तो उन्हें ही अमृतरस बाँटती है जो लौहकरों से उसका दोहन करते हैं।
प्रश्नः 1.
भाग्यवादी अपनी सफलता का श्रेय किसे देते
हैं?
उत्तर:
भाग्यवादी अपनी सफलता का श्रेय भाग्य को देते हैं।
प्रश्नः 2.
धरती को रत्नगर्भा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
धरती को
रत्नगर्भा इसलिए कहा गया है क्योंकि धरती में नाना प्रकार के रत्न भरे हुए हैं।
प्रश्नः 3.
कर्मशील व्यक्ति को पछतावा क्यों नहीं होता
है?
उत्तर:
कर्मशील व्यक्ति को इसलिए पछतावा नहीं होता है क्योंकि वह यह
सोचता है कि उसने प्रयत्न और चेष्टा तो की भले ही उसे सफलता हासिल नहीं हो सकी। वह
जानता है कि प्रयत्न करना उसके हाथ है, फल ईश्वर के अधीन होता है।
प्रश्नः 4.
भाग्यवादी कर्मशीलों से किस तरह अलग होते हैं
?
उत्तर:
भाग्यवादी भाग्य के भरोसे बैठकर सफलता का इंतज़ार करते हैं। जब उनको
सफलता की जगह असफलता मिलती है तो वे पछताते हैं कि उन्होंने व्यर्थ ही समय गँवाया
है।
प्रश्नः 5.
धरती में छिपे रत्नों को कौन निकालकर लाते हैं और
कैसे?
उत्तर:
उत्तर:
धरती में छिपे रत्नों को कर्मनिष्ठ लोग निकालकर लाते
हैं। वे अपने लोहे सदृश मज़बूत हाथों से धरती रूपी कामधेनु का दोहन करते हैं और
रत्नरूपी पीयूष का दोहन कर लेते हैं।
20. आत्मनिर्भरता का अर्थ है-अपने ऊपर निर्भर रहना। जो व्यक्ति दूसरे के मुँह को नहीं ताकते वे ही आत्मनिर्भर होते हैं। . वस्तुतः आत्मविश्वास के बल पर कार्य करते रहना आत्मनिर्भरता है। आत्मनिर्भरता का अर्थ है-समाज, निज तथा राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करना। व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र में आत्मविश्वास की भावना, आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। स्वावलंबन जीवन की सफलता की पहली सीढ़ी है। सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वावलंबी अवश्य होना चाहिए। स्वावलंबन व्यक्ति, समाज, राष्ट्र के जीवन में सर्वांगीण सफलता प्राप्ति का महामंत्र है। स्वावलंबन जीवन का अमूल्य आभूषण है, वीरों तथा कर्मयोगियों का इष्टदेव है। सर्वांगीण उन्नति का आधार है।
जब व्यक्ति स्वावलंबी होगा, उसमें आत्मनिर्भरता होगी, तो ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे वह न कर सके। स्वावलंबी मनुष्य के सामने कोई भी कार्य आ जाए, तो वह अपने दृढ़ विश्वास से, अपने आत्मबल से उसे अवश्य ही पूर्ण कर लेगा। स्वावलंबी मनुष्य जीवन में कभी भी असफलता का मुँह नहीं देखता। वह जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर कामयाब होता जाता है। सफलता तो स्वावलंबी मनुष्य की दासी बनकर रहती है। जिस व्यक्ति का स्वयं अपने आप पर ही विश्वास नहीं, वह भला क्या कर पाएगा? परंतु इसके विपरीत जिस व्यक्ति में आत्मनिर्भरता होगी, वह कभी किसी के सामने नहीं झुकेगा। वह जो करेगा सोचसमझकर धैर्य से करेगा। मनुष्य में सबसे बड़ी कमी स्वावलंबन का न होना है। सबसे बड़ा गुण भी मनुष्य की आत्मनिर्भरता ही है।
प्रश्नः 1.
किन व्यक्तियों को आत्मनिर्भर कहा जा सकता है?
उत्तर:
जो
व्यक्ति अपना काम स्वयं करते हैं और अपने कार्य के लिए दूसरों पर आश्रित नहीं रहते
हैं उन्हें आत्मनिर्भर कहा जाता है।
प्रश्नः 2.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
गद्यांश का शीर्षक
है- आत्मनिर्भरता।
प्रश्नः 3.
व्यक्ति के जीवन में स्वावलंबन का क्या महत्त्व
है?
उत्तर:
स्वावलंबन को मानव जीवन की सफलता के लिए पहली सीढ़ी माना जाता है।
स्वावलंबन के बिना सफलता नहीं मिलती है। यह जीवन का अमूल्य आभूषण और सर्वांगीण
उन्नति का आधार है। व्यक्ति के जीवन में इसका विशेष महत्त्व है।
प्रश्नः 4.
स्वावलंबी व्यक्ति अपने काम में किस तरह सफलता प्राप्त करते
हैं?
उत्तर:
स्वावलंबी व्यक्ति के लिए कोई काम असंभव नहीं होता है। वह हर काम
को अपने आत्मबल और दृढविश्वास से पूरा कर लेता है। ऐसा व्यक्ति हर क्षेत्र में
कामयाब होता है और कभी भी असफलता का मुँह नहीं देखता है।
प्रश्नः 5.
सफलता को स्वावलंबी की दासी क्यों कहा गया है?
उत्तर:
सफलता
को स्वावलंबी की दासी इसलिए कहा जाता है क्योंकि स्वावलंबी व्यक्ति को अपनी क्षमता
पर पूरा भरोसा होता है। वह आत्मनिर्भर होता है, इस कारण किसी के आगे नहीं झुकता है।
अपने इन गुणों के कारण सफलता उसका वरण कर उसकी दासी बन जाती है।
21. जिस विद्यार्थी ने समय की कीमत जान ली वह सफलता को अवश्य प्राप्त करता है। प्रत्येक विद्यार्थी को अपनी दिनचर्या की समय-सारणी अथवा तालिका बनाकर उसका पूरा दृढ़ता से पालन करना चाहिए। जिस विद्यार्थी ने समय का सही उपयोग करना सीख लिया उसके लिए कोई भी काम करना असंभव नहीं है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कोई काम पूरा न होने पर समय की दुहाई देते हैं। वास्तव में सच्चाई इसके विपरीत होती है।
अपनी अकर्मण्यता और आलस को वे समय की कमी के बहाने छिपाते हैं। कुछ लोगों को अकर्मण्य रहकर निठल्ले समय बिताना अच्छा लगता है। ऐसे लोग केवल बातूनी होते हैं। दुनिया के सफलतम व्यक्तियों ने सदैव कार्य व्यस्तता में जीवन बिताया है। उनकी सफलता का रहस्य समय का सदुपयोग रहा है। दुनिया में अथवा प्रकृति में हर वस्तु का समय निश्चित है। समय बीत जाने के बाद कार्य फलप्रद नहीं होता।
प्रश्नः 1.
सफलता पाने के लिए विद्यार्थी को क्या जानना आवश्यक होता
है?
उत्तर:
सफलता पाने के लिए विद्यार्थी समय का मूल्य जानना आवश्यक होता
है।
प्रश्नः 2.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
गद्यांश का
उपयुक्त शीर्षक है – समय का महत्त्व।
प्रश्नः 3.
विद्यार्थी के लिए सफलता कब असंदिग्ध हो जाती है?
उत्तर:
जब
विद्यार्थी समय का मूल्य समझ लेता है और समय का सदुपयोग करना सीख जाता है तब उसके
लिए सफलता असंदिग्ध हो जाती है।
प्रश्नः 4.
गद्यांश में किस बात को सच्चाई के विपरीत बताया गया
है?
उत्तर:
कुछ लोग काम न पूरा होने कारण समय की कमी बताते हैं, उनकी यह बात
सच्चाई के विपरीत होती है। वे अपनी अकर्मण्यता और आलस्य को समय की कमी बताकर छिपाना
चाहते हैं।
प्रश्नः 5.
दुनिया के सफलतम व्यक्तियों ने सफलता के किस रहस्य को समझ लिया
था?
उत्तर:
दुनिया के सफलतम व्यक्तियों ने यह समझ लिया था कि समय के पल-पल का
सदुपयोग करना चाहिए। वे जानते थे कि प्रकृति में हर वस्तु के लिए समय निश्चित है,
समय पर काम करने से ही सफलता मिलती है, उन्होंने इस रहस्य को समझ लिया था।
22. ‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सैंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।’
प्रश्नः 1.
देवताओं द्वारा ‘अमृत-मंथन’ करने का कारण क्या
था?
उत्तर:
देवताओं द्वारा ‘अमृत मंथन’ करने का कारण फूलों की माला का अपमान
करने के प्रायश्चित स्वरूप करना पड़ा।
प्रश्नः 2.
गद्यांश के माध्यम से क्या सीख दी गई है?
उत्तर:
गदयांश के
माध्यम से यह सीख दी गई है कि व्यक्ति को कभी घमंड नहीं करना चाहिए। यह व्यक्ति के
विनाश का कारण बन जाता है।
प्रश्नः 3.
दुर्वासा को दिव्य माला कहाँ से मिली? उन्होंने इंद्र को माला
क्यों पहनाई ?
उत्तर:
दुर्वासा को दिव्य माला एक दुबली-पतली लड़की से मिली।
उन्होंने यह माला इंद्र को इसलिए पहनाई क्योंकि वे इसे किसी अतिविशिष्ट व्यक्ति को
पहनाना चाहते थे। इंद्र ऐसे ही अति विशिष्ट व्यक्ति थे।
प्रश्नः 4.
दुर्वासा की माला दुर्वासा के पास किस तरह वापस आ गई
?
उत्तर:
दुर्वासा द्वारा पहनाई माला को इंद्र ने उतारकर अपने हाथी ऐरावत के
गले में डाली दी। इसकी गंध से परेशान होकर ऐरावत ने वह माला अपनी सूंड़ में लेकर
फेंक दी जो सीधे दुर्वासा के पास आ गिरी।
प्रश्नः 5.
इंद्र को दुर्वासा के क्रोध का भाजन क्यों होना पड़ा? ऐसा इंद्र
के किस अवगुण के कारण हुआ?
उत्तर:
दुर्वासा द्वारा पहनाई माला, उसमें लगे
फूलों का सम्मान करना, माला पहनाने पर इंद्र द्वारा दुर्वासा के प्रति आभार न प्रकट
करने के कारण उन्हें दुर्वासा के क्रोध का भाजन बनना पड़ा। इंद्र के द्वारा घमंड
भरा व्यवहार करने के कारण ऐसा हुआ।
23. गंगा भारत की एक अत्यंत पवित्र नदी है जिसका जल काफ़ी दिनों तक रखने के बावजूद भी खराब नहीं होता है जबकि साधारण जल कुछ ही दिनों में सड़ जाता है। गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री या गोमुख है। गोमुख से भागीरथी नदी निकलती है और देव प्रयाग नामक स्थान पर अलकनंदा नदी से मिलकर आगे गंगा के रूप में प्रवाहित होती है। भागीरथी के देवप्रयाग तक आते-आते इसमें कुछ चट्टानें घुल जाती हैं जिससे इसके जल में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो उसके पानी को सड़ने नहीं देती।
हर नदी के जल में कुछ खास तरह के पदार्थ घुले होते हैं जो उसकी विशिष्ट जैविक संरचना के लिए उत्तरदायी होते हैं। ये घुले हुए पदार्थ पानी में कुछ खास तरह के पदार्थ पनपने देते हैं तो कुछ को नहीं। कुछ खास तरह के बैक्टीरिया ही पानी की सड़न के लिए उत्तरदायी होते हैं तो कुछ पानी में सड़न पैदा करने वाले कीटाणुओं को रोकने में सहायता करते हैं। वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि गंगा के पानी में भी ऐसे बैक्टीरिया हैं जो गंगा के पानी में सड़न पैदा करने वाले कीटाणुओं को पनपने ही नहीं देते। इसलिए गंगा का पानी काफ़ी लंबे समय तक खराब नहीं होता और पवित्र माना जाता है।
प्रश्नः 1.
गंगा जल साधारण जल से किस तरह भिन्न होता है?
उत्तर:
साधारण
जल कुछ ही दिनों में खराब हो जाता है जबकि गंगाजल काफी समय रखने पर भी खराब नहीं
होता है।
प्रश्नः 2.
‘प्रवाहित’, जैविक शब्दों में प्रयुक्त/उपसर्ग पृथक कर मूल शब्द
भी बताइए।
उत्तर:
प्रश्नः 3.
गंगा अपने उद्गम स्थल से निकलकर किन-किन नामों से अपनी यात्रा
करती है? इसका जल विशिष्ट कैसे बन जाता है?
उत्तर:
गंगा अपने उद्गम स्थल
गोमुख से भागीरथी के रूप में निकलती हैं। यह अलकनंदा नामक नदी से मिलकर गंगा के रूप
में
आगे की यात्रा करती है। इसके जल में कुछ चट्टानें घुल जाने से यह पानी न
सड़ने की क्षमता पाकर विशिष्ट बन जाता है।
प्रश्नः 4.
नदी जल में घुले खास पदार्थ क्या योगदान देते हैं
?
उत्तर:
नदी के जल की विशिष्ट जैविक संरचना के लिए उसमें घुले विशेष पदार्थ
होते हैं। ये घुले पदार्थ ही कुछ खास तरह के पदार्थ को पनपने देते हैं और कुछ को
नहीं पनपने देते हैं।
प्रश्नः 5.
कुछ बैक्टीरिया गंगा जल की शुद्धाता एवं महत्ता किस तरह बढ़ा देते
हैं ?
उत्तर:
कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया पानी में सड़न पैदा करने वाले
कीटाणुओं को रोकते हैं। गंगा जल में भी ऐसे ही बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो सड़न
पैदा करने वाले जीवाणुओं को पनपने ही नहीं देते हैं। इस तरह वे गंगाजल की शुद्धता
एवं महत्ता बढ़ा देते
24. ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं की बरफ़ीली चोटियों के स्पर्श से शीतल हुई हवा सबसे बेखबर अपनी ही मस्ती में सुबह-सुबह बहती जा रही थी। जब वह जंगलों के बीच से गुजर रही थी, तो फूलों से लदी खूबसूरत वन लता ने अपने रंग भरे शृंगार को झलकाते हुए कहा, ओ शीतल हवा! तनिक मेरे पास आओ और रुको। ताकि मेरी खुशबू से ओतप्रोत होकर इस संसार को अपठित गद्यांश शीतल ही नहीं, सुगंधित भी कर सको लेकिन गर्व से भरी वायु ने सुगंध बाँटने को आतुर लता की प्रार्थना नहीं सुनी और कहा, मैं यूँ ही सबको शीतल कर दूँगी, मुझे किसी से कुछ और लेने की ज़रूरत नहीं है। फिर वह इठलाती हुई आगे बढ़ गई।
पर कुछ ही देर बाद हवा वापस वहीं लौटकर आ गई, जहाँ वन लता से उसका वार्तालाप हुआ था। उसकी चंचलता खत्म हो चुकी थी और वह उदास थी। वह चुपचाप उस लता के समीप बैठ गई।
हवा को इस हाल में देखकर वन लता ने पूछा, अभी कुछ देर पहले ही तो तुम यहाँ से गुज़री थी और खुश लग रही थी। अब इतनी उदास दिखाई पड़ रही हो, क्या बात है? क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकती हूँ? यह सुनकर हवा की आँखों से आँसू झरने लगे। उसने कहा, मैंने अहंकारवश तेरी बात नहीं सुनी और न तेरी खुशबू को ही साथ लिया, लेकिन जैसे ही आगे बढ़ी, गंदगी और बदबू में घिर गई। किसी तरह वहाँ से बचकर आगे बढ़ी और घरों तक पहुँची, लेकिन वहाँ किसी ने मेरा स्वागत नहीं किया। लोगों ने अपने घरों की खिड़कियाँ और दरवाजे बंद कर लिए। इसमें उनका भी कोई दोष नहीं था।उस गंदे क्षेत्र से गुजरने के कारण मुझमें दुर्गंध व्याप्त हो गई थी। भला दुर्गंधयुक्त वायु का कोई कैसे स्वागत करता?
प्रश्नः 1.
हवा को अपनी शीतलता पर घमंड क्यों था?
उत्तर:
हवा को अपनी
शीतलता पर इसलिए घमंड था क्योंकि वह पर्वत की ऊँची-ऊँची बरफीली चोटियों को छूती हुई
आई थी।
प्रश्नः 2.
हवा क्या करने के लिए आतुर थी?
उत्तर:
हवा लोगों में अपनी
शीतलता बाँटने के लिए आतुर थी।
प्रश्नः 3.
हवा को किसने रोका और क्यों? हवा की क्या प्रतिक्रिया
थी?
उत्तर:
हवा को वनलता ने रोका ताकि शीतल हवा उससे खुशबू ले ले और लोगों को
शीतलता ही न बाँटे बल्कि लोगों को सुगंधित भी कर दे। हवा अपनी शीतलता के गर्व में
भरी थी इसलिए उसने वनलता की बात अनसुनी कर दी।
प्रश्नः 4.
गंदगी और बदबू का हवा पर क्या असर पड़ा? लोगों ने हवा का स्वागत
क्यों नहीं किया?
उत्तर:
गंदगी और बदबू के कारण हवा बदबूदार हो गई, जिससे लोग
हवा से दूरी बनाने लगे। बदबूदार हवा किसी को अच्छी नहीं लगती है, इसलिए लोगों ने
हवा का स्वागत नहीं किया।
प्रश्नः 5.
हवा वनलता के पास क्यों लौट आई ? उसने वनलता से क्या सीख लिया
होगा?
उत्तर:
लोगों की उपेक्षा से दुखी होकर हवा वनलता के पास लौट आई। उसने
वनलता से यह सीख ली होगी कि अहंकार नहीं करना चाहिए और दूसरे की बातों की उपेक्षा
नहीं करनी चाहिए।
25. हँसी शरीर के स्वास्थ्य का शुभ संकेत देने वाली होती है। वह एक साथ ही शरीर
और मन को प्रसन्न करती है। वाचन-शक्ति
बढ़ाती है, रक्त को चलाती और पसीना लाती
है। हँसी एक शक्तिशाली दवा है। एक डॉक्टर कहता है कि वह जीवन की मीठी मदिरा है।
डॉक्टर ह्यूड कहता है कि आनंद से बढ़कर बहुमूल्य वस्तु मनुष्य के पास नहीं है।
कारलाइल एक राजकुमार था। वह संसार त्यागी हो गया था। वह कहता है कि जो जी से हँसता
है, वह कभी बुरा नहीं होता। जी से हँसो, तुम्हें अच्छा लगेगा।
अपने मित्र को हँसाओ, वह अधिक प्रसन्न होगा। शत्रु को हँसाओ, तुम से कम घृणा करेगा। एक अनजान को हँसाओ, तुम पर भरोसा करेगा। उदास को हँसाओ, उसका दुख घटेगा। एक निराश को हँसाओ, उसकी आशा बढ़ेगी। एक बूढे को हँसाओ, वह अपने को जवान समझने लगेगा। एक बालक को हँसाओ, उसके स्वास्थ्य में वृद्धि होगी। वह प्रसन्न और प्यारा बालक बनेगा। पर हमारे जीवन का उद्देश्य केवल हँसी ही नहीं है, हमको बहुत काम करने हैं तथापि उन कामों में, कष्टों में और चिंताओं में एक सुंदर आंतरिक हँसी, बड़ी प्यारी वस्तु भगवान ने दी है।
प्रश्नः 1.
यूड ने मनुष्य के लिए सबसे बहुमूल्य वस्तु किसे बताया है
?
उत्तर:
ह्यूड ने मनुष्य के लिए हँसी को सबसे बहुमूल्य वस्तु बताया है।
प्रश्नः 2.
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
गद्यांश का शीर्षक
है – जीवन में हँसी का महत्त्व।
प्रश्नः 3.
हँसी स्वास्थ्य का शुभ संकेत किस तरह देती है ?
उत्तर:
हँसी
से तन-मन प्रसन्न होता है, पाचन शक्ति बढ़ती है। शरीर में रक्त संचार बढ़ता है और
पसीना लाने वाली ग्रंथियाँ सक्रिय होती हैं। ये सब स्वस्थ शरीर के लक्षण हैं। इस
तरह हँसी स्वास्थ्य का शुभ संकेत देती है।
प्रश्नः 4.
एक निराश बूढ़े और बालक पर हँसी क्या प्रभाव डालती
है?
उत्तर:
हँसी एक निराश व्यक्ति की हताशा दूर कर आशा का संचार करती है।
हँसने से बूढ़ा व्यक्ति जवान-सा महसूस करता है। हँसी बालक को प्रसन्न चित्त और
स्वस्थ बनाती है।
प्रश्नः 5.
गद्यांश में ईश्वर द्वारा प्रदत्त बड़ी प्यारी वस्तु किसे कहा गया
है और क्यों?
उत्तर:
गद्यांश में हँसी को ईश्वर प्रदत्त सबसे प्यारी वस्तु
कहा गया है, क्योंकि हँसी कष्टों और चिंताओं से मनुष्य को राहत दिलाती __ है,
व्यक्ति को स्वस्थ बनाती है और उसे दीर्घायु करती है।
अब स्वयं करें
1) जातियों की क्षमता और सजीवता यदि कहीं प्रत्यक्ष देखने को मिल सकती है तो उसके साहित्य रूपी आईने में ही मिल सकती है। इस आईने के सामने जाते ही हमें यह तत्काल मालूम हो जाता है कि अमुक जाति की जीवनी शक्ति इस समय कितनी या कैसी है और भूतकाल में कितनी और कैसी थी। आप भोजन करना बंद कर दीजिए या कम कर दीजिए, आप का शरीर क्षीण हो जाएगा और भविष्य-अचिरात् नाशोन्मुख होने लगेगा। इसी तरह आप साहित्य के रसास्वादन से अपने मस्तिष्क को वंचित कर दीजिए, वह निष्क्रिय होकर धीरे-धीरे किसी काम का न रह जाएगा। शरीर का खाद्य भोजन है और मस्तिष्क का खाद्य साहित्य। यदि हम अपने मस्तिष्क को निष्क्रिय और कालांतर में निर्जीव-सा नहीं कर डालना चाहते, तो हमें साहित्य का सतत सेवन करना चाहिए और उसमें नवीनता और पौष्टिकता लाने के लिए उसका उत्पादन भी करते रहना चाहिए।
प्रश्न
2) ज्ञान-राशि के संचित कोष का नाम ही साहित्य है। सब तरह के भावों को प्रकट करने की योग्यता रखने वाली और निर्दोष होने पर भी, यदि कोई भाषा अपना निज का साहित्य नहीं रखती तो वह, रूपवती भिखारिन की तरह, कदापि आदरणीय नहीं हो सकती। उसकी शोभा, उसकी श्रीसंपन्नता, उसकी मान-मर्यादा उसके साहित्य पर ही अवलंबित रहती है। जाति विशेष के उत्कर्षापकर्ष का, उसके उच्चनीच भावों का, उसके धार्मिक विचारों और सामाजिक संघटन का उसके ऐतिहासिक घटनाचक्रों और राजनैतिक स्थितियों का प्रतिबिंब देखने को यदि कहीं मिल सकता है तो उसके ग्रंथ-साहित्य ही में मिल सकता है। सामाजिक शक्ति या सजीवता, सामाजिक अशक्ति या निर्जीवता और सामाजिक सभ्यता तथा असभ्यता का निर्णायक एकमात्र साहित्य है।
प्रश्न
3) मांगलिक अवसरों पर पुष्प मालाओं का महत्त्व कोई नया नहीं है। पुष्प मालाएँ उन्हें ही पहनाई जाती थीं जिन्हें सामाजिक दृष्टि से विशिष्ट या अति विशिष्ट माना जाता था। देवताओं पर पुष्प मालाएँ अर्पित करने के पीछे मनुष्य की ऐसी ही भावनाएँ थी। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है फूलों की मालाओं को धारण करना। जितना सम्मान, फूलों की माला पहनाकर, किसी अति विशिष्ट व्यक्ति को दिया जाता है उसकी सार्थकता तभी है जब वह व्यक्ति अपने गले में धारण कर उसे स्वीकार करे। यदि वह विशिष्ट व्यक्ति उसे धारण नहीं करता है तो वह अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं उस सम्मान का तिरस्कार करता है।
इसमें न अपठित गद्यांशसिर्फ पुष्प माला पहनाने वालों का बल्कि उन फूलों का भी अपमान होता है जो उसमें गूंथे जाते हैं। वर्तमान लोक रीति में पुष्प मालाओं का ऐसा अपमान शिक्षित एवं सुसंस्कृत कहे जाने वाले वर्गों में देखा जा सकता है। किसी भी शुभ अवसर पर मुख्य अतिथि या विशिष्ट व्यक्ति को पुष्प मालाएँ पहनाई तो जाती हैं लेकिन न जाने किस कुंठा या कुसंस्कार के कारण उसे गले से निकालकर सामने टेबल पर रख देते हैं या स्वनामधन्य मंत्री अपने पी०ए० या सुरक्षाकर्मियों को सौंप देते हैं जो जाते समय या तो छोड़ जाते हैं या रास्ते में फेंक जाते हैं। पुष्पों का, पहनाने वालों का और स्वयं का वह इस प्रकार अपमान कर जाते हैं जिसमें पता चलता है कि विशिष्ट कहे जाने वाले व्यक्ति में इतनी पात्रता नहीं कि वे उस पुष्प माला को अपने गले में धारण कर सकें।
प्रश्न
4) अपनी मृत्यु से कुछ माह पहले महात्मा गांधी ने भाषा के प्रश्न पर अपने विचार दोहराते हुए कहा था, “यह हिंदुस्तानी न तो संस्कृतनिष्ठ हिंदी होनी चाहिए और न ही फारसी निष्ठ उर्दू। यह दोनों का सुंदर मिश्रण होना चाहिए। उसे विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं से शब्द खुलकर उधार लेने चाहिए। विदेशी भाषाओं के ऐसे शब्द लेने में कोई हर्ज नहीं है जो हमारी राष्ट्रीय भाषा में अच्छी तरह और आसानी से घुल-मिल सकते हैं। इस प्रकार हमारी राष्ट्रीय भाषा एक समृद्ध और शक्तिशाली भाषा होनी चाहिए जो मानवीय विचारों और भावनाओं के पूरे समुच्चय को अभिव्यक्ति दे सके। खुद को हिंदी या उर्दू से बाँध लेना देशभक्ति की भावना और समझदारी के विरुद्ध एक अपराध होगा। (हरिजन सेवक समाज, 12 अक्टूबर, 1947)
प्रश्न
5. संसार के सभी देशों में शिक्षित व्यक्ति की सबसे पहली पहचान यह होती है कि वह अपनी मातृभाषा में दक्षता से काम कर सकता है। केवल भारत ही एक ऐसा देश है जिसमें शिक्षित व्यक्ति वह समझा जाता है जो अपनी मातृभाषा में दक्ष हो या नहीं किंतु अंग्रेजी में जिसकी दक्षता असंदिग्ध हो। संसार के अन्य देशों में सुसंस्कृत व्यक्ति वह समझा जाता है जिसके घर में अपनी भाषा की पुस्तकों का संग्रह हो और जिसे बराबर यह पता रहे कि उसकी भाषा के अच्छे लेखक और कवि कौन हैं? तथा समय-समय पर उनकी कौन-सी कृतियाँ प्रकाशित हो रही हैं? भारत में स्थिति दूसरी है। यहाँ घर में प्रायः साज-सज्जा के आधुनिक उपकरण तो होते हैं किंतु अपनी भाषा की कोई पुस्तक नहीं होती है।
यह दुरवस्था भले हो किसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है किंतु यह सुदशा नहीं है दुरवस्था ही है। इस दृष्टि से भारतीय भाषाओं के लेखक केवल यूरोपीय और अमेरिकी लेखकों से ही हीन नहीं हैं बल्कि उनकी किस्मत चीन, जापान के लेखकों की किस्मत से भी खराब है क्योंकि इन सभी लेखकों की कृतियाँ वहाँ के अत्यंत सुशिक्षित लोग भी पढ़ते हैं। केवल हम ही नहीं हैं जिनकी पुस्तकों पर यहाँ के तथाकथित शिक्षित समुदाय की दृष्टि प्रायः नहीं पड़ती। हमारा तथाकथित उच्च शिक्षित समुदाय जो कुछ पढ़ना चाहता है, उसे अंग्रेजी में ही पढ़ लेता है। यहाँ तक उसकी कविता और उपन्यास पढ़ने की तृष्णा भी अंग्रेजी की कविता और उपन्यास पढ़कर ही समाप्त हो जाती है और उसे यह जानने की इच्छा ही नहीं होती कि शरीर से वह जिस समाज कासदस्य है उसके मनोभाव उपन्यास और काव्य में किस अदा से व्यक्त हो रहे हैं।
प्रश्न
1. हमारे देश में शिक्षित व्यक्ति की पहचान क्या है?
2. शब्दार्थ
लिखिए – कृतियाँ, दक्षता।
3. भारत तथा अन्य देशों के सुसंस्कृत व्यक्तियों के
मापदंड किस तरह अलग-अलग हैं ?
4. भारतीय भाषाओं के लेखकों की स्थिति चीन जापान
के लेखकों से हीन क्यों है? ऐसी स्थिति का होना किसका परिणाम है?
5. भारत के
तथाकथित शिक्षित समुदाय की स्थिति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
अपठित काव्यांश
अपठित काव्यांश अपठित काव्यांश किसी कविता का वह अंश होता है जो पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकों से नहीं लिया जाता है। इस अंश को छात्रों द्वारा पहले नहीं पढ़ा गया होता है।
अपठित काव्यांश का उद्देश्य काव्य पंक्तियों का भाव और अर्थ समझना, कठिन शब्दों के अर्थ समझना, प्रतीकार्थ समझना, काव्य सौंदर्य समझना, भाषा-शैली समझना तथा काव्यांश में निहित संदेश। शिक्षा की समझ आदि से संबंधित विद्यार्थियों की योग्यता की जाँच-परख करना है।
अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करने से पहले काव्यांश को दो-तीन बार पढ़ना चाहिए तथा उसका भावार्थ और मूलभाव समझ में आ जाए। इसके लिए काव्यांश के शब्दार्थ एवं भावार्थ पर चिंतन-मनन करना चाहिए। छात्रों को व्याकरण एवं भाषा पर अच्छी पकड़ होने से यह काम आसान हो जाता है। यद्यपि गद्यांश की तुलना में काव्यांश की भाषा छात्रों को कठिन लगती है। इसमें प्रतीकों का प्रयोग इसका अर्थ कठिन बना देता है, फिर भी निरंतर अभ्यास से इन कठिनाइयों पर विजय पाई जा सकती है।
अपठित काव्यांश संबंधी प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित प्रमुख बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए –
काव्यांश को हल करने में आनेवाली कठिनाई से बचने के लिए छात्र यह उदाहरण देखें और समझें –
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्नः 1.
कवि देशवासियों से क्या आह्वान कर रहा
है?
उत्तर:
कवि देशवासियों से यह आह्वान कर रहा है कि वे भारत में एकता
स्थापित करके सुख-शांति से जीवन बिताएँ।
प्रश्नः 2.
आपस में एकता बनाए रखने के लिए किसका उदाहरण दिया गया
है?
उत्तर:
आपस में एकता बनाए रखने के लिए कवि तरह-तरह के फूलों से बनी सुंदर
माला का उदाहरण दे रहा है।
प्रश्नः 3.
देश में एकता की भावना कब मज़बूत हो सकती है?
उत्तर:
देश
में एकता की सच्ची भावना तब मज़बूत हो सकती है जब हर देशवासी जाति-धर्म, भाषा
प्रांत आदि के बारे में अविवेक से सोचना बंद करे और सच्चे मन से दूसरों से मेल
करे।
प्रश्नः 4.
‘भिन्नता में खिन्नता’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है और
क्यों?
उत्तर:
भिन्नता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि अलग-अलग रहने का
परिणाम दुख एवं अशांति ही होता है। अतः हमें मेल जोल और ऐक्यभाव से रहना चाहिए
क्योंकि एकता के अभाव में देश कमज़ोर हो जाएगा जिसका परिणाम दुखद ही होगा।
प्रश्नः 5.
काव्यांश में सच्ची एकता किसे कहा गया है? इसे बनाए रखने के लिए
क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सच्चे मन से ही एक-दूसरे से मिलने को सच्ची एकता कहा
है। इसके लिए भारतीयों को आपसी बैर और विरोध को सप्रयास बलपूर्वक दबा देना चाहिए और
एकता मज़बूत करनी चाहिए।
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
1. कोलाहल हो,
या सन्नाटा, कविता सदा सृजन करती है,
जब भी आँसू
कविता
सदा जंग लड़ती है।
यात्राएँ जब मौन हो गईं
कविता ने जीना सिखलाया
जब भी तम
का
जुल्म चढ़ा है, कविता नया सूर्य गढ़ती है,
जब गीतों की फ़सलें लुटती
शीलहरण होता कलियों का,
शब्दहीन जब हुई चेतना
हुआ पराजित,
तब-तब चैन लुटा गलियों का जब भी कर्ता हुआ अकर्ता,
जब कुरसी
का
कंस गरजता, कविता स्वयं कृष्ण बनती है।
अपने भी हो गए पराए कविता ने चलना
सिखलाया।
यूँ झूठे अनुबंध हो गए
घर में ही वनवास हो रहा
यूँ गूंगे संबंध
हो गए। (Delhi 2015)
प्रश्नः 1.
कविता की प्रवृत्ति किस तरह की बताई गई है?
उत्तर:
कविता की
प्रवृत्ति हर काल में नव सृजन करने वाली बताई गई है।
प्रश्नः 2.
कविता मनुष्य को कब जीना सिखाती है?
उत्तर:
जब परिश्रमी
कर्मठ और श्रम करने वाले लोग अकर्मण्यता का शिकार हो जाते हैं तब कविता कर्म की राह
दिखाकर उन्हें जीना सिखाती है।
प्रश्नः 3.
कविता लगातार संघर्ष करने की प्रेरणा देती है-ऐसा किस पंक्ति में
कहा गया है?
उत्तर:
उक्त भाव व्यक्त करने वाली पंक्ति है… जब भी आँसू हुआ
पराजित, कविता सदा जंग लड़ती है।
प्रश्नः 4.
कविता ने लोगों को कब प्रेरित किया और कैसे?
उत्तर:
जब जब
लोगों में निराशा और अंधकार के कारण हताशा की स्थिति आई, तब-तब कविता ने लोगों को
प्रेरित किया। निराशा की इस बेला में कविता नया सूर्य बनकर अंधेरे में रास्ता
दिखाती है।
प्रश्नः 5.
संबंधों में दूरियाँ आ जाने का परिणाम आज किस रूप में भुगतना पड़
रहा है?
उत्तर:
संबंधों में दूरियाँ बढ़ जाने के कारण अपने लोग भी दूसरों
जैसा ही व्यवहार करने लगे। जो संबंध अत्यंत घनिष्ठ थे वे समझौता बनकर रह गए। लोग एक
घर में रहते हुए भी दूरी बनाकर रहने लगे हैं।
2. जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा
सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हों चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द
कहनेवाली।
मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों
में;
अथवा कोई दुधमुँही जिसे बहलाने के
जंतर-मंतर सीमित हों चार खिलौनों
में।
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती
है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती
है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता
है;
जनता की रोके राह, समय में ताब कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता
है।
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार
करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट
धरो।
आरती लिये तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों
में?
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में,
खलिहानों में। (Delhi 2015)
प्रश्नः 1.
एहसासहीन जनता की तुलना किससे की गई है?
उत्तर:
एहसासहीन
जनता की तुलना उस फूल से की गई है जिसे जब चाहें, तोड़कर दूसरे के सामने प्रस्तुत
कर दिया जाता है।
प्रश्नः 2.
कवि किसके सिर पर मुकुट रखने के लिए कह रहा है?
उत्तर:
कवि
तैंतीस करोड़ भारतीय जनता के सिर पर मुकुट रखने के लिए कह रहा है।
प्रश्नः 3.
‘जंतर-मंतर सीमित हों चार खिलौनों में’ का भाव क्या
है?
उत्तर:
भाव यह है कि अपनी माँगों के लिए आवाज़ उठाती जनता को बातों का
खिलौना देकर बहला दिया जाता है।
प्रश्नः 4.
क्रोधित जनता में क्रांति भड़कने का क्या परिणाम होता है
?
उत्तर:
क्रोधित जनता में क्रांति भड़कने पर व्यवस्था में भूकंप आ जाता है,
तूफ़ान आ जाता है। उसकी हुंकार से शासन की नींव हिल जाती है। उसकी शक्ति से सत्ता
नष्ट हो जाती है। तब समय में भी इतनी ताकत नहीं रहती कि उसे रोका जा सके।
प्रश्नः 5.
कवि ने देवता किसे कहा है ? वह कहाँ रहता है?
उत्तर:
कवि ने
हमारे देश के साधारण लोगों, मज़दूरों, किसानों आदि को देवता कहा है। ऐसे देवता
देवालयों और राजप्रासादों में न रहकर सड़कों के किनारे मिट्टी खोदते और
खेतों-खलिहानों में काम करते हुए मिल जाते हैं।
3. सबको स्वतंत्र कर दे यह संगठन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन
हमारा॥
जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में।
हो रक्त बूंद भर भी जब तक हमारे तन
में।
छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन
हमारा॥
कोई दलित न जग में हमको पड़े दिखाई।
स्वाधीन हों सुखी हों सारे अछूत भाई
॥
सबको गले लगा ले यह शुद्ध मन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा
।।
धुन एक ध्यान में है, विश्वास है विजय में।
हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में
प्रलय में॥
कैसे उजाड़ देगा कोई चमन हमारा?
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन
हमारा॥
हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े
चलेंगे॥
जब तक पहुँच न लेंगे तब तक न साँस लेंगे।
वह लक्ष्य सामने है पीछे
नहीं टलेंगे।
गायें सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा
में तन हमारा॥ (Foreign 2015)
प्रश्नः 1.
कवि की हार्दिक इच्छा क्या है?
उत्तर:
कवि की हार्दिक इच्छा
यह है कि वह मरते समय तक देश की सेवा करता रहे।
प्रश्नः 2.
‘हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में निहित अलंकार का नाम
बताइए।
उत्तर:
‘हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में अनुप्रास अलंकार
है।
प्रश्नः 3.
‘हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में’ यहाँ ‘तफ़ान’ और ‘प्रलय’
किसके प्रतीक हैं?
उत्तर:
‘हम तो अचल रहेंगे तूफान में प्रलय में’-यहाँ
‘तूफ़ान’ और ‘प्रलय’ राह की मुश्किलों के प्रतीक हैं।
प्रश्नः 4.
कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसका स्वरूप कैसा
होगा?
उत्तर:
कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसमें कोई भी दीन-दुखी और दलित
नहीं होगा। समाज के अछूत समझे जाने वाले दलित जन भी आपस में भाई-भाई होंगे और वे
एक-दूसरे को प्रेम से गले लगाएँगे।
प्रश्नः 5.
कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए क्या-क्या करना चाहता है और
क्यों?
उत्तर:
कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए शरीर में एक भी साँस रहने तक आगे
बढ़ना चाहता है। वह लक्ष्य तक पहुँचे बिना साँस तक नहीं लेना चाहता है। कवि उस
लक्ष्य के सहारे चाहता है कि विश्व के लोग भारत का गुणगान करें।
4. तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा।
संबंधों के महासमर में तू भी
हारा मैं भी हारा ।।
बँटवारे ने भीतर-भीतर
ऐसी-ऐसी डाह जगाई।
जैसे सरसों के खेतों में
सत्यानाशी उग-उग आई॥
तेरे-मेरे बीच कहीं है टूटा-अनटूटा पतियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी
हारा मैं भी हारा॥
अपशब्दों की बंदनवारें
अपने घर हम कैसे जाएँ।
जैसे साँपों के जंगल में
पंछी कैसे नीड़ बनाएँ।।
तेरे-मेरे बीच कहीं है भूला-अनभूला गलियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी
हारा मैं भी हारा ।।
बचपन की स्नेहिल तसवीरें
देखें तो आँखें दुखती हैं।
जैसे अधमुरझी कोंपल
से
ढलती रात ओस झरती है॥
तेरे-मेरे बीच कहीं है बूझा-अनबूझा उजियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी
हारा मैं भी हारा॥ (Foreign 2015)
प्रश्नः 1.
कविता में किस बँटवारे की बात कही गई है? उत्तर:
कविता में दो
भाइयों के बीच हुए बँटवारे और उससे उत्पन्न स्थिति की बात कही गई है।
प्रश्नः 2.
‘तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा’ का भाव क्या
है?
उत्तर:
‘तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा’ का भाव यह है कि
संबंधों में इतनी घृणा हो गई है कि भाईचारा के लिए इसमें कोई जगह नहीं है।
प्रश्नः 3.
सरसों के खेत और सत्यानाशी किनके प्रतीक हैं?
उत्तर:
‘सरसों
के खेत’ मिल जुलकर रहने वालों और ‘सत्यानाशी’ एकता देखकर ईर्ष्या से जल-भुन जाने
वालों के प्रतीक हैं।
प्रश्नः 4.
अपशब्दों की बंदनवारें हमारे संबंध और रहन-सहन को किस तरह
प्रभावित कर रही हैं ?
उत्तर:
अपशब्दों की बंदनवारों के कारण लोगों का आपस
में मिलना-जुलना कम हो गया है। आज स्थिति यह है कि साँपों के जंगल में पक्षी कैसे
अपना घर बना सकते हैं। अब तो लोग एक-दूसरे से मिलने में कतराने लगे हैं।
प्रश्नः 5.
बचपन की तस्वीरें देखकर कवि को कैसा लगता है ? ऐसे में कवि को किस
बात की आशा जग रही है?
उत्तर:
बचपन की तसवीरें देखकर लगता है कि पहले लोगों
में बहत भाईचारा था। वे मिल-जुलकर रहते थे। वैसी स्थिति अब स्वप्न बन गई है। ऐसे
में कवि को आशा है कि दिलों में आई ये दूरियों की मलिनता समाप्त हो जाएगी और नए
संबंधों की शुरुआत होगी।
5. ओ महमूदा मेरी दिल जिगरी
तेरे साथ मैं भी छत पर खड़ी हूँ
तुम्हारी रसोई
तुम्हारी बैठक और गाय-घर में
पानी घुस आया
उसमें तैर रहा है घर का सामान
तेरे बाहर के बाग का सेब का दरख्त
टूट कर पानी के साथ बह रहा है
अगले साल
इसमें पहली बार सेब लगने थे
तेरी बल खाकर जाती कश्मीरी कढ़ाई वाली चप्पल
हुसैन की पेशावरी जूती
बह रहे हैं गंदले पानी के साथ
तेरी ढलवाँ छत पर बैठा
है
घर के पिंजरे का तोता
वह फिर पिंजरे में आना चाहता है
महमूदा मेरी बहन
इसी पानी में बह रही है तेरी लाडली गऊ
इसका बछड़ा पता
नहीं कहाँ है
तेरी गऊ के दूध भरे थन
अकड़ कर लोहा हो गए हैं
जम गया है दूध
सब तरफ पानी ही पानी
पूरा शहर डल झील हो गया है
महमूदा, मेरी महमूदा
मैं तेरे साथ खड़ी हूँ
मुझे यकीन है छत पर ज़रूर
कोई पानी की बोतल गिरेगी
कोई खाने का सामान या दूध की थैली
मैं कुरबान उन
बच्चों की माँओं पर
जो बाढ़ में से निकलकर
बच्चों की तरह पीड़ितों को
सुरक्षित स्थान पर पहुँचा रही हैं
महमूदा हम दोनों फिर खड़े होंगे
मैं
तुम्हारी कमलिनी अपनी धरती पर…
उसे चूम लेंगे अपने सूखे होठों से
पानी की इस
तबाही से फिर निकल आएगा।
मेरा चाँद जैसा जम्मू
मेरा फूल जैसा कश्मीर। (All
India 2015)
प्रश्नः 1.
रसोई, बैठक और गाय घर में पानी घुस आने का क्या कारण है
?
उत्तर:
रसोई, बैठक और गाय-घर में पानी घुस आने का कारण भीषण बाढ़ है।
प्रश्नः 2.
‘पूरा शहर डल-झील हो गया है’ का आशय क्या है ?
उत्तर:
आशय
यह है कि बाढ़ का पानी चारों ओर ऐसा भर गया है जैसे सारा शहर डलझील बन गया है।
प्रश्नः 3.
कवयित्री को किस बात का विश्वास है?
उत्तर:
कवयित्री को
विश्वास है कि उसकी छत पर पानी की बोतल, खाने का सामान या दूध की थैली अवश्य
गिरेगी।
प्रश्नः 4.
जलमग्न हुए स्थान पर तोते और गाय-बछड़े की मार्मिक दशा कैसी हो गई
है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आ जाने से पेड़ धराशायी हो गए हैं। बाहर सब
जलमग्न हो गया है। इस स्थिति में तोता घर की छत पर बैठा है। इसी पानी में महमूदा की
गाय बह रही है, बछड़े का पता नहीं है। बछड़े से न मिल पाने के कारण गाय के दूध भरे
थन अकड़ गए हैं।
प्रश्नः 5.
कवयित्री की आशावादिता किस प्रकार प्रकट हुई है? काव्यांश के आधार
पर लिखिए।
उत्तर:
कवयित्री को आशा है कि पानी जल्द ही उतर जाएगा, धरती की
रौनक-लौट आएगी और ज मू-कश्मीर का स्वर्ग जैसा सौंदर्य पुनः जल्दी वापस आ जाएगा।
6. हम जंग न होने देंगे!
विश्व शांति के हम साधक हैं,
जंग न होने
देंगे!
कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी,
खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी,
आसमान फिर कभी न अंगारे
उगलेगा,
एटम से फिर नागासाकी नहीं जलेगी
युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने
देंगे!
हथियारों के ढेरों पर जिनका है डेरा,
मुँह में शांति, बगल में बम, धोखे का फेरा,
कफ़न बेचने वालों से कह दो
चिल्लाकर,
दुनिया जान गई है उनका असली चेहरा,
कामयाब हों उनकी चालें, ढंग न
होने देंगे!
हमें चाहिए शांति, ज़िंदगी हमको प्यारी,
हमें चाहिए शांति, सृजन की है
तैयारी,
हमने छेड़ी जंग भूख से, बीमारी से,
आगे आकर हाथ बटाए दुनिया
सारी,
हरी-भरी धरती को खूनी रंग न लेने देंगे! (Delhi 2014)
प्रश्नः 1.
कवि किस तरह की दुनिया चाहता है ?
उत्तर:
कवि ऐसी दुनिया
चाहता है, जहाँ युद्ध का नामोनिशान न हो और सर्वत्र शांति हो।
प्रश्नः 2.
‘खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी’ का आशय क्या
है?
उत्तर:
‘खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी’ का आशय है कि युद्ध अब
अपार जनसंहार का कारण नहीं बनेगा।
प्रश्नः 3.
‘कफ़न बेचने वाले’ कहकर कवि ने किनकी ओर संकेत किया
है?
उत्तर:
कफ़न बेचने वालों कहकर कवि ने उन देशों की ओर संकेत किया है जो
घातक अस्त्र-शस्त्र की खरीद-फरोख्त करते हैं।
प्रश्नः 4.
‘एटम’ के माध्यम से कवि ने क्या याद दिलाया है ? उसका सपना क्या
है ?
उत्तर:
एटम के माध्यम से कवि ने अमेरिका द्वारा नागासाकी और हिरोशिमा पर
गिराए गए बम की ओर संकेत किया है। उसका सपना यह है उसने युद्धरहित दुनिया का स्वप्न
देखा है, वह किसी भी दशा में नहीं टूटना चाहिए।
प्रश्नः 5.
कवि ने किसके विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है? उसका यह कार्य कितना
उचित है?
उत्तर:
कवि ने भूख और बीमारी से जंग छेड़ रखी है। इसका कारण यह है
कि कवि को शांतिपूर्ण जीवन पसंद है। वह नवसृजन की तैयारी में व्यस्त है। इस जंग में
वह विश्व को भागीदार बनाकर दुनिया में खुशहाली देखना चाहता है।
7. जिसके निमित्त तप-त्याग किए, हँसते-हँसते बलिदान दिए,
कारागारों में कष्ट
सहे, दुर्दमन नीति ने देह दहे,
घर-बार और परिवार मिटे, नर-नारि पिटे, बाज़ार
लुटे
आई, पाई वह ‘स्वतंत्रता’, पर सुख से नेह न नाता है –
क्या यही
‘स्वराज्य’ कहाता है।
सुख, सुविधा, समता पाएँगे, सब सत्य-स्नेह सरसाएँगे,
तब भ्रष्टाचार नहीं होगा,
अनुचित व्यवहार नहीं होगा,
जन-नायक यही बताते थे, दे-दे दलील समझाते थे,
वे हुई व्यर्थ बीती बातें, जिनका अब पता न पाता है।
क्या यही ‘स्वराज्य’
कहाता है।
शुचि, स्नेह, अहिंसा, सत्य, कर्म, बतलाए ‘बापू’ ने सुधर्म,
जो बिना धर्म की
राजनीति, उसको कहते थे वह अनीति,
अब गांधीवाद बिसार दिया, सद्भाव, त्याग, तप मार
दिया,
व्यवसाय बन गया देश-प्रेम, खुल गया स्वार्थ का खाता है –
क्या यही
‘स्वराज्य’ कहाता है। (Delhi 2014)
प्रश्नः 1.
वीरों ने किसके लिए तप त्याग करते हुए अपना बलिदान दे
दिया?
उत्तर:
वीरों ने देश को आज़ादी दिलाने के लिए तप-त्याग करते हुए अपना
बलिदान दे दिया।
प्रश्नः 2.
‘सुख-सुविधा समता पाएँगे’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘सुख-सुविधा समता पाएँगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
‘क्या यही स्वराज्य कहाता है’ कहकर कवि ने व्यंग्य क्यों किया है
?
उत्तर:
‘क्या यही स्वराज्य कहाता है’ कहकर कवि ने इसलिए व्यंग्य किया है
क्योंकि हमारे जननायकों ने ऐसी स्वतंत्रता का सपना नहीं देखा था।
प्रश्नः 4.
हमारे जननायकों ने किस तरह की स्वतंत्रता का स्वप्न देखा था? वह
स्वप्न कहाँ तक पूरा हो सका।
उत्तर:
हमारे जननायकों द्वारा स्वतंत्रता का
सपना देखा गया था उसमें सभी को सुख-सुविधा और समानता पाने तथा मिल-जलकर प्रेम से
रहने, भ्रष्टाचार मुक्त भारत में सबके साथ एक समान व्यवहार करने के सुंदर दृश्य की
कल्पना की गई थी।
प्रश्नः 5.
बापू अनीति किसे मानते थे? उनकी राजनीति की आज क्या स्थिति
है?
उत्तर:
बापू उस राजनीति को अनीति कहते थे जिसमें पवित्रता, प्रेम, अहिंसा
शांति जैसे सुधर्म का मेल न हो। उनकी राजनीति में अब गांधीवाद, सद्भाव, त्याग, तप
आदि मर चुका है। देश-प्रेम के नाम पर व्यवसाय किया जा रहा है और सर्वत्र स्वार्थ का
बोलबाला है।
8. जैसे धधके आग ग्रीष्म के लाल पलाशों के फूलों में,
वैसी आग जगाओ मन में,
वैसी आग जगाओ रे।
जीवन की धरती तो रूखी मटमैली ही होती है,
तन-तरु-मूल सिंचाई, अतल की गहराई
में होती है।
किंतु कोपलों जैसे ज्वाला में भी शीश उठाओ रे,
ऐसी आग जगाओ मन
में, ऐसी आग जगाओ रे।
एक आग होती है मन को जो कि राह दिखलाती है,
सघन अँधेरे में मशाल बन दिशि का बोध कराती है,
किंतु द्वेष की चिनगारी से मत
घर-द्वार जलाओ रे,
ऐसी आग जगाओ मन में, ऐसी आग जगाओ रे।
आज ग्रीष्म की ऊष्मा कल को रिमझिम राग सुनाएगी,
तापमयी दोपहरी, संध्या को
बयार ले आएगी;
रसघन आँगन में हिलकोरे, ऐसा ताप रचाओ रे;
ऐसी आग जगाओ मन में,
ऐसी आग जगाओ रे। (Foreign 2014)
प्रश्नः 1.
कवि किनसे कैसी ज्वाला जलाने के लिए कह रहा है?
उत्तर:
कवि
देश के नवयुवकों से ग्रीष्म ऋतु में धधकते पलाश के लाल फूलों-सी क्रांति जगाने के
लिए कह रहा है।
प्रश्नः 2.
वृक्षों की कोपलें हमें क्या प्रेरणा देती
हैं?
उत्तर:
वृक्षों की कोपलें हमें ज्वालाओं में भी सिर ऊँचा उठाए रखने की
प्रेरणा देती हैं।
प्रश्नः 3.
‘जीवन की धरती तो रूखी मटमैली’ में निहित अलंकार का नाम
बताइए।
उत्तर:
‘जीवन की धरती तो रूखी मटमैली’ में रूपक अलंकार है।
प्रश्नः 4.
कवि ने दो प्रकार की आग का उल्लेख किया है। कविता के संदर्भ में
स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
काव्यांश में कवि ने दो प्रकार की आग का उल्लेख किया
है। पहली आग वह ज्ञान है जिससे मन को दिशा दिख जाती है और अँधेरे में मार्ग
प्रकाशित होता है किंतु वह दूसरी आग अर्थात् द्वेष की ज्वाला से दूर रहना चाहता है
ताकि इससे किसी का घर न जले।
प्रश्नः 5.
आज जलाने से कवि को किस सुखद परिणाम की आशा है ? काव्यांश के आधार
पर लिखिए।
उत्तर:
आग जलाने से कवि जिस सुखद परिणाम की आशा करता है, वे हैं
–
क. दुख सहने और संघर्ष करने से ही सुखद समय आएगा।
ख. जिस प्रकार गरम दोपहरी
के बाद सुहानी शाम आती है उसी प्रकार क्रांति का परिणाम भी सुखद ही होगा।
ग. हर
घर-आँगन में खुशी का वातावरण होगा।
9. कैसे बेमौके पर तुमने ये
मज़हब के शोले सुलगाए।
मानव-मंगल-अभियानों
में
जब नया कल्प आरंभ हुआ
जब चंद्रलोक की यात्रा के
सपने सच होने को
आए।
तुम राग अलापो मज़हब का
पैगंबर को बदनाम करो,
नापाक हरकतों में अपनी
रूहों को कत्लेआम करो!
हम प्रजातंत्र में मनुष्यता के
मंगल-कलश सँवार रहे
हर जाति-धर्म के लिए
खुला आकाश-प्रकाश पसार रहे।
उत्सर्ग हमारा आज
हिमालय की चोटी छू आया है।
सदियों की कालिख को
हमने बलिदानों से धोना है
मानवता की खुशहाली की
हरियाली फ़सलें बोना है।
बढ़-बढ़कर बातें करने की
बलिदानी रटते बान नहीं
इतना तो तुम भी समझ गए
यह कल का हिंदुस्तान नहीं।
(Foreign 2014)
प्रश्नः 1.
कवि ने ‘मज़हब के शोले’ किन्हें कहा है ?
उत्तर:
कवि ने
जाति-धर्म-संप्रदाय आदि पर आधारित नफ़रत फैलाने वाली बातों को ‘मज़हब के शोले’ कहा
है।
प्रश्नः 2.
मज़हब के शोले सुलगाने का यह मौका क्यों नहीं
है?
उत्तर:
मज़हब के शोले सुलगाने का यह वक्त इसलिए नहीं है क्योंकि इस समय
मानव द्वारा मंगल पर यान भेजा जा रहा है जिससे चंद्रलोक की यात्रा की कल्पना को
साकार रूप मिलेगा।
प्रश्नः 3.
‘बढ़-बढ़कर बातें करने की’ में कौन-सा अलंकार
है?
उत्तर:
‘बढ़-बढ़कर बातें करने की’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
मज़हब का राग अलापने वाले तथा अन्य लोगों में क्या अंतर
है?
उत्तर:
मज़हब का राग अलापने वाले अपने स्वार्थपूर्ण कार्यों से पैगंबर को
बदनाम करते हैं और निर्दोष लोगों का खून खराबा करते हैं जबकि अन्य लोग लोकतंत्र को
मजबूत बनाते हुए हर जाति-धर्म के लोगों के लिए अवसरों की समानता उपलब्ध करा रहे
हैं।
प्रश्नः 5.
कवि अपने देश के लिए क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कवि अपने
बलिदान से सदियों की कालिख को धो देना चाहता है तथा मानवता की भलाई एवं खुशहाली के
लिए हरियाली की फ़सल बोकर देश को खुशहाल देखना चाहता है।
10. शीश पर मंगल-कलश रख
भूलकर जन के सभी दुख
चाहते हो तो मना लो जन्म-दिन
भूखे वतन का।
जो उदासी है हृदय पर,
वह उभर आती समय पर,
पेट की रोटी जुड़ाओ,
रेशमी
झंडा उड़ाओ,
ध्यान तो रक्खो मगर उस अधफटे नंगे बदन का।
तन कहीं पर, मन कहीं पर,
धन कहीं, निर्धन कहीं पर,
फूल की ऐसी विदाई,
शूल को आती रुलाई
आँधियों के साथ जैसे हो रहा सौदा चमन का।
आग ठंडी हो, गरम हो,
तोड़ देती है, मरम को,
क्रांति है आनी किसी दिन,
आदमी घड़ियाँ रहा गिन, राख कर देता सभी कुछ अधजला दीपक भवन का
जन्म-दिन भूखे
वतन का। (All India 2014)
प्रश्नः 1.
देश की स्वतंत्रता का उत्सव मनाना कब अर्थहीन हो जाता
है?
उत्तर:
देश की स्वतंत्रता का उत्सव मनाना तब अर्थहीन हो जाता है, जब देश
की जनता भूखी और उदास हो।
प्रश्नः 2.
कवि किस उदासी की बात कर रहा है?
उत्तर:
कवि जनता की
अभावग्रस्तता, मूलभूत सुविधाओं की कमी आदि से उत्पन्न उदासी की बात कर रहा है।
प्रश्नः 3.
‘अधजला दीपक भवन का’ किसका प्रतीक है?
उत्तर:
अधजला दीपक
भवन का भूखे-प्यासे दुखी और अभावग्रस्त लोगों का प्रतीक है।
प्रश्नः 4.
कवि देश के शासकों से क्या कहना चाहता है और
क्यों?
उत्तर:
कवि देश के शासकों से यह कहना चाहते हैं कि वे आज़ादी का उत्सव
मनाएँ, रेशमी झंडा लहराएँ पर उन गरीबों के लिए रोटी और अधनंगे बदन वालों के लिए
वस्त्र का इंतज़ाम करें का भी ध्यान रखें। वह ऐसा इसलिए कह रहा है क्योंकि शासकों
को संवेदनहीनता के कारण भूखी जनता का ध्यान नहीं रह गया है।
प्रश्नः 5.
कवि को ऐसा क्यों लगता है कि किसी दिन क्रांति होकर रहेगी? इसका
क्या परिणाम होगा?
उत्तर:
देश की बदहाल स्थिति देखकर कवि को लगता है कि देश
की जनता शोषण, अभावग्रस्तता, दुख और आपदाओं से जैसे समझौता कर रही है। जिस दिन उसका
धैर्य जवाब देगा उसी दिन क्रांति हो जाएगी तब यह आक्रोशित जनता यह व्यवस्था नष्ट
करके रख देगी।
11. बहती रहने दो मेरी धमनियों में
जन्मदात्री मिट्टी की गंध,
मानवीय
संवेदनाओं की पावनी गंगा,
सदा-सदा को वांछित रह सकने वाले
पसीने की खारी
यमुना।
शपथ खाने दो मुझे
केवल उस मिट्टी की
जो मेरे प्राणों का आदि
है,
मध्य है,
अंत है।
सिर झुकाओ मेरा
केवल उस स्वतंत्र वायु के
सम्मुख
जो विश्व का गरल पीकर भी
बहता है
पवित्र करने को कण-कण।
क्योंकि
मैं जी सकता हूँ
केवल उस मिट्टी के लिए,
केवल इस वायु के लिए।
क्योंकि
मैं मात्र साँस लेती
खाल होना नहीं चाहता। (All India 2014)
प्रश्नः 1.
‘जन्मदात्री मिट्टी की गंध’ पंक्ति में कवि की इच्छा का स्वरूप
क्या है?
उत्तर:
‘जन्मदात्री मिट्टी की गंध’ पंक्ति में कवि की इच्छा का
स्वरूप मातृभूमि के प्रति गहन अनुराग की उत्कट भावना है।
प्रश्नः 2.
‘मात्र साँस लेती खाल’ का आशय क्या है?
उत्तर:
मात्र साँस
लेती खाल का आशय है – अपने स्वार्थ में डूबकर निष्प्राणों जैसा जीवन बिताना।
प्रश्नः 3.
‘पवित्र करने को कण-कण’ में कौन-कौन सा अलंकार
है?
उत्तर:
‘पवित्र करने को कण-कण में’ अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता
है? उसने मातृभूमि की मिट्टी से अपना लगाव कैसे प्रकट किया
है?
उत्तर:
‘मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा’ के माध्यम से कवि पीड़ित मानवता
के उद्धार की बात कहना चाहता है। उसने मिट्टी को अपने प्राणों का आदि मध्य और अंत
बताकर अपना लगाव प्रकट किया है।
प्रश्नः 5.
कवि अपना सिर किसके सामने झुकाना चाहता है और किसके लिए जीना
चाहता है?
उत्तर:
कवि अपना सिर उस वायु के सामने झुकाना चाहता है जो विश्व का
जहर पीकर भी बहती रहती है। इसी वायु का सेवन करके वह इसी वायु और मातृभूमि की
मिट्टी के लिए जीना चाहता है।
12. जब कभी मछेरे को फेंका हुआ
फैला जाल
समेटते हुए देखता हूँ
तो अपना
सिमटता हुआ
‘स्व’ याद हो आता है
जो कभी समाज, गाँव और
परिवार के वृहत्तर
परिधि में
समाहित था
‘सर्व’ की परिभाषा बनकर,
और अब केंद्रित हो
बैठी,
पराग को समेटती
मधुमक्खियों को देखता हूँ
तो मुझे अपने पूर्वजों की
याद हो
आती है,
जो कभी फूलों को रंग, जाति, वर्ग
अथवा कबीलों में नहीं बाँटते थे
और समझते रहे थे कि
देश एक बाग है
और मधु-मनुष्यता
जिससे जीने की अपेक्षा
होती है।
किंतु अब गया हूँ मात्र बिंदु में।
बाग और मनुष्यता जब कभी अनेक
फूलों पर,
शिलालेखों में जकड़ गई है
मात्र संग्रहालय की जड़ वस्तुएँ। (Delhi
2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
काव्यांश में ‘स्व’ शब्द से कवि का क्या आशय
है?
उत्तर:
काव्यांश में ‘स्व’ शब्द से कवि का आशय अपनेपन की भावना से
है।
प्रश्नः 2.
काव्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
काव्यांश का
मूलभाव यह है कि बदलते समय के साथ मनुष्य के अपनेपन की भावना संकीर्ण होती गई
है।
प्रश्नः 3.
आज बाग और मनुष्यता की स्थिति में क्या बदलाव आ गया
है?
उत्तर:
आज बाग और मनुष्यता की बातें शिलालेखों में जकड़कर संग्रहालय की
जड़ वस्तुएँ बन गई हैं।
प्रश्नः 4.
कवि के बचपन और वर्तमान की स्व-भावना में क्या अंतर आ गया
है?
उत्तर:
कवि के बचपन में स्व का दायरा पूरे गाँव और समाज तक सीमित था
परंतु अब स्व की भावना अपने आप तक सिमट कर रह गई है। उसकी यह भावना दिनों-दिन
संकीर्ण होती गई।
प्रश्नः 5.
मधुमक्खियों को देखकर कवि को किसकी याद आ जाती है और
क्यों?
उत्तर:
मधुमक्खियों को देखकर कवि को अपने पूर्वजों की याद हो आती है
क्योंकि मधुमक्खियाँ जिस प्रकार तरह-तरह के फूलों से पराग निकालती हैं उसी प्रकार
पूर्वज लोगों को रंग, जाति, वर्ग अथवा कबीलों में नहीं बाँटते थे। उनमें एकता बनाए
रखते थे।
13. बिन बैसाखी अपनी शर्तों पर, मैं मदमस्त चला।
सब्जबाग को दिखा-दिखा
दुनिया रह-रह मुसकाई।
कंचन और कामिनी ने भी
अपनी छटा दिखाई।
सतरंगे जग के
साँचे में, मैं न कभी ढला॥
चिनगारी पर चलते-चलते
रुका-झुका ना पल-छिन।
गिरे हुओं को रहा उठाता
हालाहल पीते-पीते ही मैं जीवन-भर चला॥
कितने
बढ़े-चढ़े द्रुत चलकर
शैलशिखर शृंगों पर।
कितने अपनी लाश लिए
फिरते अपने
कंधों पर।
सबकी अपनी अलग नियति है, है जीने की कला॥
आँधी से जूझा करना ही
बस आता है मुझको।
पीड़ाओं के संग-संग जीना
भाता है बस मुझको। गले लगाता
अनुदिन।
मैं तटस्थ, जो भी जग समझे कह ले बुरा-भला॥ (All India 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
सतरंगी संसार कवि को क्यों नहीं लुभा सका?
उत्तर:
कवि को
सतरंगी संसार इसलिए नहीं लुभा सका क्योंकि उसे अपने सिद्धांतों से विशेष प्यार
है।
प्रश्नः 2.
कवि को लुभाने के लिए दुनिया ने क्या-क्या किया?
उत्तर:
कवि
को लुभाने के लिए दुनिया ने तरह-तरह के सपने दिखाए और कंचन-कामिनी को भी उसके सामने
प्रस्तुत कर दिया।
प्रश्नः 3.
‘कितने बढ़े-चढ़े द्रुत चलकर शैल-शिखर के शृंगों पर’ में निहित
अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
कितने बढ़े-चढ़े द्रुत चलकर शैल-शिखर के शृंगों
पर’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
कवि ने अपना जीवन समाज के अन्य लोगों से अलग बिताया,
कैसे?
उत्तर:
कवि विपरीत परिस्थितियों का सामना करता रहा पर पल भर के लिए भी
न रुका। वह दीन-दुखियों की मदद करते, उन्हें गले लगाते हुए नाना प्रकार के कष्ट
सहकर जीवन बिताया।।
प्रश्नः 5.
कवि को संघर्ष करना अच्छा लगता है। – काव्यांश के आधार पर स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
कवि को संकट और मुसीबतों से संघर्ष करना अच्छा लगता है। वह
दीन-दुखियों का साथ देना जानता है। कवि को जग ने भले ही भला-बुरा कहा पर वह इससे
तटस्थ रहा। इस तरह वह संघर्षशील बना रहा।
14. जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है
जिसका खाकर अन्न, सुधा-सम
नीर-समीर पिया है।
वह स्नेह की मूर्ति दयामयि माता-तुल्य मही है
उसके प्रति
कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
पैदाकर जिस देश-जाति ने तुमको पाला-पोसा।
किए हुए है वह निज हित का तुमसे
बड़ा भरोसा
उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा
फिर दे सकते हो वसुधा
को शेष स्वजीवन सारा। (Delhi 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
‘खाकर जिसका अन्न’ में किसका अन्न खाने की बात कवि ने कही
है?
उत्तर:
‘खाकर जिसका अन्न’ में मातृभूमि का अन्न खाने की बात कवि ने कही
है।
प्रश्नः 2.
‘सुधा-सम नीर-समीर पिया है’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘सुधा-सम नीर-समीर पिया है’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3.
कवि ने किसके ऋण से उऋण होने की बात कही है?
उत्तर:
कवि ने
व्यक्ति का भरण-पोषण करने वाली मातृभूमि के ऋण से उऋण होने की बात कही है।
प्रश्नः 4.
कवि किसे किसके प्रति कर्तव्यों की याद दिला रहा है और
क्यों?
उत्तर:
कवि भारतवासियों को मातृभूमि के प्रति उनके कर्तव्यों की याद
दिला रहा है क्योंकि भारतवासियों ने मातृभूमि का अनाज खाया है और अमृत तुल्य पानी
और हवा का सेवन करके जीवन पाया है।
प्रश्नः 5.
देश जाति के प्रति व्यक्ति का पहला कर्तव्य क्या है और
क्यों?
उत्तर:
देश और जाति के प्रतिव्यक्ति का पहला कर्तव्य उसके कर्ज से
मुक्ति पाना है क्योंकि जिस देश और जाति ने व्यक्ति को जन्म दिया है, उसने व्यक्ति
से अपना हित पूरा होने की आशा लगा रखी है।
15. प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ?
सात साल की बच्ची का पिता तो
है।
सामने गीयर से ऊपर
हुक से लटका रखी हैं
काँच की चार गुलाबी
चूड़ियाँ।
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं,
झुक कर मैंने पूछ
लिया,
खा गया मानो झटका।
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रौबीला चेहरा
आहिस्ते से
बोला : हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनियाँ । (All India 2013
Comptt.)
प्रश्नः 1.
‘बच्ची का पिता तो है’ पंक्ति में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है
?
उत्तर:
‘बच्ची का पिता तो है’ पंक्ति में बच्ची के प्रति आत्मीयता, स्नेह
और लगाव की अभिव्यक्ति हुई है।
प्रश्नः 2.
ड्राइवर झटका क्यों खा गया?
उत्तर:
चूड़ियों के बारे में
पूछने पर ड्राइवर इसलिए झटका खा गया क्योंकि उसे अचानक अपनी बिटिया की याद आ
गई।
प्रश्नः 3.
‘खा गया मानो झटका’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘खा गया मानो झटका’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
प्रश्नः 4.
चूड़ियाँ किसने और कहाँ लटका रखी थी और क्यों?
उत्तर:
बस
में चूड़ियों को ड्राइवर की बेटी ने गीयर से ऊपर हुक से लटका रखी थी ताकि पिता को
उसकी बराबर याद आती रहे और वह जल्दी से घट लौट आएँ।
प्रश्नः 5.
बस ड्राइवर के चेहरे और उसकी आवाज़ में निहित विरोधाभास स्पष्ट
कीजिए?
उत्तर:
बस ड्राइवर अधेड़ उम्र वाला व्यक्ति है। उसका चेहरा रोबीला है
जिस पर घनी मूंछे हैं। इससे चेहरा कठोर प्रतीत होता है परंतु इस रोबीले चेहरे की
आवाज़ धीमी है। इस तरह दोनों में विरोधाभास है।
16. तापित को स्निग्ध करे
प्यासे को चैन दे।
सूखे हुए अधरों को
फिर से
जो बैन दे।
ऐसा सभी पानी है।
लहरों के आने पर
काई-सा फटे नहीं
रोटी के
लालच में
तोते-सा रटे नहीं
प्राणी वही प्राणी है।
लँगड़े को पाँव और
लूले को हाथ दे,
रात की सँभार में
मरने तक साथ दे,
बोले तो हमेशा सच
सच
से हटे नहीं,
हरगिज़ डरे नहीं
सचमुच वही प्राणी है।
प्रश्नः 1.
काव्यांश में पानी की क्या विशेषता बताई गई
है?
उत्तर:
काव्यांश में पानी की विशेषता यह बताई गई है कि पानी प्यासों की
प्यास, गरमी से परेशान लोगों का ताप और अधरों की शुष्कता हर लेता है।
प्रश्नः 2.
‘काई-सा फटे नहीं’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
‘काई-सा
फटे नहीं’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3.
‘फिर से जो न दे’ का आशय क्या है?
उत्तर:
फिर से जो बैन दे
का आशय है कि पानी लोगों की जुबान को तर करके उन्हें बोलने लायक बनाता है।
प्रश्नः 4.
कवि सच्चा प्राणी किसे मानता है?
उत्तर:
कवि सच्चा प्राणी
उसे मानता है जो लँगड़े-लूलों और लाचारों को सहारा देता है, कठिन समय में उनका साथ
निभाता है, सच बोलने से कभी नहीं डरता है और हमेशा सच बोलता है।
प्रश्नः 5.
अपने किन कर्मों से प्राणी छोटा बन जाता है?
उत्तर:
जब
व्यक्ति छोटी-सी मुसीबत देखते ही घबरा जाते हैं, अपने स्वार्थ के लिए अपना
स्वाभिमान भूलकर तोतों की भाँति रटू बनकर दूसरों को उनकी चापलूसी और झूठा गुणगान
करने लगते हैं तब वे छोटे बन जाते हैं।
17. अरे! चाटते जूठे पत्ते जिस दिन देखा मैंने नर को
उस दिन सोचा, क्यों न
लगा दूँ आज आग इस दुनियाभर को?
यह भी सोचा, क्यों न टेटुआ घोटा जाए स्वयं जगपति
का?
जिसने अपने ही स्वरूप को रूप दिया इस घृणित विकृति का।
जगपति कहाँ ? अरे,
सदियों से वह तो हुआ राख की ढेरी;
वरना समता संस्थापन में लग जाती क्या इतनी
देरी?
छोड़ आसरा अलखशक्ति का रे नर स्वयं जगपति तू है,
यदि तू जूठे पत्ते
चाटे, तो तुझ पर लानत है थू है।
ओ भिखमंगे अरे पराजित, ओ मजलूम, अरे चिर
दोहित,
तू अखंड भंडार शक्ति का, जाग और निद्रा संमोहित,
प्राणों को तड़पाने
वाली हुँकारों से जल-थल भर दे,
अनाचार के अंबारों में अपना ज्वलित पलीता भर
दे।
भूखा देख तुझे गर उमड़े आँसू नयनों में जग-जन के
तू तो कह दे, नहीं चाहिए
हमको रोने वाले जनखे,
तेरी भूख असंस्कृति तेरी, यदि न उभाड़ सके क्रोधानल,
तो
फिर समयूँगा कि हो गई सारी दुनिया कायर निर्बल। (Delhi 2014)
प्रश्नः 1.
कवि क्या देखकर दुनियाभर में आग लगा देना चाहता है
?
उत्तर:
भूखे-प्यासे मनुष्य को जूठे पत्तलों में खाने के लिए कुछ खोजता
देखकर कवि दुनिया भर में आग लगा देना चाहता है।
प्रश्नः 2.
‘वह तो हुआ राख की ढेरी’ कवि ऐसा क्यों कह रहा
है?
उत्तर:
वह अर्थात् जगपति राख की ढेरी हो गया है क्योंकि यदि जगपति अपना
काम कर रहा होता तो दुनिया में समानता आने में इतनी देर न लगती।
प्रश्नः 3.
‘अनाचार के अंबारों में अपना ज्वलित पलीता भर दे’ पंक्ति में
कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
‘अनाचार के …… भर दे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
कवि भूखों नंगों को उनकी शक्ति का भान किस तरह कराना चाहता है और
क्यों?
उत्तर:
कवि भूखे-नंगों उनकी शक्ति के बारे में ज्ञान कराते हुए उन्हें
खुद ही जगपति होने, अदृश्यशक्ति का सहारा त्यागने, निद्रा और सम्मोहन त्यागने की
बात कह रहा है ताकि वे अपनी शक्ति पहचान कर दूसरों का मुँह ताकते हुए जीना
छोड़ें।
प्रश्नः 5.
दुनिया कायर और निर्बल हो गई है, कवि ऐसा कब और क्यों
सोचेगा?
उत्तर:
कुछ लोगों को भूखा-नंगा देखकर यदि लोग आँसू बहाने के सिवा
अभावग्रस्तों के लिए कुछ नहीं करते हैं तो कवि समझेगा कि दुनिया पागल हो गई है।
लोगों को भूखा नंगा देखकर उन्हें व्यवस्था परिवर्तन के लिए आगे आ जाना चाहिए। अपठित
काव्यांश
18. पृथ्वी की छाती फाड़, कौन यह अन्न उगा लाता बाहर?
दिन का रवि-निशि की शीत
कौन लेता अपनी सिर-आँखों पर?
कंकड़ पत्थर से लड़-लड़कर, खुरपी से और कुदाली
से,
ऊसर बंजर को उर्वर कर, चलता है चाल निराली ले।
मज़दूर भुजाएँ वे तेरी, मज़दूर, शक्ति तेरी महान;
घूमा करता तू महादेव! सिर
पर लेकर के आसमान !
पाताल फोड़कर, महाभीष्म! भूतल पर लाता जलधारा;
प्यासी
भूखी दुनिया को तू देता जीवन संबल सारा !
खेती से लाता है कपास, धुन-धुन, बुनकर अंबार परम;
इस नग्न विश्व को पहनाता तू
नित्य नवीन वस्त्र अनुपम। ।
नंगी घूमा करती दुनिया, मिलता न अन्न, भूखों मरती,
मज़दूर! भुजाएँ जो तेरी
मिट्टी से नहीं युद्ध करतीं!
तू छिपा राज्य-उत्थानों में, तू छिपा कीर्ति के गानों में;
मज़दूर! भुजाएँ
तेरी ही दुर्गों के शृंग-उठानों में।
तू छिपा नवल निर्माणों में, गीतों में और
पुराणों में;
युग का यह चक्र चला करता तेरी पद-गति की तानों में।
तू ब्रह्मा-विष्णु रहा सदैव,
तू है महेश प्रलयंकर फिर।
हो तेरा तांडव,
शंभु! आज
हो ध्वंस, सृजन मंगलकर फिर!
प्रश्नः 1.
अन्न उगाने वाले को क्या-क्या सहना पड़ता है ?
उत्तर:
अन्न
उगाने वाले किसान को दिन की धूप और रात की सरदी सहनी पड़ती है।
प्रश्नः 2.
किसान के हथियार क्या-क्या हैं? इनकी मदद से किनसे लड़ता
है?
उत्तर:
किसान के हथियार खुरपी और कुदाल हैं। इनकी मदद से वह कंकड़ और
पत्थर से लड़ता है।
प्रश्नः 3.
मज़दूर को महाभीष्म क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मज़दूर पाताल
फोड़कर धरती पर जलधारा लाता है, इसलिए उसे भीष्म कहा गया है।
प्रश्नः 4.
यदि मज़दूर परिश्रम न करता तो दुनिया की क्या स्थिति होती और
क्यों?
उत्तर:
मज़दूर यदि परिश्रम न करता तो कपड़ों के अभाव में दुनिया नंगी
घूमती और अन्न के अभाव में भूखों मरती, क्योंकि मजदूर अपने परिश्रम से फ़सल उगाता
है और कपड़े बुनता है।
प्रश्नः 5.
मजदूर को किस-किस संज्ञा से विभूषित किया गया है? वह कहाँ छिपा
है?
उत्तर:
मज़दूर को ब्रहमा, विष्णु और महेश की संज्ञा से विभूषित किया गया
है। वह राज्य की प्रगति, उसकी यशगाथा, दुर्ग की ऊँची चोटियों में नए निमार्णों और
गीत-पुराणों में छिपा है।
19. भाग्यवाद आवरण पाप का
और शस्त्र शोषण का
जिससे दबा एक जन
भाग दूसरे
जन का।
पूछो किसी भाग्यवादी से
यदि विधि अंक प्रबल हैं,
पद पर क्यों न
देती स्वयं
वसुधा निज रतन उगल है?
उपजाता क्यों विभव प्रकृति को
सींच-सींच
व जल से
क्यों न उठा लेता निज संचित करता है।
अर्थ पाप के बल से,
और भोगता
उसे दूसरा
भाग्यवाद के छल से।
नर-समाज का भाग्य एक है
वह श्रम, वह भुज-बल
है।
जिसके सम्मुख झुकी हुई है;
पृथ्वी, विनीत नभ-तल है।
प्रश्नः 1.
भाग्यवादी सफलता के बारे में क्या मानते हैं
?
उत्तर:
भाग्यवादी सफलता के बारे में यह मानते हैं कि भाग्य में लिखी होने
पर ही सफलता मिलती है।
प्रश्नः 2.
धरती और आकाश किसके कारण झुकने को विवश हुए हैं
?
उत्तर:
धरती और आकाश मनुष्य के परिश्रम के कारण झुकने को विवश हुए हैं।
प्रश्नः 3.
काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश
में निहित संदेश यह है कि मनुष्य को भाग्य का सहारा छोड़कर परिश्रम से सफलता
प्राप्त करनी चाहिए।
प्रश्नः 4.
कवि भाग्यवादियों से क्या पूछने के लिए कहता है और
क्यों?
उत्तर:
कवि भाग्यवादियों से यह पूछने के लिए कहता है कि यदि भाग्य का
बल इतना प्रबल है तो सुधा अपने भीतर छिपे रत्नों को मनुष्य के चरणों पर क्यों नहीं
रख देती है। इसके लिए मनुष्य को परिश्रम क्यों करना पड़ता है। ऐसा पूछने का कारण
हैं भाग्यवाद की बातें मिथ्या होना।
प्रश्नः 5.
भाग्यवाद को किसका हथियार कहा गया है और
क्यों?
उत्तर:
भाग्यवाद को दूसरों का शोषण करने का अस्त्र कहा गया है क्योंकि
भाग्यवाद का छलावा देकर लोग दूसरों का शोषण करते हैं और दूसरों को मिलने वाला भाग
दबाकर बैठ जाते हैं।
20. जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।
जीवन अस्थिर,
अनजाने ही
हो जाता पथ पर मेल कही
सीमित पग-डग, लंबी मंजिल,
तय कर लेना कुछ
खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते
सम्मुख चलता पथ का प्रमाद,
जिस-जिससे पथ
पर स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।
साँसों पर अवलंबित काया,
जब
चलते-चलते चूर हुई।
दो स्नेह शब्द मिल गए,
मिली नव स्फूर्ति,
थकावट दूर
हुई।
पथ के पहचाने छूट गए,
पर साथ-साथ चल रही यादें।
जिस-जिससे पथ पर
स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।
प्रश्नः 1.
कवि किस-किस राही को धन्यवाद देना चाहता है?
उत्तर:
कवि को
जीवन-मार्ग पर जिन-जिन लोगों से स्नेह मिला, वह उन्हें धन्यवाद देना चाहता है।
प्रश्नः 2.
जाने-पहचाने लोगों का साथ छूट जाने पर भी कवि के साथ अब कौन चल
रहा है?
उत्तर:
जाने-पहचाने लोगों का साथ छूट जाने पर भी कवि के साथ अब
तरह-तरह की यादें चल रही हैं।
प्रश्नः 3.
जीवन पथ पर कवि का साथ कौन-कौन दे रहे हैं?
उत्तर:
जीवन-पथ
पर कवि का साथ सुख-दुख और आलस्य दे रहे हैं।
प्रश्नः 4.
कवि राही को धन्यवाद क्यों देना चाहता है?
उत्तर:
कवि राही
को इसलिए धन्यवाद देना चाहता है क्योंकि जीवन अस्थिर एवं सीमित है। इस दशा में
मंजिल पर पहुँचना आसान नहीं है। ऐसे में राही से मिले स्नेह के कारण वह जीवन यात्रा
पूरी कर सका।
प्रश्नः 5.
कवि की जीवन-यात्रा की सुखद-समाप्ति का वर्णन अपने शब्दों में
कीजिए।
उत्तर:
कवि जीवन यात्रा पर जब थकने लगा तभी उसे स्नेह भरे शब्दों से
नई स्फूर्ति एवं ऊर्जा मिली, जिससे उसकी थकावट दूर हो गई और वह जीवन पर बढ़ता
गया।
(21) उठे राष्ट्र तेरे कंधों पर, बढ़े प्रगति के प्रांगण में।
पृथ्वी को राख
दिया उठाकर, तूने नभ के आँगन में॥
तेरे प्राणों के ज्वारों पर, लहराते हैं देश
सभी।
चाहे जिसे इधर कर दे तू, चाहे जिसे उधर क्षण में॥
मत झुक जाओ देख
प्रभंजन, गिरि को देख न रुक जाओ।
और न जम्बुक-से मृगेंद्र को, देख सहम कर लुक
जाओ॥
झुकना, रुकना, लुकना, ये सब कायर की सी बातें हैं।
बस तुम वीरों से निज को
बढ़ने को उत्सुक पाओ॥
अपनी अविचल गति से चलकर नियतिचक्र की गति बदलो।
बढ़े
चलो बस बढ़े चलो, हे युवक! निरंतर बढ़े चलो।
देश-धर्म-मर्यादा की रक्षा का तुम
व्रत ले लो।
बढ़े चलो, तुम बढ़े चलो, हे युवक! तुम अब बढ़े चलो॥ अपठित
काव्यांश
प्रश्नः 1.
राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाने का दायित्व किसके कंधों पर
है?
उत्तर:
राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाने का दायित्व नवयुवकों एवं
जवानों के कंधे पर है।
प्रश्नः 2.
किन बातों को कायरों की सी बातें कहा गया
है?
उत्तर:
संकटों-बाधाओं को देखकर झुक जाना, रुक जाना और छिप जाना कायरों
की-सी बाते हैं।
प्रश्नः 3.
‘नियतिचक्र की गति बदलो’ में निहित अलंकार बताइए।
उत्तर:
‘निर्यात चक्र की गति बदलो’ में रूपक अलंकार है।
प्रश्नः 4.
‘चाहे जिसे इधर कर दे तू चाहे जिसे उधर क्षण में’-कवि ने ऐसा
किनके बारे में कहा है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने ऐसा नवयुवकों एवं जवानों के
बारे में कहा है क्योंकि वे असीम शक्ति एवं ऊर्जा के भंडार होते हैं। उनकी शक्ति पर
देश की प्रगति निर्भर करती है। वे असंभव से दिखने वाले काम को भी संभव बना सकते
हैं।
प्रश्नः 5.
कवि नवयुवकों से क्या आह्वान कर रहा है और किस तरह प्रेरित कर रहा
है?
उत्तर:
कवि नवयुवकों को निरंतर आगे बढ़ने का आह्वान कर रहा है। कवि
नवयुवकों को उनमें छिपी बिना रुके चलते जाने की शक्ति, नियतिचक्र बदलने की क्षमता,
देश के धर्म और मर्यादा की रक्षा करने में समर्थता का बोध कराकर उन्हें प्रेरित कर
रहा है।
22. निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी
हर बार बिखेरी
गई किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी।
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़कर
छल जाए ।
सूरज दमके तो तप जाए रजनी ठुमके तो ढल जाए,
यो तो बच्चों की
गुड़िया-सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आए तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल
जाए,
फ़सलें उगती, फ़सलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है।
सौ बार बने सौ बार
मिटे लेकिन मिट्टी अविनश्वर है।
प्रश्नः 1.
सूरज के दमकने पर मिट्टी पर क्या असर पड़ता है?
उत्तर:
सूरज
के दमकने पर मिट्टी तप जाती हैं और उसका स्वरूप और भी मजबूत हो जाता है।
प्रश्नः 2.
‘यो तो बच्चों की गुड़िया सी’ में कौन-सा अलंकार है
?
उत्तर:
‘यो तो बच्चों की गुड़िया-सी’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3.
मिट्टी कब ढल जाती है?
उत्तर:
जब रात होती है तब मिट्टी ढल
जाती है।
प्रश्नः 4.
उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जो मिट्टी के स्वरूप को मिटाने
में असफल रही।
उत्तर:
मिट्टी के स्वरूप को नष्ट करने का असफल प्रयास करने
वाली परिस्थितियाँ हैं –
क. कुम्हार के द्वारा मिट्टी को कूटा-पीटा जाना।
ख. धूप में खूब तपाया
जाना।
ग. बार-बार बिखराया जाना।
घ. छन्ने के द्वारा छाना जाना।
प्रश्नः 5.
‘भोली मिट्टी की हस्ती क्या’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है पर उसने
अपने कथन का खंडन भी किस तरह किया है ?
उत्तर:
कवि ने ऐसा इसलिए कहा है
क्योंकि आँधी आने पर मिट्टी उड़ जाती है, पानी में गलकर बह जाती है, पर बार-बार
फ़सलें कटने और उगने से धरती की चिर उर्वरता और मिटाने का प्रयास करने पर भी न
मिटने की बात कहकर उसने अपने कथन का खंडन किया है।
23. बहुत बड़ी बरबादी की
इस धरती पर आबादी की
यूँ फ़सल उगाते जाओगे
अब
वह दिन ज़्यादा दूर नहीं
जब सिर धुन-धुन पछताओगे।
तुम कितने जंगल
तोड़ोगे,
कितने वृक्षों को काटोगे,
इस शस्य श्यामला धरती को
कितने टुकड़ों
में बाँटोगे?
है किंचित तुमको सबर नहीं
क्या ये भी तुमको खबर नहीं?
ये
धरती तो बस धरती है,
ये धरती कोई रबर नहीं,
बोते हो पेड़ बबूलों के
फिर आम कहाँ से
खाओगे?
यह बढ़ती जाती बदहाली,
खो गई सुबह की तरुणाई,
खो गई शाम की वह
लाली,
बिन वर्षा के इस धरती पर,
तुम कैसे अन्न उगाओगे?
यह गंगा भी अब मैली
है,
जल की हर बूंद विषैली है,
दस दूषित जल के पीने से,
नित नई बीमारी फैली
है।
प्रश्नः 1.
किस फ़सल को उगाने से कवि मनुष्य को सावधान कर रहा है
?
उत्तर:
जनसंख्या की फ़सल उगाने के प्रति कवि मनुष्य को सावधान कर रहा
है।
प्रश्नः 2.
धरती पर अन्न उगाना कब संभव नहीं होगा?
उत्तर:
पेड़ों के
निरंतर काटे जाने से वर्षा होनी बंद हो जाएगी तब धरती पर अन्न उगाना संभव नहीं
होगा।
प्रश्नः 3.
काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश
में निहित संदेश यह है कि बढ़ती जनसंख्या पर अविलंब अंकुश लगाने की आवश्यकता है
अन्यथा इसका दुष्परिणाम भयानक होगा।
प्रश्नः 4.
धरती के विषय में कवि मनुष्य को किस तरह सावधान कर रहा है और
क्यों?
उत्तर:
धरती के बारे में कवि मनुष्य को सावधान करते हुए कह रहा है कि
इस हरी-भरी धरती के अब और टुकड़े करना बंद करो। तुम अपनी अधीरता छोड़ दो। यह धरती
असीमित नहीं बल्कि सीमित है। इसके साथ छेड़छाड़ का परिणाम बुरा होगा।
प्रश्नः 5.
कवि ने गंगा की स्थिति पर चिंता क्यों प्रकट की
है?
उत्तर:
कवि ने गंगा की स्थिति पर चिंता इसलिए प्रकट की है क्योंकि
जनसंख्या में निरंतर वृदधि के कारण गंगा इतनी मैली हो गई है कि उसकी एक-एक बूंद
जहरीली हो गई है। इसका सेवन करने से नई-नई बीमारियाँ हो जाती हैं।
24. हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार। ।
उषा ने हँस अभिनंदन
किया और पहनाया हीरक हार।
जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर
आलोक,
व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।
विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत।
सप्त स्वर सप्त सिंधु में उठे,
छिड़ा तब मधुर साम-संगीत।
बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का
शीत।
अरुण-केतन लेकर निज हाथ वरुण पथ में हम बढ़े अभीत।
प्रश्नः 1.
प्रथम किरणों का उपहार किसे मिलता है?
उत्तर:
सूरज की पहली
किरणों का उपहार भारत भूमि को मिलता है।
प्रश्नः 2.
‘विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत’ में कौन-सा अलंकार
है?
उत्तर:
‘विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत’ में अनुप्रास
अलंकार है। अपठित काव्यांश
प्रश्नः 3.
दुनिया में आलोक कब फैला?
उत्तर:
दुनिया में आलोक तब फैला
जब भारतीय मनीषियों ने विश्व को ज्ञान दिया।
प्रश्नः 4.
उषा किसका स्वागत करती है और किस तरह?
उत्तर:
उषा भारत भूमि
का हँसकर स्वागत करती है। वह सूरज की पहली किरणों का उपहार देकर हीरों का हार
पहनाती है।
प्रश्नः 5.
‘बचाकर बीज रूप से सृष्टि’ पंक्ति में किस प्रसंग का उल्लेख है ?
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘बचाकर बीज रूप से सृष्टि’ पंक्ति में उस प्रसंग का
उल्लेख है जब सारी सृष्टि जलमय हो गई थी। धरती पर अत्यधिक सरदी पड़ने लगी थी तब आदि
पुरुष मनु ने सृष्टि का बीज बचाने के लिए नाव पर इस शीत को झेला था जिससे सृष्टि को
ऐसा स्वरूप मिला।
25. तुम भारत, हम भारतीय हैं, तू माता हम बेटे,
किसकी हिम्मत है कि तुम्हें
दुष्टता-दृष्टि से देखे।
ओ माता, तुम एक अरब से अधिक भुजाओं वाली
सबकी रक्षा
में तुम सक्षम, हो अदम्य बलशाली।
भाषा, देश, प्रदेश भिन्न है, फिर भी
भाई-भाई,
भारत की साझी संस्कृति में पलते भारतवासी।
सुदिनों में हम एक साथ हँसते, गाते, सोते हैं,
दुर्दिन में भी साथ-साथ जागते,
पौरुष धोते हैं।
तुम हो शस्य-श्यामला, खेतों में तुम लहराती हो,
प्रकृति
प्राणमयी, साम-गानमयी, तुम न किसे भाती हो।
तुम न अगर होती तो धरती वसुधा क्यों
कहलाती?
गंगा कहाँ बहा करती, गीता क्यों गाई जाती?
प्रश्नः 1.
काव्यांश में भारत और भारतीयों में रिश्ता बताया गया
है?
उत्तर:
काव्यांश में भारत और भारतीयों में माँ-बेटे का रिश्ता बताया गया
है।
प्रश्नः 2.
‘तुम्हें दुष्टता-दृष्टि से देखे’ में निहित अलंकार का नाम
बताइए।
उत्तर:
‘तुम्हें दुष्टता-दृष्टि से देखे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
माता का शस्य-श्यामला रूप कहाँ देखा जा सकता है और किस रूप
में?
उत्तर:
माता का शस्य-श्यामला रूप खेतों में देखा जा सकता है जहाँ वह
हरी-भरी फसलों के रूप में लहराती है।
प्रश्नः 4.
काव्यांश के आधार पर भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संस्कृति की विशेषता है- अनेकता में एकता। यहाँ विभिन्न जाति धर्म
के लोग जिनकी भाषा, पहनावा, खान-पान, रहन-सहन अलग-अलग होने पर भी सब मिल-जुलकर रहते
हैं। वे आपस में भाई-भाई हैं और सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देते हैं।
प्रश्नः 5.
काव्यांश में वर्णित माता की विशेषताएँ एवं महत्ता स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में वर्णित भारत माता अदम्य बलशाली है जो सबकी रक्षा
में सक्षम है। एक अरब से अधिक उसके पुत्र हैं। अगर भारतमाता न होती तो यह धरती
वसुधा न कहलाती। तब गंगा कहाँ बहती और गीता का गायन क्यों किया जाता। इस तरह भारत
माता की विशेष महत्ता है।
अब स्वयं करें
1. तुम कुछ न करोगे, तो भी विश्व चलेगा ही,
फिर क्यों गर्वीले बन लड़ते
अधिकारों को?
सो गर्व और अधिकार हेतु लड़ना छोड़ो,
अधिकार नहीं, कर्तव्य-भाव
का ध्यान करो!
है तेज़ वही, अपने सान्निध्य मात्र से जो
सहचर-परिचर के आँसू
तुरत सुखाता है,
उस मन को हम किस भाँति वस्तुतः सु-मन कहें,
औरों को खिलता
देख, न जो खिल जाता है?
काँटे दिखते हैं जब कि फूल से हटता मन,
अवगुण दिखते
हैं जब कि गुणों से आँख हटे;
उस मन के भीतर दुख कहो क्यों आएगा;
जिस मन में
हों आनंद और उल्लास डटे!
यह विश्व व्यवस्था अपनी गति से चलती है,
तुम चाहो तो
इस गति का लाभ उठा देखो,
व्यक्तित्व तुम्हारा यदि शुभ गति का प्रेमी हो
तो
उसमें विभु का प्रेरक हाथ लगा देखो!
प्रश्नः
2. मैं चला, तुम्हें भी चलना है असिधारों पर,
सर काट हथेली पर लेकर बढ़ आओ
तो।
इस युग को नूतन स्वर तुमको ही देना है,
तुम बना सकोगे भूतल का इतिहास
नया,
मैं गिरे हुओं को, बढ़कर गले लगाऊँगा।
क्यों नीच-ऊँच, कुल, जाति, रंग का
भेद-भाव?
मैं रूढ़िवाद का कल्मष महल ढहाऊँगा।
तुम बढ़ा सकोगे कदम ज्वलित अंगारों पर?
मैं काँटों पर बिंधते-बिंधते बढ़
जाऊँगा।
सागर की विस्तृत छाती पर हो ज्वार नया अपनी कूवत को आज जरा आजमाओ
तो।
मैं कूद स्वयं पतवार हाथ में था[गा।
है अगर तुम्हें यह भूख ‘मुझे भी जीना
है’
तो आओ मेरे साथ नींव में गड़ जाओ।
ऊपर से निर्मित होना है आनंद महल
मरते-मरते भी दुनिया में कुछ कर जाओ।
प्रश्नः
3) बस फूलों का बाग नहीं, जीवन में लक्ष्य हमारा,
उससे आगे बहुत दूर है, बहुत
दूर तक जाना।
थोड़ी मात्र सफलता से ही, जो संतोष किए हैं,
घर की चारदिवारी
में मस्ती के साथ जिए हैं।
क्या मालूम उन्हें कितना परियों का लोक
सुहाना,
उससे आगे बहुत दूर है, बहुत दूर तक जाना।
चलते-चलते नहीं पड़े, जिनके
पैरों में छाले,
खुशियाँ क्या होती हैं, वे क्या जानेंगे मतवाले।
सुख काँटों
के पथ से है, बचने का नहीं बहाना,
उससे आगे बहुत दूर है, बहुत दूर तक जाना।
एक बाग क्या, जब धरती पर बंजर मौज मनाएँ,
एक फूल क्या, जब पग-पग काँटे जाल
बिछाएँ।
गली-गली में, डगर-डगर में है नंदन लहराना,
उससे आगे बहुत दूर है,
बहुत दूर तक जाना।
प्रश्नः
4. इस देश-धरा की व्यथा-कथा, निज टीस समझकर पहचानो।
संकट की दुर्दिन-वेला
में, मानव की गरिमा को जानो॥
इस धरती पर तो अकर्मण्य को, जीने का अधिकार
नहीं।
मानव कैसा, यदि मानवता से, हो स्वाभाविक प्यार नहीं॥
यह दुनिया का है अटल-चक्र, तुम मानो चाहे न मानो। ।
इस देश धरा की व्यथा-कथा,
निज टीस समझकर पहचानो।
है हर्ष-विषाद निरंतर क्रम, या है सह जीवन का स्पंदन।
हैं कहीं गूंजते अट्टहास, तो कहीं मचलते हैं क्रंदन ॥
क्यों पीछे दौड़े हो सुख
के, दुख को भी तो अपना मानो।
इस देश-धरा की व्यथा-कथा, निज टीस समझकर
पहचानो।
अति दुर्गम ये राहें जग की, इनका है कोई पार नहीं।
संघर्ष सार है
जीवन का कुछ विषय-भोग का द्वार नहीं।
धारो जीवन में हंस-वृत्ति, फिर नीर-क्षीर
अंतर जानो।
इस देश-धरा की व्यथा-कथा निज टीस समझकर पहचानो॥
प्रश्नः